वेद धार ब्राह्मण कौन है ?

जो मेहनत किए बिना घर घर सीधा (भिक्षा) मांगता है, वह ब्राह्मण नहीं है । जो ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ हो, किन्तु वह अपने गृह में यज्ञ – याग़ या उपासना भी नहीं करता, वह ब्राह्मण नहीं है । जो चार वेद के नाम नहीं जानता, वेद को धारण करनेवाले ऋषियों के नाम नहीं जानता, वेदमंत्र की संख्या भी नहीं जानता, वह ब्राह्मण नहीं है, भले उसे दवे, वेद, द्विवेदी, त्रिवेदी या चतुर्वेदी से क्यों न पहचाना जाता हो । जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता, कर्म से बनना पड़ता है ।
ईश्वर के प्रति अनन्य श्रद्धा रखनेवाला ब्राह्मण है । ब्रह्म स्थिति में विचरण करनेवाला ब्राह्मण है । वैदिक परंपरा अनुसार विद्यापूर्वक (स्वाध्याय), धर्म पूर्वक (श्रेष्ठ आचरण), योगनुष्ठान (आंतर – बाह्य साधना) करनेवाला ब्राह्मण है । आत्मिक शक्ति से संपन्न ब्राह्मण होता है ।* वह समाज तथा राष्ट्र का मस्तिष्क होता है । समाज, राष्ट्र और वैश्विक स्तर पर परोपकारी कार्य करनेवाला ब्राह्मण होता है ।
अथर्ववेद का मंत्र द्वारा आदेश दे रहा है कि हे ब्रह्मणस्पते ! ज्ञान – विज्ञान का धनी ! तू उठ खड़ा हो जा, सतर्क – सावधान हो जा, व्रत – संकल्प को धारण कर ।
*कैसा संकल्प ?*
देवो को जगाने का संकल्प, देवत्व बढ़ाने का संकल्प ।
*देवो को कैसे जगाया जाय ?*
देवो को यज्ञ से जगाया जाय । उत्तम कार्यों से जगाया जाय ।
*देव कौन है ?
अन्तःकरण में दबे हुए दिव्य भाव, प्रसुप्त सुसंस्कार देव है ।
*स्वाध्याय, सत्संग, साधना, तपस्या, त्याग, सेवा, परोपकार आदि यज्ञ कार्य है । अन्य से कुछ लेकर अधिक मात्रा में जन जन तक पहुंचाना यज्ञ है । अन्य को सहयोग देने हेतु सुख – दुःख आदि द्वंद्व हसते – हसते सहन करना यज्ञ है । यज्ञ कार्य से अन्तःकरण के सुषुप्त दैवीय संस्कारो उभरता है । तपस्या और सेवा भावना से सूक्ष्म शरीर में विद्यमान शक्ति – सामर्थ्य उद्बुद्ध होता है । सभी मनुष्यो (जीवात्माओं) के अन्तःकरण में अनंत जन्मों के अच्छे – बुरे संस्कार विद्यमान होते है । माता, पिता, गुरु, आचार्य, सन्त, विद्वान, पितर जन देव = ब्राह्मण है । वे अपनी ओर से उत्तम वातावरण देकर, श्रेष्ठ गुरुकुल – विद्यालय खोलकर अनिवार्य वैदिक शिक्षा प्रदान करते है तो समस्त समाज – राष्ट्र – विश्व में आर्यत्व = श्रेष्ठता = देवत्व का प्रसारण होता है ।
ब्राह्मण का मुख्य कर्तव्य है कि वह सतर्क सावधान होकर, संकल्प सह ब्रह्म की उपासना करते रहे, साथ साथ ईश्वरीय सेवादि कार्य में सक्रिय रहे तथा यज्ञादि उत्तम कार्य द्वारा आंतर – बाह्य प्रसुप्त देवत्व को जागृत किया जाय ।
मंत्र के दूसरे चरण में *देवत्व जागरण होने से क्या क्या लाभ होता है ?वह बताया है ।
दिव्य शक्तियों का जागरण होने से मनुष्य दीर्घायु होता है । अच्छे उत्तम एवम् पारमार्थिक कार्य करने से शरीर में आनंद, उल्लास, प्रसन्नता की लहर दौड़ने लगती है, जो आयु को बढ़ाकर शरीर सुंदर, पुष्ट, लावण्यमय तथा आकर्षक बनता है । रेचक – कुंभक आदि प्राण के आरोह – अवरोह के अभ्यास से प्राणशक्ति भी बढ़ती है । मन की धारणा शक्ति में वृद्धि होती है । परिणामत: कितना भी दौड़ो, भागो, काम करो, चिंतन करो, बोलो, समस्त व्यवहार अच्छे, निर्बाध गति से सफल होने लगते है । सारे काम परमात्मा को प्रत्यक्ष रखकर, धर्म एवम् योगानुकुल आचरण करने से शरीर रोग रहित, बलवान, सुरूप, ऊर्जावान बनने लगता है । दिव्य आध्यात्मिक संस्कारो को जागृत करने से मनुष्य संयमी, अनुसासन प्रिय, आदर्श वैदिक दिनचर्या अपनाने लगता है । अतः परिवार में संतानों को गर्भ काल से ही उत्तम संस्कार परंपरा से मिलते है । माता – पिता – गुरु – आचार्य – राजा सभी अपने संतान – शिष्य – प्रजा के प्रति गौरव ले सके ऐसे उत्कृष्ट, पराक्रमी, सदाचारी वे बन जाते है । ऐसे आदर्श परिवार में अधिक मात्रा में दूध देनेवाली गौएं होना स्वाभाविक है । जिस परिवार, समाज या राष्ट्र में गौ, अश्व, भेड आदि पशुओं का पालन तथा वृद्धि होती हो, वहां शुद्ध दूध, दही, छास, मख्खन, मलाई, मावा, मिठाई, पनीर, घी आदि की कमी कैसे हो सकती है ? शुद्ध दूध, घी, मख्खन आदि का सेवन करनेवाले परिवार, समाज, राष्ट्र के सदस्य = नागरिक ओजस्वी, तेजस्वी, पराक्रमी, वीर, देशभक्त, शांत, गंभीर तथा परोपकारी बनते हैं ।
यज्ञ के द्वारा सुषुप्त देवो को जब ब्राह्मण जगाता है, तब मनुष्य गण सभी प्रकार की उन्नति प्राप्त करते है, अतः सारे समाज, राष्ट्र, विश्व में यश – कीर्ति – प्रतिष्ठा फैलती है, बढ़ती है ।* परिवार, समाज और राष्ट्र में चरित्रवान, धार्मिक, सदाचारी, आदर्श व्यक्तियों की वृद्धि होने से धन – ऐश्वर्य से संपन्न बढ़ता हैं । अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी का बढ़ना, राष्ट्र का चरित्र उपर उठना, वैज्ञानिक तथा उत्तम गुरुजनों का सम्मान होना, वैदिक संत महात्माओं को सुरक्षित करना, वीर सैनिकों को उत्साहित करना तथा उनके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेना आदि कार्य से सारे विश्व में राष्ट्र का गौरव – प्रतिष्ठा बढ़ती है ।
इस प्रकार के सभी लाभ प्राप्त कर सकते है, जब ब्राह्मण को जगाया जाय तथा यज्ञादि उत्तम कार्यों (वैयक्तिक एवम् सामूहिक रूप से) करवाकर मानवमन स्थित सुषुप्त दिव्य संस्कारो को प्रबुद्ध किया जाय ।
उतिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवान् यज्ञेन बोधय ।
आयु: प्राण° प्रजां पशून् कीर्ति° यजमानं च वर्धय ।।
। – अथर्व.१९.६३.१
पदार्थ:
*(उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते)* हे ज्ञान के स्वामी विद्वान् ! खड़ा हो जा
*(देवान्)* देवो को, शुभ गुणों को, संस्कारो को
*(यज्ञेन)* यज्ञ से = पुरुषार्थ, तपस्या, त्याग, संकल्प से
*(बोधय)* जगा और
*(आयु:)* लंबे जीवन को
*(प्राणम्)* प्राणशक्ति – बल को
*(प्रजाम्)* सुसंतान को
*(पशुन्)* गाय आदि पशुओं को
*(किर्तिम्)* यश – प्रतिष्ठा को
*(यजमानम् च)* और श्रेष्ठ कर्म करनेवाले यजमानों की धन – सम्पत्ति को
*(वर्धय)* बढ़ा