
✍️अजीत उपाध्याय
वाराणसी:- रामनगर रामलीला के पंद्रहवें दिन का प्रसंग –
निसिचर हीन करहूं महि भुज उठाई पन किन्ह। सकल मुनिन के आश्रम जाई जाई सुख दीन्ह।।
आज की लीला चित्रकूट से आरंभ होती है जहां भगवान राम,माता सीता का श्रृंगार स्वयं करते है तभी वहां इंद्र का पुत्र जयंत कौआ का वेश बनाकर माता सीता को आहत करने की कोशिश करता है तभी प्रभु एक बान उसके पीछे छोड़ते है वो सभी त्रिलोक मै जाता है परन्तु उसकी रक्षा कोई नहीं करता तभी नारद जी को दया आ जाती हैं और वो जयंत से बोलते हैं, तुम राम जी के शरण में जाओं।
राम जी उसका एक नेत्र भंग कर देते हैं और वो क्षमा मांगकर अपने लोक लौट जाता है। तत्पश्चात् भगवन माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ अत्री मुनि जी के आश्रम जाते है।मुनि उनका बहुत स्वागत करते है और बहुत विनय भक्ति वंदना करते है। माता सीता को माता अनसुईया नारि धर्म के बारे मै बताती हैं और चिर वस्त्र प्रदान करती है।तब वहां से राम सीता लक्ष्मण जी लोमश ऋषि के पास जाते है और कंद मूल फल का भोग करते है। तत्पश्चात विराध राक्षस का वध करते हुऐ शरभंग ऋषि के पास जाते है और उनका निर्वाण करते है तब वो पथ में दानवो द्वारा मारे गए ऋषियों के हड्डियो का ढ़ेर देखकर श्रीराम जी भुजा उठाकर प्रतिज्ञा करतें हैं कि जब तक इस भूमि से दुष्ट दानवों का वध नहीं कर लेता तब तक अयोध्या वापस नहीं जाऊंगा तत्पश्चात् सुतिक्षण मुनि के पास जाते है वो इतनी सरलभाव से कहते है कि मुझे घमंड हो तो इस बात का हो कि मैं भगवान का दास हूं तब भगवान उनको अपनी भक्ति प्रदान करते हैं। उनके साथ ही भगवान महान कुभंज (अगस्त्य) ऋषि( देवतो की रक्षा के लिए समुद्र को सोखने वाले, विंध्याचल पर्वत के अभिमान मर्दन करने वाले) के पास जाते है जहां से वो अस्त्र शस्त्र ज्ञान लेते हैं और ऋषि जी का आदर करते हुए उनको भी अपनी भक्ति प्रदान करते हैं तत्पश्चात् जटायु जी से भगवन का मिलन होता है । तत्पश्चात गोदावरी तट के किनारे पंचवटी पर्णकुटी बनाकर निवास करते है और लक्ष्मण जी को ईश्वर और जीव के भेद समझाते हैं और कहते है मैं और मेरा,तुम और तेरा ही माया है। भगवन अपने मुख से लक्ष्मण जी को निमित्त बनाकर हम जैसे जीवों को भक्ति प्रेम प्राप्त करने उपदेश देते है।यही आज की कथा का विश्राम हों जाता हैं और आज की आरती स्वयं लक्ष्मण जी करते हैं।