रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला में धनुष यज्ञ परशुराम संवाद संपन्न –

✍️अजीत उपाध्याय –
विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला का आज पाचवाँ दिन प्रसंग –
धनुष यज्ञ, परशुराम संवाद –
धनुर्द्धरं धैर्यधरं धराधरं, धाराधराभं धरणीजनुद्वरम् ।
धुरंधरं धूर्जटि भक्ति बंधुरं, श्री रामचन्द्रं सततम् नमामि ॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा, भए भुवन धुनी घोर कठोरा।
भए भुवन घोर कठोर रव रबि,हम बाजि तजि मारगु चले।।
आज के कथा का प्रारंभ महाराज जनक जी के दरबार से होता है। जहां देश के राजा भगवान् शिव की धनुष को तोड़ने की आशा लेके आते है उसी राज दरबार में जब गुरु विश्वमित्र के साथ श्रीराम और लक्ष्मण जी आते है, तो सभी उनका दर्शन करके आत्मविभोर हो जाते है।
महाराजा जनक के आदेश के अनुसार बंदीजन महाराज जनक जी के प्रतिज्ञा को सुनाते हैं कि जो शिव धनुष को तोड़ेगा उसी से राजकुमारी जानकी जी का विवाह होगा, तत्पश्चात सभी राजा लोग शिव धनुश को तोडने का प्रयास करते है पर उसको हिला भी नहीं सके यह दृश्य देखकर महाराज जनक और महारानी सुनैना अधीर होने लगती है ये देखकर लक्ष्मण जी बहुत क्रोधित होकर बोलते है आप आज्ञा करे तो अभी धनुष को तोड़ दू पर राम जी के संकेत करने पर वो बैठ जाते है तब गुरु की आज्ञा से श्रीराम धनुष को तोडने के लिए आगे बढ़ते है ये दृश्य को देवता जन भी देखकर भाव विभोर हो जाते हैं। जब रामजी धनुष के पास जाते है तो माता सीता मन ही मन भगवान शंकर,माता गौरी तथा माता पृथ्वी से मनाने लगती है की श्री राम जी धनुष को तोड़े दे और पिनाक की गरुता कम हो जाय। बाबा बहुत सुंदर चौपाई लिखते है –
जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू, सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू’ सत्य है, जब किसी का किसी पर सत्य प्रेम हो तो अवश्य ही उसको मिल जाता है इसमें कुछ संदेह नहीं। इससे हम सभी को ईश्वर से सत्य प्रेम करना चाहिए। अवश्य ही भगवन मिल जाएंगे। आगे की कथा देखे तो,राम जी जानकी जी की तरफ देखकर उनके मन की बात को जानकर शिव धनुष को भंग करते है।बाबा इस समय एक बहुत गूढ़ बात लिखते है लीला प्रेमी रसिक जन इसको समझेंगे –
देखी बिपुल बिकल बैदेही। निमिष बिहात कलप सम तेही।
श्री राम जी जब जानकी जी को बहुत ही विकल देखते है उनका एक-एक क्षण कल्प के समान बीत रहा था। तब तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भए भुवन धुनि घोर कठोरा।
भगवान धनुष को भंग करते है। इसके आंतरिक भाव को समझे तो जब भगवान अपने भक्त को दुखी देखते है जो भक्त उनसे इतना प्रेम करता है उनको पाने की इच्छा रखता है और वह जब प्रेम में व्याकुल हो जाता है तब भगवान उसके समूल दुख के कारण को ही धनुष जैसे तोड़ देते है और उसको सुख प्रदान करते है। आगे कथा की ओर चले तो,जब भगवान धनुष तोड़ते है तो तभी चारो तरफ एक प्रसन्नता और राममय भक्ति की लहर उठ जाती हैं फिर माता सीता,राम जी को जयमाला पहनाती है।।।शिव धनुष के टूटने पर उसके तीव्र आवाज से सूर्य देवता के रथ के घोड़ों की दिशा बदल जाती हैं जिससे विपरीत समय भी अनुकूल और शुभ समय में परिवर्तित हो जाता है ये दृश्य भी रामनगर की रामलीला में दिखाई देता है जो रामलीला नेमी होगा वो ध्यान दिया होगा। जनकपुर के एक दरवाजे पर पश्चिम दिशा की तरफ घोड़े को ऊपर रखा जाता है।यही सब कारणों से रामनगर रामलीला प्रसिद्ध हैं।तत्पश्चात क्रोधित भगवान परशुराम आते है उनके आने से सभी भयभीत हो जाते है पर लक्ष्मण जी के साथ उनका वीर रस में संवाद होता है। रामलीला में लखन और परशुराम जी का संवाद सुनने के लिए प्रेमी जन बहुत आतुर रहते है। ज्यादा से ज्यादा लोगोंका ऐसा विचार होता है को लखन जी हमेशा क्रोधित स्वभाव में होते है परंतु उनके चरित्र के गूढता में उतरेंगे तो वह राम कृपा को प्रदान कराने वाले है। बाबा बालकांड में लिखते है –
बंदउँ लछिमन पद जल जाता। सीतल सुभग भगत सुख दाता।
रघुपति कीरति बिमल पताका। दंड समान भयउ जस जाका।।
बाबा कहते है मैं श्री लखन जी के चरण कमलों को प्रणाम करता हूँ, जो शीतल सुंदर और भक्तों को सुख देने वाले हैं। श्री रघुनाथजी की कीर्ति रूपी विमल पताका के लखन लाल जी दंड के समान है। इसलिए जब जब कोई राम जी के प्रभाव या स्वभाव को नही समझकर प्रभु की अवहेलना करता है तब तब लखन जी दंड के समान जरा कठोर हो जाते है। वो क्रोधी उग्र नही बस राम जी के भक्तो में उठने वाले संशय को कड़वी दवा की कृपा देकर ठीक कर देते है। आगे कथा पर चलते है,तब परशुराम जी राम जी के रूप ,गुण, शील को देखकर वो भगवान राम को पहचान लेते है और अपना धनुष उनको अर्पण करके चले जाते है तत्पश्चात् महाराजा जनक अपने दूत को अयोध्या महाराजा दशरथ को निमंत्रण देने के लिए भजेते है और आज की कथा का विश्राम हो जाता है और प्रतिदिन कि तरह राम आरती होती है और आज की आरती महाराजा जनक के द्वारा कि जाती हैं।