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एक शाम गुमनाम शहीदों के नाम –

 

 

 

लखनऊ:-  आजादी के 79वें वर्षगांठ के साप्ताहिक दिवस समारोह में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद लखनऊ महानगर द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जिसके अंतर्गत आज अभाविप सिटी लॉ कॉलेज जानकीपुरम इकाई एवं टीम दर्पण के संयुक्त तत्वाधान में भारत के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में अपर महाधिवक्ता उच्च न्यायालय खंडपीठ, लखनऊ कुलदीपपति त्रिपाठी, एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार के विधान परिषद सदस्य अवनीश सिंह एवं मुख्य वक्ता के रूप में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रांत मंत्री पुष्पेंद्र बाजपेई ने एक साथ मां सरस्वती एवं स्वामी विवेकानंद तथा अमर बालदानियों के चित्र के सम्मुख पुष्पार्चन कर श्रद्धांजलि अर्पित की।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सिटी लॉ इकाई जानकीपुरम द्वारा भारत के उन सभी अमर शहीद स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई जिन्होंने अपने देश की रक्षा के खातिर अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। इस अवसर पर शहीदों को नमन करते हुए टीम दर्पण के द्वारा भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें अमर शहीद बिरसा मुंडा,पंडित राम प्रसाद बिसमिल, दुर्गा भाभी ,मतंगना हज़रा, जतिन दास, खुदी राम बोस कमला देवी आदि सैकोडो अमर शहीद को नमन करते हुए श्रद्धांजलि उन्हें नमन किया।

 गुमनाम शहीदों को याद करते हुए कुलदीप पति त्रिपाठी ने कहा कि, दस वर्ष की अल्प आयु में ही दुर्गा भाभी का विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा के साथ हो गया। इनके ससुर शिवचरण जी रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें राय साहब का खिताब दिया था। भगवती चरण बोहरा राय साहब का पुत्र होने के बावजूद अंग्रेजों की दासता से देश को मुक्त कराना चाहते थे। वे क्रांतिकारी संगठन के प्रचार सचिव थे। वर्ष 1920 में पिता जी की मृत्यु के पश्चात भगवती चरण वोहरा खुलकर क्रांति में आ गए और उनकी पत्‍‌नी दुर्गा भाभी ने भी पूर्ण रूप से सहयोग किया। सन् 1923 में भगवती चरण वोहरा ने नेशनल कालेज बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की और दुर्गा भाभी ने प्रभाकर की डिग्री हासिल की।

 

 विशिष्ट अतिथि विधान परिषद अवनीश सिंह पटेल ने मातंगिनी हाजरा के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 1930 के दशक में, अपनी कमज़ोर शारीरिक स्थिति के बावजूद, हाज़रा जेल से रिहा होने के तुरंत बाद अछूतों की मदद करने के लिए अपने सामाजिक कार्यों में वापस लौट गईं। हमेशा मानवीय कार्यों में लगी रहने वाली, उन्होंने प्रभावित पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के बीच काम किया जब क्षेत्र में महामारी के रूप में चेचक फैल गया। भारत छोड़ो आंदोलन के हिस्से के रूप में , कांग्रेस के सदस्यों ने मेदिनीपुर जिले के विभिन्न पुलिस स्टेशनों और अन्य सरकारी कार्यालयों पर कब्जा करने की योजना बनाई। यह जिले में ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने और एक स्वतंत्र भारतीय राज्य की स्थापना की दिशा में एक कदम था। हाजरा, जो उस समय 72 वर्ष की थीं, ने तामलुक पुलिस स्टेशन पर कब्जा करने के उद्देश्य से छह हजार समर्थकों, जिनमें ज्यादातर महिला स्वयंसेवक थीं, के जुलूस का नेतृत्व किया। 

मुख्य वक्ता अभाविप अवध प्रांत मंत्री पुष्पेंद्र बाजपेई ने भगवान बिरसा मुंडा को नमन करते हुए कहा कि झारखंड में अंग्रेजों के आने से पहले झारखंडियों का राज था लेकिन अंग्रेजी शासन लागू होने के बाद झारखंड के आदिवासियों को अपनी स्वतंत्र और स्वायत्ता पर खतरा महसूस होने लगा। आदिवासी सैकड़ों सालों से जल, जंगल और जमीन के सहारे खुली हवा में अपना जीवन जीते रहे हैं। आदिवासी समुदाय के बारे में ये माना जाता है कि वह दूसरे समुदाय की अपेक्षा अपनी स्वतंत्रता व अधिकारों को लेकर ज्यादा संवेदनशील रहा है। इसीलिए वह बाकी चीजों को खोने की कीमत पर भी आजादी के एहसास को बचाने के लिए लड़ता और संघर्ष करता रहा है। अंग्रेजों ने जब आदिवासियों से उनके जल, जंगल, जमीन को छीनने की कोशिश की तो उलगुलान यानी आंदोलन हुआ। इस उलगुलान का ऐलान करने वाले बिरसा मुंडा ही थे। बिरसा मुंडा ने ‘अंग्रेजों अपनो देश वापस जाओ’ का नारा देकर उलगुलान का ठीक वैसे ही नेतृत्व किया जैसे बाद में स्वतंत्रता की लड़ाई के दूसरे नायकों ने इसी तरह के नारे देकर देशवासियों के भीतर जोश पैदा किया। इस श्रद्धांजलि सभा कार्यक्रम में अभाविप सिटी लॉ कॉलेज इकाई अध्यक्ष शांडिल्य सूरज त्रिपाठी

प्रांत प्रतियोगी छात्र संयोजक उत्कर्ष अवस्थी , डॉ. राजीव श्रीवास्तव , जिला संयोजक अभिषेक सिंह,राजेश गुप्ता जिला मंत्री सेवा भारती मातृ शक्ति संस्था संस्थापक पिंकी शुक्ला, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नगर संघ चालक अजय रस्तोगी, सहित तमाम छात्र एवं छात्राएं उपस्थित रहे। 

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