बुंदेलखंड

“पत्रकारिता” की आड़ में भटकती कलम का आखिर “जिम्मेदार” कौन?

हम भूल गए हम कौन हैं? चौंकिए मत यह बात शायद हम सच कह रहें हैं!

आत्माराम त्रिपाठी
लंबे अरसे के बाद अधूरी पत्रकारिता देखकर आज हमारी अपनी अंतरात्मा से निकल रहे बिचारों पर हम उलझकर रह गये हैं कहने को तो हम पत्रकार हैं कलमकार हैं देश के चौथे स्तंम्भ के सजग प्रहरी हैं पर हमें अपने कर्तव्यबोध का ज्ञान है यह कह पाना बड़ा मुश्किल है जबकि
हम किस बैनर तले लिख रहे हैं यह महत्वपूर्ण है? या हम क्या लिख रहे हैं यह महत्वपूर्ण है? हम किसके तरफ हाथ बढ़ा रहे हैं यह भी महत्वपूर्ण है? हमारी तरफ कौन हाथ बढ़ा रहा है यह भी महत्वपूर्ण है?
हम उस स्तंभ के प्रहरी है जिसकी तरफ सभी की आशा भरी निगाहें हैं तथा उन आंखों में एक विश्वास की झलक है और एक उम्मीद है जिसे बनाए रखने के लिए हमें कांटों पर चलना होगा बाधक बने अंगारों से चलकर निकलना पड़ेगा यह हम नहीं कह रहे शायद यह हमारे चौथे स्तंभ की मांग है उसका पाक-साफ दर्शन है जिसका हमें अनुसरण करना है।
एक समय वह था की स्वाधीनता दिवस के पहले बिदेशी हुकुमत के खिलाफ लिखने पर पुलिस की बर्बर लाठियों का सामना करना पड़ता था कलमकारों को मौत की सजा, कालेपानी की सजाओं का सामना करना पड़ता रहा किन्तु कलमकारों की कलम नहीं झुकी वह अपने गर्वीले अंदाज में आगे बढ़ती रही जिस पर आज कलमकार ही नहीं पूरा देश गर्व करता है।हम सभी कभी भी उनकी बराबरी नहीं कर सकते क्योंकि वह त्यागी थे बलिदानी थे भारत मां के सच्चे सपूत
थे पर हम उनके आदर्शो को जीवंत रखने का प्रयास तो कर ही सकते हैं पर इसके लिए हमें अपने आपको बदलना होगा अपनी कार्यशैली लेखनशैली में बदलाव लाना होगा। अपने आपको पहचानना होगा की हम चौथे स्तंभ के सजग प्रहरी हैं हमारे तरफ डाकू से लेकर संन्यासी, भ्रष्टाचार से लेकर ईमानदार, पीड़ित से लेकर पीड़ा पहुंचाने वाले तक की ही नहीं नेता से लेकर अभिनेता तक की नजरें इस स्तंभ की तरफ आशा भरी निगाहों से देखती हैं और हम हैं की अपनी पहचान भूल कभी इनके साथ सेल्फी लेने के लिए लालायित रहते हैं तो कभी इनके साथ सेल्फी ली गयी फोटो को गले में लटकाए हुए घूमते नजर आते हैं और ऐसा करने में जहां शर्म का एहसास होना चाहिए वहीं हम खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं आजकेअधिकांश पत्रकार प्रेस विज्ञप्तियों में भरोसा करते हैं तथा विज्ञप्ति पाकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं जरा समझें विज्ञप्ति क्या है विज्ञप्ति जहां से जारी हुई वहां की अर्धसत्य कहानी है जिसे हम पेस्ट कर अपना नाम चिपकाकर पूर्ण मानकर आगे बढ़ा देते हैं एक तरह से देखा जाए जो हम नहीं जानते उसकी भी पुष्टि कर देते हैं की वह सत्य है यानी हमसे दूसरे लोग अपने सत्यता की पुष्टि कराते हैं और हम अपनी बात की पुष्टि के लिए अपनी पहचान के लिए दूसरे के ऊपर निर्भर हो जातें हैं और भूल जाते हैं की हम कौन हैं? अरे हम देवर्षि नारदजी के अनुयायी हैं हम कलमकार है पत्रकार हैं फिर यह इतनी लचारी बेबसी क्यों और कैसे इसलिए हम यह लिखने को बाध्य हो गये की हम भूल गए हम कौन हैं? चौंकिए मत शायद यह बात हम सच कह रहे हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page