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कब मनाये अष्टमी और नवमी;नवरात्रमें किस प्रकारकी कन्याका पूजन करना चाहिये ?

पंडित रमन कुमार शुक्ल राष्ट्रीय उपध्यक्ष श्री काशी विश्वनाथ धार्मिक अनुसंधान संस्थान ट्रस्ट वाराणसी (रजि ०)

 कब मनाये अष्टमी और नवमी (शंका समाधान) 

ज्योतिषाचार्य सतीश शुक्ला ने बताया – अश्विन शुक्ल नवमी के दिन महानवमी का पर्व मनाया जाता है। यह दो प्रकार की होती है। (1) पूजा एवं उपवास के लिये (2) बलिदान एवं हवन के लिये 10 अक्टूबर को प्रात:07:30 से अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी और 11 अक्टूबर को प्रातः 06: 52 पर इसका समापन होगा।

तो वहीं नवमी तिथि 11 अक्टूबर को प्रातः 06:53 से प्रारंभ होकर 12 अक्टूबर प्रातः 05:47 तक समाप्त होगी।

इसके अलावा 10 अक्टूबर को अष्टमी व्रत नहीं रखा जाएगा, क्योंकि सप्तमी युक्त अष्टमी व्रत रखना धर्म ग्रंथो में निषेध माना जाता है।

 

पूजा एवं उपवास के लिए अष्टमी विद्धा नवमी ली जाती है तथा बलिदान व हवन के लिए दशमी विद्धा नवमी। अतः धर्म सिन्धु के अनुसार इस वर्ष 11 अक्टूबर के दिन नवमी अष्टमी विद्धा होने से (अष्टमी एवं नवमी तिथि) का पूजा उपवास इसी दिन तथा 12 अक्टूबर के दिन नवमी दशमी विद्धा होने से बलिदान व हवन कार्य इसी दिन करना उचित रहेगा।

कन्या पूजन मुहूर्त- 

11 अक्टूबर को कई शुभ मुहूर्त कन्या पूजन के लिए बन रहे हैं. जिसमें ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 4:41 से लेकर 5:30 तक रहेगा इसके बाद अभिजीत मुहूर्त दिन 11:43 से लेकर दोपहर 12:30 तक रहेगा। विजय मुहूर्त दोपहर 2:03 से लेकर 2:49 रहेगा। इसके अतिरिक्त गोधूलि मुहूर्त सायं 5:55 से लेकर 6:19 तक रहेगा। इस मुहूर्त में आप कन्या पूजन कर सकते हैं।

प्रश्न:-नवरात्रमें किस प्रकारकी कन्याका पूजन करना चाहिये ?

उत्तर :- दो से दशवर्ष तककी आयुकी चारों वर्णोंकी कन्याओंके पूजनका विधान है। 

 

इसका शास्त्रीय आधार क्या है ?

निर्णयसिंधुके कुमारीपूजा निर्णयमें द्वितीयपरिच्छेद पेज नंबर 283 इसमें हेमाद्रीमें स्कंदपुराण और श्रीमद्देवीभागवतके उद्धरणसे दिया गया है कि –

एकवर्षा न कर्तव्या कन्या पूजाविधौ नृप।

परमज्ञा तु भोगानां गन्धादीनां च बालिका।।

  श्रीमद्देवीभागवत- 3/26/40

एक वर्ष की अवस्था वाली कन्या को पूजन में नहीं लेना चाहिए क्योंकि वह कन्या गंध और भोग आदि पदार्थों के स्वाद से बिल्कुल अनभिज्ञ रहती है ।

 

कुमारिका तु सा प्रोक्ता द्विवर्षा या भवेदिह।

त्रिमूर्तिश्च त्रिवर्षा च कल्याणी चतुरब्दिका।।

     श्रीमद्देवीभागवत 3/26/41

कुमारी कन्या वह कही गई है जो दो वर्ष की हो चुकी हो। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति चारवर्ष की कन्या कल्याणी।

 

रोहिणी पञ्चवर्षा च षड्वर्षा कालिका स्मृता।

चण्डिका सप्तवर्षा स्यादष्टवर्षा च शाम्भवी।।

       श्रीमद्देवीभागवत 3/26/42

 पांच वर्ष की रोहिणी , छै वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शांभवी।

 

 नववर्षा भवेद् दुर्गा सुभद्रा दशवार्षिकी।

 अत ऊर्वं न कर्तव्या सर्वकार्यविगर्हिता।।

              श्रीमद्देवीभागवत 3/26/43

 

 नव वर्ष की दुर्गा, और 09 वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है । इससे ऊपर की अवस्था वाली कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए यदि करते हैं तो सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं।

 

1. कुमारी कन्या पूजन करने पर दु:ख तथा दारिद्र्य का नाश करती है।

2. त्रिमूर्ति धर्म अर्थ काम की पूर्ति करती है और पुत्र पौत्रादि की वृद्धि करती है ।

3. कल्याणी नाम की कन्या राजा को विद्या, विजय, राज सुख प्रदान करती है।

4. रोहिणी सम्पूर्ण रोगों का विनाश करती है।

5. कालिका शत्रुओं का नाश करती है। 

6. चण्डिका धन तथा ऐश्वर्य प्रदान करती है। 

7. शाम्भवी सम्मोहन दु:ख दारिद्र्य का नाश तथा संग्राम में विजय प्रदान करती है। 

8. दुर्गा क्रूूर शत्रु का विनाश उग्रकर्म की साधना और परलोक सुख प्रदान करती है।

9. सुभद्रा हर मनोरथ की पूर्ति करती है। 

       श्रीमद्देवीभागवत-3/26/45-51

 

इनमन्त्रोंसे पूजन करें —

मन्त्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।

नवदुर्गात्मिकांसाक्षात्कन्यामावाहयाम्यहम्।।

गत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरूपिणि।

पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोsस्तु ते ।।

 धर्मसिन्धु कुमारीपूजाविधि पृष्ठ-136

     

  

कितनी कन्याओंका पूजन करे ?—

एकैकां पूजयेत्कन्यामेकवृद्ध्या तथैव च।

द्विगुणं त्रिगुणं वापि प्रत्येकं नवकं तु वा।।

निर्णयसिन्धुमें स्कंदपुराणका वाक्य जो हेमाद्रीमें उल्लेखित है उसका उल्लेख करते हुए कहते हैं कि— प्रतिदिन एक-एक कन्याकी पूजा करें,अथवा प्रतिदिन एक-एक की वृद्धि करके करे- प्रतिपदाको एक द्वितिया को दो तृतीया को तीन इस तरह से करें। 

अथवा दो गुनी तीन गुनी करके पूजा करें प्रतिपदा को एक द्वितीया को दो तृतीया को चार चतुर्थी को आठ पंचमी को 16 ऐसा करके भी कर सकते हैं। 

 

अथवा प्रतिदिन नौ नौ कन्या की पूजा करें –

 

नौ कन्याओं का पूजन करने से भूमि का लाभ होता है। कुंवारियों के पूजन से दुगुना ऐश्वर्य मिलता है।प्रतिदिन एक एक की वृद्धि करके पूजन करने से कुशल प्राप्त होता है और प्रतिदिन एक ही कन्या का पूजन करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

 

 किस वर्णकी कन्याका पूजन करना चाहिये ?—

 ब्राह्मणीं सर्वकार्येषु जयार्थे नृपवंशजाम्।

 लाभार्थे वैश्यवंशोत्थां सुतार्थे शूद्रवंशजाम्।।

 दारुणे चान्त्यजातानां पूजयेद्विधिना नर: ।।

 

 सब कार्योंकी सिद्धि के लिए ब्राह्मण कन्या, विजय के लिए क्षत्रिय की कन्या, लाभ के लिए वैश्य की कन्या तथा पुत्र प्राप्ति के लिए शूद्र की कन्या का पूजन करें।

 और मारण के लिए अन्त्यज की कन्या का पूजन मनुष्य को करना चाहिए. 

 

 

 किस प्रकारकी कन्याका पूजन न करें ?—

 

 हीनाङ्गीं वर्जयेत्कन्यां कुष्ठयुक्तां ब्रणाङ्किताम्।

 गन्धस्फुरितहीनाङ्गी विशालकुलसम्भवाम्।।

  श्रीमद्देवीभागवत-3/27/01

 

 जो कन्या किसी अङ्ग से हीन हो, कोढ तथा घाव युक्त हो, जिसके शरीर से किसी अंग से दुर्गंध आती हो और जो विशाल कुल में उत्पन्न हुई हो ऐसी कन्या का पूजा में परित्याग कर देना चाहिए।

 

 जात्यन्धां केकरां काणीं कुरूपां बहुरोमशाम्।

 सन्त्यजेद्रोगिणीं कन्यां रक्तपुष्पादिनाङ्किताम्।।

  श्रीमद्देवीभागवत-3/27/02

 

 जन्म से अन्धी,तिरछी नजर से देखने वाली ,कानी, कुरूप, बहुत रोमावाली,रोगी तथा रजस्वला कन्या का पूजा में परित्याग कर देना चाहिये।

 

 क्षामां गर्भसमुद्भूतां गोलकां कन्यकोद्भवाम्।

 वर्जनीया: सदा चैता: सर्वपूजादिकर्मसु।।

 श्रीमद्देवीभागवत 3/27/03

 

  अत्यंत दुर्बल , समय से पूर्व गर्भ से उत्पन्न , विधवा स्त्री से उत्पन्न , तथा कुवारी कन्या से उत्पन्न ये सभी कन्याएं पूजा आदि सभी कार्यों में सर्वथा त्याज्य हैं।

 

कैसी कन्याएं पूजनके योग्य हैं?—

 

  अरोगिणीं सुरूपाङ्गीं सुन्दरीं ब्रणवर्जिताम्।

   एकवंशसमुद्भूतां कन्यां सम्यक्प्रपूजयेत्।।

 श्रीमद्देवीभागवत 3/27/04

 

   रोग रहित, रूपवान अंगों वाली ,सौंदर्यमयी,घावरहित, तथा एकवंंशमें यानी अपने माता-पिता से उत्पन्न कन्या की विधिवत पूजा करनी चाहिए।

 

विशेष —

किसको किस वर्णकी कन्याका पूजन करना चाहिये ?

 

ब्राह्मणैर्ब्रह्मजा: पूज्या: राजन्यैर्ब्रह्मवंशजा:।

वैश्यैस्त्रिवर्गजा: पूज्याश्चतस्त्र: पादसम्भवै:।।

 श्रीमद्देवीभागवत 3/27/06

 

ब्राह्मणोंको ब्राह्मण वर्ण में उत्पन्न कन्या का पूजन करना चाहिए। 

क्षत्रियोंको ब्राह्मण वर्ण तथा क्षत्रिय वर्ण में उत्पन्न कन्या का पूजन करना चाहिये। 

वैश्योंको ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य वर्ण में उत्पन्न कन्या का पूजन करना चाहिये। तथा च

शूद्रोंको ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्णमें उत्पन्न कन्याका पूजन करना चाहिए

 अंतमें यही कहा है कि- मनुष्य को अपने-अपने वंश में उत्पन्न कन्याओं का पूजन करना चाहिए।

 

नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव –

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