
✍️अजीत उपाध्याय
वाराणसी:-
रामनगर रामलीला के चौबीसवें दिन का प्रसंग –
बहुरी राम सब तन चितई बोले बचन गंभीर।
द्वंद्व युद्ध देख हूं सकल श्रमित भए अति बीर।।
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।।
बीते कल के लीला में जब सभी रावण के महाभट योद्धा मारे जाते हैं तो रावण स्वयं ही युद्ध करने आता हैं वो इतना भयंकर युद्ध करता है कि देवता और सभी बंदर सेना भयभीत हो जाती है ।विभीषण जी रावण को रथ पर देखकर और राम जी को पैदल युद्ध करते देखकर बहुत दुखी होते है परन्तु राम जी उनको ज्ञान देते है कि जिस रथ से युद्ध किया जाता है वो शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिए हैं। सत्य और शील उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। बल, विवेक, दम (इंद्रियों का वश में रखना,)और परोपकार ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं, जिसके पास ऐसा रथ हो उसको किसी पर भी विजय प्राप्त करना कठिन नहीं हैं युद्ध इतना भीषण होता है की उसका वर्णन तुलसी दास जी अद्भुत करते है वो लिखते है,,, युद्ध देखने के लिए नभ में सारे देवता आदि आ जाते है भगवान शिव माता पार्वती से कहते है मैं भी वहां था और राम जी का रण कौशल देख रहा था।
सुर ब्रह्मादी सिद्ध मुनि नाना। देखत रन नभ चढ़े विमाना
हमहुँ उमा रहे तेहि संगा।देखत राम चरित रन रंग
आगे युद्ध वृत्तांत को लिखते है,
धरि गाल फारही उर बिदारही गल अंतावरी मेलही
प्रह्लादपति जनु विविध तनु धरि समर आंगन खेलही।
बंदर राक्षसो के गाल फाड़कर उनका पेट फाड़कर अंतड़िया बाहर निकाल कर अपने गले में टांग लेते है। मानो ऐसा लगता है प्रहलाद के इष्ट देव अर्थात् नरसिंह भगवान का रूप बानर धरकर संग्राम में खेलते है।
आगे के प्रसंग के देखे तो,, ।फिर सभी महान योद्धा रावण से युद्ध करते है। कभी हनुमान जी तो कभी विभीषण ,सुग्रीव, जामवंत ,नल नील परन्तु सभी रावण से युद्ध करके उसके बल की प्रशंसा करके लौट जाते है। रावण भी इन लोगों के बल की प्रशंसा करता है तत्पश्चात लक्ष्मण जी से युद्ध होता है लक्ष्मण जी मूर्छित हो जाते है,तब रावण उनको उठाने के लिए आता है परंतु वह उठा नही पाता तब हनुमान जी लक्ष्मण जी को, राम जी के पास ले जाते है , राम जी के आशिर्वाद और विश्वास से लक्ष्मण जी उठ जाते है। लक्ष्मण जी उठते ही पुनः युद्ध करने के लिए चले जाते है। रावण और लक्ष्मण जी में भयावार युद्ध होता है। लक्ष्मण जी रावण को शक्ति मारते है।रावण मूर्छित हो जाता है और रावण का सारथी रावण को लंका लेकर चला जाता है ।यही कथा का विश्राम हो जाता है और आज की आरती विभीषण जी के द्वारा होती है।