कारसेवकों की खून से लथपथ था रास्ता, रामनगरी का यह रास्ता क्यों कहा जाता है शहीद गली,चश्मदीद ने किया बड़ा खुलासा –

अयोध्या:– रामलला 22 जनवरी को अपने भव्य महल में विराजमान हो जाएंगे।रामलला के भव्य महल में विराजमान होने को लेकर जो संघर्ष रहा है उसे भुलाया नहीं जा सकता है।एक ऐसी रिपोर्ट है जिसे जानकर आप सभी दंग रह जाएंगे। दिगंबर अखाड़ा से होकर हनुमानगढ़ी और उसके बाद श्रीराम जन्मभूमि परिसर पहुंचने वाला रास्ता आज भी कारसेवकों के रक्त रंजित इतिहास की कहानी बयां कर रही है।
बता दें 30 अक्टूबर 1990 को विश्व हिंदू परिषद ने विवादित ढांचे पर कर सेवा की घोषणा की थी और उस दिन उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के प्रतिबंधों के बावजूद बड़ी संख्या में कारसेवक विवादित ढांचे तक पहुंच गए थे।सुरक्षा बलों की कार्रवाई में तत्कालीन विश्व हिंदू परिषद के महासचिव अशोक सिंघल घायल भी हो गए थे। इसके तत्काल बाद विश्व हिंदू परिषद ने 2 नवंबर को भी कारसेवा करने की घोषणा की और बड़ी संख्या में कारसेवक विवादित ढांचे की और कूच कर गए।
राम मंदिर आंदोलन में कारसेवक रमेश पांडेय की मौत हुई थी,
लेकिन सुरक्षा बलों की वृहद स्तर पर घेराबंदी की वजह से कारसेवकों को आगे बढ़ने से रोका गया और जब कारसेवक नहीं माने और आगे बढ़ने लगे तो उन पर गोलियों की बौछार की जाने लगी।खासतौर पर सुरक्षा बलों की यह कार्रवाई दिगंबर अखाड़ा से हनुमानगढ़ी होते हुए राम जन्मभूमि परिसर के मार्ग पर हुआ।जहां अपने मकान में मौजूद रमेश पांडे की गोली लगने से मौत हो गई और दो सगे भाई रामकुमार कोठारी और शरद कुमार कोठारी भी गोली लगने से कुछ अन्य कारसेवक शहीद हो गए।अयोध्या में मातम छा गया और अयोध्या वासियों ने दिगंबर अखाड़ा गली को शहीद गली के नाम से पुकारना शुरू कर दिया।
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास बताते हैं कि शहीद गली पूरी तरह से खून से लथपथ थी और वह मंजर आज भी कारसेवकों की कुर्बानी की याद ताजा कर देता है। सत्येंद्र दास बताते हैं कि यह मंजर हमने अपनी आंखों से देखा है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।कारसेवक थोड़ी-थोड़ी टुकड़ियों में चल रहे थे।सीताराम जय राम का नाम जप रहे थे।अचानक जैसे ही दिगंबर अखाड़ा के पास पहुंचे वैसे ही तड़-तड़ की आवाज आने लगी और निहत्थे कारसेवकों पर मुलायम सिंह के आदेश के बाद पुलिस के लोग गोली चलाने लगे, जिसमें कई कारसेवक वहीं पर शहीद हो गए।
आचार्य सत्येंद्र दास बताते हैं कि कारसेवकों को शांतिपूर्ण ढंग से चलने का आदेश दिया गया था।कारसेवकों को नियंत्रण करने वाले लोगों ने यह प्रण लिया था कि उस दौरान जहां पुलिस रोकेगी वहीं बैठ जाना है।जब कारसेवक मणिरामदास छावनी से निकल कर तपस्वी छावनी दिगंबर अखाड़ा होते हुए जा रहे थे तो दिगंबर अखाड़े के पास कारसेवकों को पुलिस ने रोक लिया।कारसेवक वहीं बैठ गए और सीताराम का जाप करने लगे।वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने सीताराम का जाप कर रहे कारसेवकों पर मुलायम सिंह के आदेश के बाद गोली चला दी और सभी कारसेवक शहीद हो गए और उस दौरान जो घटना हुई थी वह काफी भयभीत करने वाली थी और उस दौरान राम के नाम पर गोली चलाई गई थी।
बीते दिनों सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि तत्कालीन (मुलायम सिंह यादव) सरकार ने संविधान और कानून की रक्षा के लिए अमन-चैन कायम करने के लिए गोली चलवाई थी। वो सरकार का अपना कर्तव्य था और उसने अपना कर्तव्य निभाया।बता दें कि साल 1990 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की सरकार के दौरान अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलने से 5 लोगों की मौत हो गई थी।