
नवीन तिवारी
वाराणसी:– वाराणसी के पास रामनगर में रामलीला,एक महीने तक चलने वाला यूनेस्को-मान्यता प्राप्त उत्सव है जो भगवान राम के जीवन को दर्शाता है. यह 1830 के दशक में शुरू हुआ और आज भी अपनी पारंपरिक शैली में, बिना किसी आधुनिक ध्वनि तकनीक के, मशालों की रोशनी में आयोजित होता है. यह प्राचीन और भव्य आयोजन दुनिया भर से पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, जो इसे सबसे बड़े रामलीलाओं में से एक बनाता है.
विश्वप्रसिद्ध रामनगर की ऐतिहासिक रामलीला का शुभारंभ आज शनिवार 6 सितंबर 2025 की संध्या भव्य ढंग से श्री गणेश हुआ।परंपरागत धार्मिक अनुष्ठानों और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ लीला मंचन का प्रथम दिन आरंभ हुआ।
सदियों पुरानी इस रामलीला में आज भी वही परंपरा कायम है, जहाँ आधुनिक मंच सज्जा या कृत्रिम रोशनी के बजाय प्राकृतिक परिवेश और वास्तविक पात्रों के अभिनय से धार्मिक प्रसंग जीवंत हो उठते हैं। उद्घाटन दिवस पर बालकांड का मंचन किया गया, जिसमें राम जन्म और ताड़का वध जैसे प्रसंगों को दर्शाया गया। संवाद और गीतों के माध्यम से कलाकारों ने उपस्थित श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
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रामनगर किले के विशाल मैदान और गलियों में हजारों की संख्या में श्रद्धालु और दर्शक जुटे। मंचन के दौरान दर्शक “जय श्रीराम” के उद्घोष के साथ पूरे वातावरण को भक्तिमय बना रहे थे।
गौरतलब है कि रामनगर की रामलीला की परंपरा लगभग 200 वर्षों से भी अधिक पुरानी है। काशी नरेश अनंत नारायण सिंह की उपस्थिति और देखरेख में आज भी इसका आयोजन होता है। UNESCO के इंटेंजिबल धरोहर में शामिल यह लीला 227 साल पुरानी हैं।