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राजनीति का अपराधीकरण: लोकतंत्र पर अपराधियों का कब्जा

                     आत्माराम त्रिपाठी 

 

भारतीय लोकतंत्र आज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जहां राजनीति का चेहरा अपराधियों और मवाली तत्वों ने हथिया लिया है। पूर्व प्रधानमंत्री और भारतरत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने इस स्याह सच्चाई को बयां करते हुए कहा था, “पहले अपराधी हमारे पास आते थे अपने बचाव के लिए, फिर हम उनकी मदद लेने लगे पोलिंग बूथ पर कब्जा करने के लिए। अपराधियों ने जब देखा कि हमारी सहायता से ये लोग सत्ता में जा रहे हैं, तो उन्होंने सोचा कि हम खुद क्यों न जीतकर जाएं?” यह कथन, जो एक वायरल वीडियो में कैद है, आज की राजनीति की गहरी सड़ांध को उजागर करता है। आज संसद और विधानसभाओं में ऐसे लोग विराजमान हैं, जिनके खिलाफ हत्या, बलात्कार, डकैती और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर अपराधों के मामले दर्ज हैं। यह न केवल लोकतंत्र का अपमान है, बल्कि देश के हर नागरिक के विश्वास का कत्ल है।

राजनीति का अपराधीकरण कोई नई कहानी नहीं है, लेकिन इसकी जड़ें अब इतनी गहरी हो चुकी हैं कि यह लोकतंत्र की नींव को खोखला कर रही हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट्स के मुताबिक, वर्तमान में लगभग 40-50% सांसदों और विधायकों पर आपराधिक मामले लंबित हैं। इनमें से कई तो ऐसे अपराधी हैं, जो न केवल कानून को ठेंगा दिखाते हैं, बल्कि मसल पावर और धनबल के दम पर चुनाव जीतकर सत्ता की कुर्सी तक पहुंच जाते हैं। बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं को धमकाने और फर्जी वोटिंग जैसे हथकंडों के जरिए ये लोग न सिर्फ चुनाव जीतते हैं, बल्कि सिस्टम को अपने कब्जे में ले लेते हैं। क्या यही वह लोकतंत्र है, जिसका सपना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था? जहां जनप्रतिनिधि बनने का हक अपराधियों को मिलता है और ईमानदार लोग हाशिए पर धकेल दिए जाते हैं?

इस संकट के लिए जिम्मेदार केवल अपराधी ही नहीं, बल्कि वे राजनीतिक दल भी हैं, जो अपने तात्कालिक लाभ के लिए अपराधियों को टिकट देते हैं। वाजपेयी जी ने स्वयं स्वीकार किया था कि वे भी इस अपराधीकरण के शिकार रहे, जब उनके खिलाफ चुनाव में अपराधियों का सहारा लिया गया। आज यह प्रवृत्ति और भी खुलेआम हो चुकी है। राजनीतिक दल जीत की लालच में अपराधियों को न केवल आश्रय देते हैं, बल्कि उन्हें अपने दलों का चेहरा बनाते हैं। नतीजा यह है कि संसद और विधानसभाएं अपराधियों का अड्डा बनती जा रही हैं। चुनाव आयोग के हलफनामों में दर्ज अपराधिक रिकॉर्ड इस भयावह सच्चाई को बयां करते हैं। यह शर्मनाक है कि जिन लोगों को जेल में होना चाहिए, वे कानून बनाने की कुर्सियों पर बैठकर देश का भविष्य तय कर रहे हैं।

इस गंभीर समस्या का समाधान तभी संभव है, जब समाज और सिस्टम दोनों मिलकर कड़े कदम उठाएं। चुनाव आयोग को चाहिए कि वह अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सख्त नियम लागू करे। राजनीतिक दलों को भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझनी होगी और अपराधियों को टिकट देने की प्रथा पर रोक लगानी होगी। साथ ही, जनता को भी जागरूक होकर ऐसे उम्मीदवारों को वोट न देना होगा, जिनका इतिहास अपराधों से भरा हो। यदि हम चाहते हैं कि हमारा लोकतंत्र साफ-सुथरा और जवाबदेह बने, तो हमें अपराधीकरण के इस जहर को जड़ से उखाड़ना होगा। वाजपेयी जी की चेतावनी को गंभीरता से लेते हुए, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लोकतंत्र का मंदिर अपराधियों का अड्डा न बने, बल्कि जनता की सच्ची आवाज का प्रतीक बने।

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