
✍️ अजीत उपाध्याय
वाराणसी :-
रामनगर रामलीला के उन्नीसवें दिन का प्रसंग –
प्रभु कर पंकज कपि के सिसा, सुमिरी सो दसा मगन गौरीशा।।
आज की कथा में हनुमान जी माता सीता का पता लगाने के लिए समुद्र को पार करने चल देते हैं। रास्ते में मैनाक पर्वत मिलता है जो हनुमान जी को विश्राम करने के लिए बोलता है परन्तु हनुमान जी कहते हैं मुझे राम काज किए बिना कहां विश्राम हैं!!!आगे देवतो द्वारा भेजी गई सर्पो की माता सुरसा आती है जिनके सामने हनुमान जी अपने बुद्धिमानी का परिचय देते हुए उनके मुख के अंदर प्रवेश करके उनकी बात रख भी लेते और बाहर भी आ जाते है। सुरसा उनकी प्रशंसा करते हुए चली जाती है।
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तत्पश्चात सिंघिका नाम राछसी हनुमान जी के परछाई को खाने के लिए पकड़ती हैं तभी हनुमान जी प्रहार करके उसका संहार कर देते हैं। फिर लंका में जाकर लंकापुरी को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते है,सभी तामसी प्रवृति के थे और सबके भवन सोने के थे। कहीं महिष मानुष धेनु खर अज खल निशाचर भक्षहीं।। उनको लंका में प्रवेश करते लंकिनी देखती है और रोकती है तब हनुमान जी महाराज एक मुष्ठिका प्रहार करते है और उसको ब्रह्मा जी की कहीं बात याद आ जाती है की अब राक्षसों का संघार भया। हनुमान जी माता सीता जी का पता लगाने के लिए मंदिर मंदिर प्रति कर सोधा देखे जह तह अगणित जोधा।। परंतु उनको जानकी जी दिखाई नही देती। खोजते खोजते हनुमान जी महाराज को एक कुटीया दिखाई देती है जहां राम का नाम सुनाई पड़ता हैं। वो सीता जी को खोजते खोजते उस कुटिया में साधु का वेष लेकर जाते हैं ।विभीषण जी उनका सम्मान करते उनका हाल पूछते है। हनुमान जी महाराज उनको अपना परिचय श्री राम दास करके देते है और उनको भगवान के स्वभाव को समझाते है और विभीषण जी से सीता जी का पता लेकर अशोक वाटिका में आते हैं और एक पेड़ के ऊपर छिपकर सब देखते हैं।तभी वहां रावण आता है और सीता जी को बहुत प्रकार से डराने की कोशिश करता हैं पर वो नहीं मानती फिर राक्षसीयों से सीता जी को त्रास दिखाने को बोलकर चला जाता हैं। सभी सीता जी को डराने की कोशिश करती है तभी वहां त्रिजटा आती हैं।(त्रिजटा नाम राक्षसी एका, राम चरण रती निपुन विवेका) और वो अपने सपने के बारे में बोलती है कि राम जी आते है और सभी राक्षस मारे जाते है तथा रावण का सिर मुंडा गधे पर सवार होकर दक्षिण दिशा को जा रहा हैं वो सीता जी को बहुत धीरज देती हैं। तब हनुमान जी राम जी की मुद्रिका गिराते हैं और सीता जी उसे देखकर पहचान लेती है ।हनुमान जी सारी कथा सुनाते हैं और सीता जी से आशीर्वाद लेकर उनको धीरज देते है ।तत्पश्चात अशोक वाटिका को उजाड़ कर रावण के घमंड को चूर करके लंका को जलाकर माता सीता जी के पास विदा लेने आते है ।आशिर्वाद और माता का चूड़ामणि लेकर वो समुद्र पार करके सभी बंदरो के साथ किष्किंधा वापस आते है। भगवान को सब कथा और सीता जी की व्यथा सुनाते हैं। राम जी प्रसन्न होकर उनको अपनी अनपयानी भक्ति प्रदान करते हैं सभी भगवन का जयजय कार करते है यही कथा का विश्राम हो जाता है और आज की आरती भी सुग्रीव जी करते है।