Uncategorized

जनसंख्या के दम पर शरीयत की स्थापना, अपमानजनक जीवन या दुर्गति पूर्ण मृत्यु का कारण होगी – दिव्य अग्रवाल

जनसंख्या के दम पर शरीयत की स्थापना, अपमानजनक जीवन या दुर्गति पूर्ण मृत्यु का कारण होगी 

मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि और हिन्दू जनसंख्या में कमी पर रिपोर्ट सार्वजनिक हो चुकी है पर हिन्दू समाज के लिए यह विषय गंभीर है ही नहीं । आप सोचिये जब एक व्यक्ति के १० बच्चे थे आज उनके १०-१० बच्चे हैं । इस हिसाब से इस्लामिक समाज की जनसंख्या में २०१५ तक ४३.१५ की वृद्धि थी तो २०१५ से २०२४ तक क्या वृद्धि हुई होगी । इस्लामिक समाज जो सामान्यतः यह कह देता है की राम मंदिर क्या है जब हम ताकत में आएंगे तब देखेंगे तो इसका अर्थ राजनीति से नहीं अपितु सनातनी समाज के अस्तित्व और सुरक्षा से जोड़कर देखना चाहिए । इस्लामिक मौलाना अपनी फौज तैयार कर रहे हैं , वोट जिहाद की बात करते हैं ये सब बाते निराधार नहीं अपितु पूरी योजना के साथ क्रियान्वित हो रही हैं । आज छोटे से छोटे काम से लेकर डॉक्टर , इंजिनियर तक , प्रशासनिक सेवाओं से लेकर न्याय प्रणाली तक में इस्लामिक समाज की संख्या बल अधिक है । जनसंख्या का यह असंतुलन कितना भयावह होने वाला है इस तरफ सनातनी समाज का ध्यान केंद्रित नहीं है । हिन्दू परिवार तो एकल परिवार , लिव इन रिलेशनशिप , एक बच्चा या कुत्ता पालन तक सीमित है । सनातनी समाज अपने परिवारजनों और रिश्तेदारों से मिलने के स्थान पर पाश्चात्य सभ्यता में जीवन यापन को सुखद मान रहा है । सनातनी समाज की जनसँख्या जितनी कम होती जायेगी उतना ही देश के संसाधनों पर सनातनी समाज की पकड़ भी कम होती जायेगी । तत्पश्चात जनसँख्या के दम पर जब शरीयत की स्थापना की जायेगी तो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग ज्यादातर धर्म परिवर्तन करेंगे , संपन्न लोग विदेशो में स्थापित होंगे और मध्यम वर्ग के हिन्दुओ की भयानक दुर्गति या अपमानजनक मृत्यु को प्राप्त होंगे । अब सनातनी समाज आगामी कुछ वर्षों का सुख भोगकर अपनी अग्रिम पीढ़ी को दुर्गति की खाई में धकेल दे या इस समय अपनी संतान और संतति की संख्या में वृद्धि कर अपने परिवार को अग्रिम लड़ाई के लिए शक्ति प्रदान करे ,यह निर्णय भारत के सनातनी समाज का है की किस मार्ग का चयन करना है ।(लेखक व विचारक)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page