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रामनगर रामलीला; तेइसवे दिन कुंभकरण ,मेघनाद वध – 

 

✍️अजीत उपाध्याय

 

वाराणसी:-

रामनगर रामलीला के तेइसवे कुंभकरण मेघनाद वध दिन का प्रसंग –

नाथ भूधराकर सरीरा। कुंभकरण आवत रणधिरा।।

लक्ष्मण मन अस मंत्र दृढ़वा। यही पापही मै बहुत खेलावा।। 

बीते कल की लीला में जब चारो द्वार टूट जाते है और बहुत से राक्षस मारे जाते है तब रावण अपने भाई कुंभकरण को नींद से जगाता है और सभी घटना को विस्तार पूर्वक बताता है तब कुंभकरण रावण को समझाता है कि आपने जगदम्बा को हरि लिया। राम नर नहीं ,नर नारायण हैं पर रावण भाई के प्रति धर्म का उपदेश देकर और तामसी भोजन का पान करा के कुंभकरण को युद्ध भूमि में भेजता हैं। इस प्रसंग में देखे तो पहले कुंभकरण रावण को समझाता है, जब रावण देखता है की इतनी नीति का बात कर रहा है तब महिषा और मांस मदिरा ग्रहण करने की बात कहता है वो जानता है तामसी भोजन करने से विचार तामसी हो जाएंगे। हम सभी को भी यह बाबा तुलसी दास जी के चौपई से सीखना चाहिए जो उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप में लिखा है। तत्पश्चात कुंभकरण रणभूमि में आता है और भाई विभीषण से मिलकर कहता है अब तुम ही लंका में जीवित रहोगे भाई मैं काल के बस भया हुआ हुं ।मुझे अपना पराया सही गलत कुछ नही सूझता। तब विभीषण जी राम जी के पास कुंभकरण के आने की सूचना देते है।

कुंभकरण बहुत भयंकर युद्ध करता है। हनुमान जी सहित सभी योद्धा कुंभकरण से सामना नहीं कर पाते तब स्वयं राम जी आते है और उसका संहार करते है उसकी आत्मा भगवान के हृदय में विलीन हो हो जाती है और उसकी वीरता का बखान सभी करते हैं ।तब नारद जी आकर राम जी की वंदना करते है। रावण कुंभकरण के मारे जाने पर अधीर हो जाता है तब मेघनाद युद्ध करने की आज्ञा लेकर आता है परन्तु जामवंत जी उसको उसी के त्रिशूल शक्ति से घायल कर देते है ,वो मूर्छित होकर लंका में गिरता है तत्पश्चात मूर्च्छा जब उसका समाप्त होता है तब वो फिर युद्ध के लिए आता हैं और भगवान को नाग फास शक्ति से बांध देता है, तब गरुण जी नारद जी के आदेश करने पर भगवान को नाग फास से छुड़ाकर उनका गुणगान करके चले जाते है।इधर मेघनाद अपनी कुल देवी की पूजा करता रहता है और उधर विभीषण जी राम जी को यह सूचना देते कहते है कि यदि यह यज्ञ सम्पन्न हुआ तो उसको हराना कठिन होगा। तब राम जी, लक्ष्मण जी अंगद जी हनुमान जी सहित उसका यज्ञ भंग करने भेजते है और उसका संहार करने को कहते हैं। तब लक्ष्मण जी यह प्रण लेते है कि आज उसको रण में मारूंगा । वानरी बीर यज्ञ भंग करते है तथा लक्ष्मण जी उसका संहार करते है। हनुमान अंगद जी मेघनाद की प्रंससा करते है और देवता लोग लक्ष्मण जी की वंदना कर धन्यवाद करते है। हनुमान जी के स्पर्श मात्र से ही मेघनाद का पार्थिव शरीर लंका के द्वार पर चला जाता है ।पूरा रावण परिवार विशेष कर मंदोदरी विलाप करती है तब रावण कहता है यह ब्रह्मा का प्रपंच है यह सब होता चला जाता है तुम लोग व्यर्थ में रोते हो। लक्ष्मण जी राम जी के पास आते है ।यही कथा का विश्राम हो जाता है और कल की आरती भी बिभिषण जी के द्वारा होती है।

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