लखनऊ

मां सिद्धिदात्री को समर्पित नवरात्र का आखिरी दिन,नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा से घर में आती है सुख-समृद्धि –

✍️रोहित नंदन मिश्र

वाराणसी:– सनातन परंपरा में नवरात्र के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा विशेष रूप से की जाती है। नवरात्र की आखिरी तिथि यानी नवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा करने का विधान है। अगर भक्त, शक्ति के नौवें रूप की पूजा करें, तो विशेष फल की प्राप्ति हो सकती है। नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और घर का माहौल खुशनुमा बना रहता है। मां सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत दिव्य है। मां का वाहन सिंह है और देवी भी कमल पर विराजमान हैं। उनकी चार भुजाएं हैं, उनके निचले दाहिने हाथ में एक चक्र, उनके ऊपरी हाथ में एक गदा, उनके निचले बाएँ हाथ में एक शंख और उनके ऊपरी हाथ में एक कमल का फूल है।

 

 *मां सिद्धिदात्री पूजा विधि* 

 

नवमी तिथि के दिन पूजा के समय सबसे पहले कलश की पूजा करनी चाहिए और सभी देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। रोली, मोली, कुमकुम, पुष्प चुनरी आदि से मां की पूजा करें। देवी को हलवा, पूरी, खीर, चने और नारियल का भोग लगाएं। इसके बाद मां के मंत्रों का जाप करना चाहिए। कन्या पूजन में कन्याओं के साथ-साथ एक बालक को भी घर भोजन कराना चाहिए। कन्याओं की उम्र दो से दस साल के बीच होनी चाहिए और उनकी संख्या कम से कम नौ होनी चाहिए।

 

 *इन चीजों का लगाएं भोग* 

 

माता सिद्धिदात्री को हलवा-पूड़ी और चने का भोग लगाना चाहिए। इस प्रसाद को कन्याओं और ब्राह्मणों में बांटना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और जातक पर अपनी कृपा बरसाती हैं।

 

 *मां सिद्धिदात्री मंत्र* 

 

सिद्धगंधर्वयक्षाद्यै:,असुरैरमरैरपि।सेव्यमाना सदा भूयात्,सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

 

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः। सवर्स्धः स्मृता मतिमतीव शुभाम् ददासि।।

 

दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके। मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।

 

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम् ।

 

कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम् ।।

 

 *मैदागिन के गोलघर में है सिद्धिदात्री माता मंदिर* 

 

आज शारदीय नवरात्रि की नवमी है। नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री देवी के दर्शन की मान्यता है। वाराणसी में इनका अति प्राचीन मंदिर मैदागिन गोलघर इलाके की सिद्धमाता गली में स्थित है। सिद्धिदात्री देवी सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने सिद्धिदात्री देवी की कृपा से ही आठ सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्ही की अनुकंपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। जो अर्धनारीश्वर के नाम से जाना जाता है।

 

मां के सिद्धदात्री स्वरूप के दर्शन और पूजन के लिए नवरात्रि में सभी दिन खासकर नवमी को काफी भीड़ होती है। इसी बीच सोमवार को श्रद्धालु तड़के सुबह से मां सिद्धिदात्री के दर्शन के लिए पहुंचने लगे थे। नवमी को मां के दर्शन के लिए भक्त ना केवल वाराणसी, बल्कि दूरदराज इलाकों से भी पहुंचे। घंटों इंतजार करने के बाद भक्तों को माता सिद्धिदात्री के दर्शन का मौका मिला। धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि के आठ दिनों में जो भक्त देवी दरबार में हाजिरी नहीं लगा पाते हैं, वो नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री के दर्शन कर लेते हैं तो उनको नवरात्रि व्रत के पूर्ण फल की प्राप्ति हो जाती है। देवी पुराण में भी माता के महत्व का वर्णन है। काशी शिव और शक्ति की भूमि है। यहां पर शिव भगवान की पूजा होती है तो शक्ति स्वरूप माता आदिशक्ति की आराधना करने का भी विशेष रूप से विधान है।

 

मां के दर्शन पूजन के लिए मुंह अंधेरे से ही भक्तों की कतार लग गई थी । देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं शक्तिस्वरूपा देवी की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं, जिसके प्रभाव से उनका स्वरूप अ‌र्द्धनारीश्वर का हो गया था। इस कारणवश काशी में इनके दर्शन का महत्त्व और भी ज़्यादा है। मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से दुखों का नाश हो जाता है।

 

नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नैवेद्य के रूप में नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए। इस प्रकार नवरात्र का समापन करने से इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी सिद्धिदात्री मां सरस्वती का भी स्वरूप हैं, जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती हैं।

मार्कण्डेय पुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्व- ये आठ सिद्धियां बताई गई हैं। मां सिद्धिदात्री सिंह वाहिनी चतुर्भुजा तथा सर्वदा प्रसन्नवंदना हैं। उनका ध्यान हमारी शक्ति व साम‌र्थ्य को सृजनात्मक व कल्याणकारी कर्मो में प्रवृत्त करता है। देवी सहज प्रसन्न होकर भक्तों को सर्व सिद्धि प्रदान करती हैं, इसलिए शास्त्रों में उन्हें सिद्धिदात्रि नाम से पुकारा गया।

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