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चंद्र ग्रहण विशेष, शरद पूर्णिमा के दुर्लभ उपाय जिसके प्रयोग से आरोग्य, सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति सहज ही होती है

श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिष एवं कर्मकांड पाठशाला

श्री गणेशाय नमः

सूर्यन्दुग्रहणं यावत्तावत्कुर्याज्जपादिकम्‌

किसी कृत्य के सम्पादन में देश और काल का प्रभाव अवश्य पड़ता है | जप-तप आदि में सामान्य स्थान से, देवालय, अरण्य, तीर्थ आदि क्षेत्र अधिक उपजाऊ माने जाते हैं | उसी प्रकार काल यदि शास्त्रोल्लेखित वार, तिथि, नक्षत्र आदि से विशेषित हो तो उसका महत्व भी अनन्त गुना तक बढ़ जाता है ।

शास्त्रों में ग्रहणकाल का अत्यन्त महत्त्व बताया गया है । सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण एक लाख गुना और सूर्यग्रहण दस लाख गुना फलदायक होता है | यदि गंगाजल समीप हो तो चन्द्रग्रहण एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण दस करोड़ गुना फलदायक हो जाता है-

इन्दोर्लक्षगुणं प्रोक्त रवेर्दशगुणं स्मृतम्‌ ।
गंगातोये तु सम्प्राप्ते इन्दो: कोटी रवेर्दश ।।
निर्णयसिन्धु

इसी प्रकार ग्रहणकाल में किया गया जप पुरश्चरण तुल्य माना जाता है । ग्रहण के समय स्वयं आरम्भ और अन्त में स्नान करे | लेकिन मध्य में कोई प्रतिनिधि उसकी ओर से करे | उस अवधि में विधिवत्‌ दीक्षित व्यक्ति जप करता है, पुरश्चरण कल्प हो जाता है । जैसे यह माघ महीना तो एक ही है । लेकिन प्रयाग में कहते हैं कल्पवास | तो यह
विशेषता माघ महीने की है ‘माघ मकरगत रवि जब होइ’।

जैसे ब्रह्मलोक का जो काल है, वो मृत्युलोक की दृष्टि से कम होने पर भी बहुत है । ब्रह्मा जी की सौ वर्षों की आयु (ब्रह्मलोक में) है और मर्त्यलोक की गणना के अनुसार ३१ नील १० खरब ४० अरब वर्षों की गणना सिद्ध होती है | तो तीर्थराज प्रयाग का विशेष माहात्म्य है कि केवल एक महीने का निवास एक कल्प के सदृश मान लिया गया ।

जैसे मान लीजिये हमारा जागृत अवस्था का एक मिनट है, स्वप्नावस्था में एक कल्प के समान भी
परिलक्षित हो सकता है |
जागृत अवस्था में एक नाड़ी विशेष का वर्णन है, (जिसका) तिलभर स्थान है,लेकिन स्वप्नावस्था में आकाश इत्यादि भी उस स्थान में परिलक्षित होते हैं | तो देश का विस्तार हो जाता है, काल का विस्तार हो जाता है । इसी प्रकार जो ग्रहण की दशा में जप करते हैं, वो पुरश्चरण एक कल्प तुल्य हो जाता है |”

भारत को धर्मसापेक्ष, पक्षपातविहीन, सर्वहितप्रद, सनातन शासनतन्त्र हिन्दुराष्ट्र की स्थापना के महान अभियान में निमित्त बनने हेतु तप के बल की आवश्यकता है । इसी हेतु आगामी ग्रहण
काल में गुरुमन्त्र पुरश्चरण अवश्य करें ।

मन्त्र पुरश्चरण

सामान्यतः ग्रहणकाल के कृत्यों में स्नान, प्राणायाम, तर्पण, जप, होम, श्राद्ध, दान आदि करणीय
हैं ।

*शरद पुर्णिमा चंद्रग्रहण*

चंद्रग्रहण संवत २०८० आश्चिन शुक्ल पक्ष १५ शनिवार अंग्रेजी दिनांक २८-९०-१०२३ को भारत मे दृश्यमान
होगा।

भारतीय समय से विरल छायाँ प्रवेश रात्रि ११।३२ बजे
ग्रहण का स्पर्श रात्रि ०१। ०५ बजें – आरंभ स्नान संकल्प तर्पण , जप – पुर्णिमा तिथि
मध्य उन्मीलन ०१। ૪४ बजे – दान संकल्प
मोक्ष रात्रि ०२। २३ बजे – मोक्ष स्नान संकल्प – प्रथमा तिथि
बिरल छायाँ निर्गम रात्रि ०३। ५६ बजे होगा |
इसका सूतक भारतीय समय से दिवा ०४। ०५ बजे से प्रारंभ होगा। यह ग्रहण उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका का पश्चिमी भाग को छोडकर सम्पूर्ण विश्व में दृश्य होगा।
जहां ग्रहण दृश्य होगा उन्हीं स्थानों पर ग्रहण से संबन्धित वेध-सूतक, स्त्रान, दान, पुण्य, कर्म, यम-
नियम मान्य होगें।

स्थान चयन- यद्यपि ग्रहणकाल में सभी जल गंगाजल के समान पवित्र माने जाते हैं, तथापि शास्त्रों में ग्रहणकाल में विशेष स्थलों का माहात्म्य भी बताया गया है । यदि ऐसा पुण्यक्षेत्र समीप ही हो तो उसका सदुपयोग क्‍यों न किया जाये ।

सूर्यग्रहण में पुष्कर और कुरुक्षेत्र के तथा चन्द्रग्रहण में काशी में जपादि का बहुत महत्व है ।
सूर्यग्रहण में नर्मदास्नान और चन्द्रग्रहण में गोदावरी स्नान का महत्व है । इसी प्रकार विशिष्ट मास अनुसार कार्तिक मास में ग्रहण होने पर गंगा-यमुना संगम में जप को श्रेष्ठ माना गया है | ऐसे अनेक प्रमाण शास्त्रों में उललेखित है, तथापि तीर्थाटन अत्यन्त पवित्र मन से सदाचार सम्पन्न दिनचर्या से ही करना चाहिए अन्यथा विशेष देशकाल में पापकर्म भी वज़लेप के समान फल देता है ।

स्नानार्थ गर्म से शीतलजल, भूमि से निकाले जल की अपेक्षा भूमि में स्थित तालाब का और झरने का, उससे श्रेष्ठ गंगा का और गंगा से सभी पवित्रनदियों का विलयस्थान समुद्र का जल श्रेष्ठ है ।

भारत में करोड़ों लोग गंगा आदि पुण्यकारी नदियों और समुद्र तट के समीप रहते हैं, उन सज्जनों को इस विशेष पुण्यप्रद स्थान का अवश्य लाभ उठाना चाहिये । परन्तु ऐसे क्षेत्रों के अभाव में सुविधानुसार किसी भी पवित्रस्थल का चयन करें ।

रात्रिकार्य उत्तरदिशा की ओर मुख करके होता है । अतः जपादि भी उत्तर की ओर (निशामुख) करें ।

सर्वप्रथम पुरश्चरणांग सचैल स्नान करें।

संक्षिप्त गुरुस्मरण, गणपतिस्मरण, न्यासादि करें ।

पुरश्चरण संकल्प- विष्णु विष्णु विष्णु (देश-काल) राहुग्रस्ते निशाकरे —गोत्रोत्पन्न: —-शर्मा अहं(वर्मा अहं /
गुप्ता अहं / दास अहं) -+—देवतायाः अमुकमन्त्रसिद्धिकामो ग्रासाद्‌ विमुक्तिपर्यन्तं
—अमुकदेवताया—-मन्त्रजपरूप पुरश्चरणं करिष्ये |

ग्रहण पुण्यकाल समाप्ति के पश्चात्‌ पुनः सचैलस्नान करें ।

पुरश्चरण अंग के अन्तर्गत दशांश होम, तर्पण, मार्जन, ब्राह्मममोज भी करणीय है । यद्यपि तन्त्रसार के
अनुसार ग्रहण पुरश्चरण में होम न करें तो भी पूर्णता मानी जाती है ।

यदि दशांश होमादि संभव न हो तो उसके स्थान पर द्विगुणित जप भी किये जा सकते हैं ।
ग्रहण के अगले दिन संकल्प लेकर दशांश होमादि के स्थान पर कुल दशांश संख्या का दुगुना जप करें।

दूसरे दिन का जप संकल्प- ग्रहणपुरश्चराणाड्गत्वेन जपदशांशहोम होमदशांशतर्पण तर्पणदरशांशमार्जन
मार्जनदशांशब्रह्ममोजन एतेषां द्विगुणसंख्याक —-देवताया:— मन्त्रजपमहं करिष्ये ।

दशांश होमादि की द्विगुणित जपसंख्या-
उदाहरणार्थ ग्रहण पुण्यकाल में मन्त्र का २००० संख्या में जप किया गया | अतः-
जप का दशांश – २०० होम * २ = ४००

होम का दशांश – २० तर्पण * २ = ४०

तर्पण का दशांश- २ मार्जन * २ = ४

मार्जन का दशांश (न्यूनतम १) ब्राह्मण भोजन

अतः ४००+४०+४+१ =४४५ जप करने होंगे ।

इस प्रकार सर्वसाधारण हेतु सरल विधि द्वारा पुरश्चरण के अवसर का लाभ अवश्य उठायें और
भारत को पुनः हिन्दुराष्ट्र बनाने के अभियान में तपोबल में वृद्धि करें ।

अन्य ध्यान देने योग्य बातें-
भगवान्‌ के पवित्र नाम ( रामा कृष्ण शिव) का कीर्तन करने का सभी को अधिकार है । परन्तु मन्त्रों में अधिकार निर्णय आवश्यक है । बिना अधिकार के मन्त्रों के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिये ।

प्रणव (ॐ), वैदिक गायत्री, महामृत्युजयादि मन्त्र, प्रणव सहित नाम मन्त्र आदि बहुप्रचारित मन्त्र का
जप अधिकारपूर्वक यज्ञोपवीतसम्पन्न, संध्योपासक, भोजनादि संयम सदाचार सम्पन्न द्विज पवित्रदशा में
ही कर सकता है ।

अतः किसी अशास्त्रीय प्रचार में पड़कर, इंटरनेट आदि पर देखकर, बिना गुरुमुख से सुने केवल किसी धर्मग्रंथ में पढ़कर या विधि-निषेध जाने बिना किसी भी मन्त्र का जप नहीं करना चाहिये । ऐसे जप लाभ के स्थान पर हानिकारक ही होते हैं ।

आजकल लोगों को मंत्र में श्रद्धा है, मन्त्र के फल में भी श्रद्धा है । परन्तु उसके विधि-निषेधादि नियमों में श्रद्धा नहीं है । यही धार्मिक लोगों के पतन का कारण है । मन्त्रों में एटम बम से भी अधिक शक्ति होती है | अतः बिना किसी शास्त्रीय मार्गदर्शन के मन्त्रों का जप नहीं करना
चाहिये।

भगवान्‌ के पवित्र राम, कृष्ण, शिव आदि नाम, अच्युत-अनन्त-गोविन्द, शिव-शंकर-प्रलयंकर आदि
अत्यन्त प्रभावकारी संकीर्तन सभी के अधिकार योग्य है।अतः इनका जप-संकीर्तन अवश्य करना
चाहिये।

शरद पूर्णिमा विशेष

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अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है इस वर्ष शरद पूर्णिमा की रात्रि मे आंशिक चन्द्र ग्रहण का योग बन रहा है इस वजह से इस रात्रि मे जो तप का महत्त्व अधिक बाद गया है।शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस बार शरद पूर्णिमा (कोजागरी) का पर्व 28 अक्टूबर शनिवार को मनाया जाएगा इस व्रत में रात्रि के प्रथम प्रहर अथवा सम्पूर्ण निशीथ व्यापनी पूर्णिमा ग्रहण करना चाहिए जो पूर्णिमा रात के समय रहे वहीं ग्रहण करना चाहिए।

 

पूर्णिमा तिथि 28 अक्टूबर को रात्रि 04 बजकर 15 मिनट से आरंभ हो जाएगी। अगले दिन 29 अक्टूबर रात 01 बजकर 51 मिनट पर पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी।

 

शरद पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्त्व

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ज्योतिष के अनुसार, शरद पूर्णिमा को मोह रात्रि कहा जाता है। शरद पूर्णिमा के व्रत को कोजागार या कौमुदी व्रत भी कहते हैं क्योंकि लक्ष्मीजी को जागृति करने के कारण इस व्रत का नाम कोजागार पड़ा इस दिन लक्ष्मी नारायण महालक्ष्मी एवं तुलसी का पूजन किया जाता है।

 

इस दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था। साथ ही माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय भ्रमण में निकलती है यह जानने के लिए कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है। उसी के अनुसार मां लक्ष्मी उनके घर पर ठहरती है। इसीलिए इस दिन सभी लोग जागते है। जिससे कि मां की कृपा उनपर बरसे और उनके घर से कभी भी लक्ष्मी न जाएं।

 

इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। ज्‍योतिष के अनुसार,ऐसा कई वर्षों में पहली बार हो रहा है जब शरद पूर्णिमा और मंगलवार का संयोग बना है। इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं।

 

पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दी धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।

 

शरद पूर्णिमा विधान

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इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और ब्रह्मचर्य भाव से रहे। इस दिन ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (3 घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक सात्विक ब्राह्मणों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा आचार्य को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।

 

शरद पूर्णिमा पर खीर खाने का महत्व

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शरद पूर्णिमा की रात का अगर मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।

 

ग्रहण के कारण चांदनी मे खीर रखने का उपयुक्त समय

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28 अक्टूबर के दिन चन्द्र ग्रहण रहने के कारण आप शरद पूर्णिमा की खीर चतुर्दशी की रात यानि 27 अक्टूबर शुक्रवार की रात बना लें. फिर 28 अक्टूबर को (27 अक्टूबर की रात 12 बजे के बाद) जब शरद पूर्णिमा की तिथि प्रात: 04:17 बजे से शुरू हो तो उस समय उस खीर को चंद्रमा की रोशनी में रख दें। 28 अक्टूबर के प्रात: पूर्णिमा तिथि में चंद्रमा की औषधियुक्त रोशनी प्राप्त हो जाएगी। उस दिन चंद्रास्त प्रात: 04:37 पर होगा। यह समय ऋषिकेश का है (आप अपने स्थान का चंद्रास्त देखे) चंद्रास्त के बाद उस खीर को खा सकते हैं?

 

एक अन्य विकल्प यह है कि आप 28 अक्टूबर के मध्य रात्रि चंद्र ग्रहण के बाद खीर बनाएं और उसे खुले आसमान के नीचे रख दें ताकि उसमें चंद्रमा की रोशनी पड़े बाद में उस खीर को खा सकते हैं।

 

शरद पूर्णिमा व्रत कथा

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एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनो पुत्रियाँ पुर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।

 

उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से पकडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली-” तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ” यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। “उसके बाद नगर में उसने पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

 

इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।

 

शरद पूर्णिमा की रात को क्या करें, क्या न करें ?

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दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं । इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें । नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें।

 

अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं। जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें।’ फिर वह खीर खा लेना चाहिये।

 

इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है ।

 

शरद पूर्णिमा दमे की बीमारी वालों के लिए वरदान का दिन है।

 

चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है। शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है।

अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है । इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है ।

 

सुख समृद्धि के लिए राशि अनुसार करे ये उपाय

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मेष🐐

शरद पूर्णिमा पर मेष राशि के लोग कन्याओं को खीर खिलाएं और चावल को दूध में धोकर बहते पानी में बहाएं। ऐसा करने से आपके सारे कष्ट दूर हो सकते हैं।

 

वृष🐂

इस राशि में चंद्रमा उच्च का होता है। वृष राशि शुक्र की राशि है और राशि स्वामी शुक्र प्रसन्न होने पर भौतिक सुख-सुविधाएं प्रदान करते हैं। शुक्र देवता को प्रसन्न करने के लिए इस राशि के लोग दही और गाय का घी मंदिर में दान करें।

 

मिथुन💏

इस राशि का स्वामी बुध, चंद्र के साथ मिल कर आपकी व्यापारिक एवं कार्य क्षेत्र के निर्णयों को प्रभावित करता है। उन्नति के लिए आप दूध और चावल का दान करें तो उत्तम रहेगा।

 

कर्क🦀

आपके मन का स्वामी चंद्रमा है, जो कि आपका राशि स्वामी भी है। इसलिए आपको तनाव मुक्त और प्रसन्न रहने के लिए मिश्री मिला हुआ दूध मंदिर में दान देना चाहिए।

 

सिंह🐅

आपका राशि का स्वामी सूर्य है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर धन प्राप्ति के लिए मंदिर में गुड़ का दान करें तो आपकी आर्थिक स्थिति में परिवर्तन हो सकता है।

 

कन्या👩

इस पवित्र पर्व पर आपको अपनी राशि के अनुसार 3 से 10 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन में खीर खिलाना विशेष लाभदाई रहेगा।

 

तुला⚖

इस राशि पर शुक्र का विशेष प्रभाव होता है। इस राशि के लोग धन और ऐश्वर्य के लिए धर्म स्थानों यानी मंदिरों पर दूध, चावल व शुद्ध घी का दान दें।

 

वृश्चिक🦂

इस राशि में चंद्रमा नीच का होता है। सुख-शांति और संपन्नता के लिए इस राशि के लोग अपने राशि स्वामी मंगल देव से संबंधित वस्तुओं, कन्याओं को दूध व चांदी का दान दें।

 

धनु🏹

इस राशि का स्वामी गुरु है। इस समय गुरु उच्च राशि में है और गुरु की नौवीं दृष्टि चंद्रमा पर रहेगी। इसलिए इस राशि वालों को शरद पूर्णिमा के अवसर पर किए गए दान का पूरा फल मिलेगा। चने की दाल पीले कपड़े में रख कर मंदिर में दान दें।

 

मकर🐊

इस राशि का स्वामी शनि है। गुरु की सातवी दृष्टि आपकी राशि पर है जो कि शुभ है। आप बहते पानी में चावल बहाएं। इस उपाय से आपकी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।

 

कुंभ🍯

इस राशि के लोगों का राशि स्वामी शनि है। इसलिए इस पर्व पर शनि के उपाय करें तो विशेष लाभ मिलेगा। आप दृष्टिहीनों को भोजन करवाएं।

 

मीन🐳

शरद पूर्णिमा के अवसर पर आपकी राशि में पूर्ण चंद्रोदय होगा। इसलिए आप सुख, ऐश्वर्य और धन की प्राप्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।

✍️रमन शुक्ला

 

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