वाराणसी
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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में होगा तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन, सम सामयिक विषयों पर होगी चर्चा –

 

✍️नवीन तिवारी

वाराणसी:- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान संकाय के ज्योतिष विभाग द्वारा एक महत्वपूर्ण त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। यह सम्मेलन 20 से 22 मार्च तक आयोजित होगा, जिसमें भारतीय ज्योतिष से जुड़े समसामयिक विषयों पर विद्वानों द्वारा गहन चर्चा की जाएगी।

भारतीय ज्योतिष विज्ञान प्राचीन काल से ही धर्म, संस्कृति और समाज के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है। पंचांग और विवाह मेलापक जैसी व्यवस्थाएँ न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए आवश्यक हैं, बल्कि आम जनजीवन में भी इनका व्यापक प्रभाव रहता है। इसी दृष्टि से इस सम्मेलन में दो प्रमुख विषयों पर विचार-विमर्श किया जाएगा— पंचांग की शास्त्रीय व्यवस्था (सबीज-निर्बीज) और विवाह हेतु मेलापक की सामयिक व्यवस्था (दोष-परिहार)।

 

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में होगा तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन, सम सामयिक विषयों पर होगी चर्चा –

 

पंचांग निर्माण में भिन्नताओं पर होगी चर्चा –

सनातन धर्म में पंचांग का विशेष महत्व है क्योंकि यह व्रत, पर्व, तिथि और अनुष्ठानों की समय-सीमा निर्धारित करता है। ज्योतिष शास्त्र में पंचांग निर्माण की पारंपरिक प्रक्रिया को विस्तृत रूप से प्रतिपादित किया गया है, लेकिन वर्तमान समय में विभिन्न गणितीय पद्धतियों के कारण इसमें कई भिन्नताएँ देखने को मिल रही हैं। विशेष रूप से, सबीज और निर्बीज गणना पद्धतियों के अंतर के कारण तिथियों में असमानता उत्पन्न हो रही है, जिससे धार्मिक आयोजनों और व्रत-पर्व की तिथियों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है।

 

इस सम्मेलन में विद्वान इस विषय पर मंथन करेंगे कि पंचांग की कौन-सी शास्त्रीय पद्धति को मान्यता दी जानी चाहिए और विभिन्न गणितीय मतभेदों को कैसे सुलझाया जा सकता है। यह विमर्श इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होगा कि पंचांगों में तालमेल बैठाकर सनातन धर्म की परंपराओं को वैज्ञानिक और व्यवस्थित तरीके से संरक्षित किया जा सके।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में होगा तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन, सम सामयिक विषयों पर होगी चर्चा –

 

विवाह मेलापक की प्रासंगिकता पर होगा पुनर्विचार –

सम्मेलन का दूसरा प्रमुख विषय विवाह मेलापक से संबंधित है। पारंपरिक रूप से विवाह हेतु कुंडली मिलान की प्रक्रिया में अष्टकूट मिलान और मांगलिक दोष को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन बदलते सामाजिक परिदृश्य में विवाह में हो रही देरी को कुछ लोग इस प्रक्रिया से जोड़कर देखने लगे हैं।

 

विवाह मेलापक केवल अनुकूलता का एक आधार है, न कि विवाह में विलंब का कारण। आज के समय में यह आवश्यक हो गया है कि ज्योतिषीय मानकों की वैज्ञानिक समीक्षा की जाए और विवाह संबंधी दोषों के परिहार को लेकर एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाए। इस सम्मेलन में इस विषय पर भी विस्तार से विचार किया जाएगा ताकि समाज में फैली भ्रांतियों को दूर किया जा सके और ज्योतिष विज्ञान की प्रासंगिकता को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया जा सके।

 

सम्मेलन से ज्योतिषीय शोध को मिलेगा नया आयाम –

इस त्रिदिवसीय सम्मेलन में देश-विदेश के ख्यातिप्राप्त ज्योतिषविदों और विद्वानों के साथ-साथ शोधार्थी भी भाग लेंगे। सम्मेलन का उद्देश्य केवल विचार-विमर्श तक सीमित नहीं होगा, बल्कि इससे प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर ज्योतिषीय सिद्धांतों को समाजोपयोगी और समसामयिक बनाने के प्रयास किए जाएंगे।

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