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पितृ पक्ष में एकादशी व्रत करना चाहिए या नहीं? शास्त्र सम्मत विधि निषेध का विश्लेषण –

पंडित रमन कुमार शुक्ल राष्ट्रीय उपध्यक्ष श्री काशी विश्वनाथ धार्मिक अनुसंधान संस्थान ट्रस्ट वाराणसी (रजि ०)

 

पितृपक्ष में एकादशी का व्रत करना चाहिए या नहीं शंका समाधान – 

वाराणसी:- ज्योतिष आचार्य सतीश शुक्ला ने बताया – इस बार इंद्रा एकादशी तिथि 27 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 20 मिनट पर आरंभ होगी और 28 सितंबर को दोपहर 02 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगी।

इंदिरा एकादशी व्रत 28 सितंबर 2024, शनिवार को ही रखा जाएगा।

अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी का व्रत होता है. पौराणिक कथा के अनुसार, जो व्य​क्ति इंदिरा एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. मृत्यु के बाद उसे भी स्वर्ग लोक में स्थान मिलता है. यदि आप अपने पितरों को तृप्त करके मोक्ष दिलाना चा​हते हैं तो आपको विधि विधान से इंदिरा एकादशी का व्रत करना चाहिए.

प्रश्न पैदा होता है कि एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं होता❓

 

शास्त्र की आज्ञा है कि एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिये। पुष्कर खंड में भगवान शंकर ने पार्वती जी को स्पष्ट रूप से कहा है,जो एकादशी के दिन श्राद्ध करते हैं तो श्राद्ध को खाने वाला और श्राद्ध को खिलाने वाला और जिस के निमित्त वह श्राद्ध हो रहा है वह पितर, तीनों नरक गामी होते हैं।उसके लिए ठीक तो यही होगा कि वह उस दिन के निमित्त द्वादशी को श्राद्ध करें।तो हमारे महापुरुषों का कहना है कि अगर द्वादशी को श्राद्ध नहीं करें और एकादशी को करना चाहें तो पितरों का पूजन कर ब्राह्मण को केवल फलाहार करावें । भले ही वह ब्राह्मण एकादशी करता हो या ना करता हो। लेकिन हमें उस दिन उसे फलाहार ही करवाना चाहिए और स्वयं को भी एकादशी का उपवास रखना चाहिए।

 

हालांकि पुराणों मे लिखा है श्राद्ध के दिन उपवास न करे 

श्राद्धे जन्म दिने चैव संक्रान्त्यां राहुसूतके।

उपवासं न कुर्वीत यदीच्छेच्छ्रेयमात्मनः।।

फिर भी यदि उस दिन एकादशी हो तो उपवास अवश्य करे क्योंकि श्राद्ध तो एक नैमित्तिक घटना या कर्म है

उपवासो यदा नित्यः,श्राद्धं नैमित्तिकं भवेत्।

उपवासं सदा कुर्यादाघ्राय पितृसेवितम् हा,उस दिन पितरों को भेंट किया अन्न या रसोई सूंघ ले। 

उपवास का लक्षण बताते शास्त्र कहते है 

उपावृत्तस्य पापेभ्योः यस्तु वासो गुणैस्सह। 

उपवासस्य विज्ञेयो सर्वभोगविवर्जितः।। 

पापों से दूर रहकर भगवान् श्रीमन्नारायण के कल्याण गुणों का अपने चित्त से चिन्तन करना और अन्न ही नही संसार के समस्त भोगो से विरति ही उपवास है। 

नारदीय पुराण कहता है –

तस्यैवं क्रीडमानस्य मोहिन्या सह पार्थिव.। 

रुक्मांगदस्य श्रोत्राभ्यां पटहध्वनिरागतः।। 

मत्तेभकुम्भसंस्थस्तु धर्मांगदमते स्थितः। 

प्रातर्हरिदिनं लोकास्तिष्टध्वं चैकभोजना।

अक्षारलवणास्सर्वै हविष्यान्ननिषेवणः। 

अवनीतल्पशयनाः प्रियासंगविवर्जिताः। 

स्मरध्वं देवमीशानं पुराणं पुरुषोत्तमम्। 

सकृद् भोजनसंयुक्ताश्च उपवासे भविष्यथ।। 

पहले तो एकादशी उपवास न करना दण्डनीय अपराध था आठ से अस्सी साल तक के प्राणियों के लिए। 

अष्टवर्षाधिको मर्त्यो ह्यशीतिर्न हि पूर्यते। 

यो भुक्ते मामके राष्ट्रे विष्णोरहनि पापकृत्।। 

स मे बध्यश्च दण्ड्यश्च निर्वास्यो विषयाद्बहिः। 

देवल कहते है –

दशम्यामेकभुक्तस्तु मांसमैथुनवर्जितः। 

एकादश्यामुपवसेत् पक्षयोरुभयोरपि।। 

ब्रह्मचर्यं तथा शौचं सत्यमामिषवर्जनम्। 

ब्रतेष्वेतानि चत्वारि वरिष्ठानीति निश्चयः।। 

स्त्रीणां तु प्रेक्षणात् स्पर्शात् ताभिसंकथनादपि। 

निष्यन्दते ब्रह्मचर्यं न दारेष्वृतुसंगमात्।। 

बार बार जल या पेय दुग्ध ,चायादिक का सेवन न करे।गुटखा पान मसाला से बचे। 

असकृज्जलपानाच्च सकृत्ताम्बुलचर्बणात्। 

उपवासो विनश्येत दिवास्वापाच्च मैथुनात्।। 

 

व्यास जी भी इसी का समर्थन करते कहते है –

पुष्पालंकारवस्त्राणि गन्धधूपानुलेपनम्। 

उपवासे न दुष्येत दन्तधावनमञ्जनम्।। 

उपवासे तथा श्राद्धे न खादेद्दन्तधावनम्। 

दन्तानां काष्ठसंयोगः हन्ति सप्तकुलान्यपि।। 

विष्णुस्मृति कहती है –

पतितपाषण्डसंभाषणानृतस्तेयादिकं वर्जयेत्। 

कूर्मपुराण कहता है –

एकादशी को दूसरे के घर का अन्न कभी नही खाना चाहिये ,चाहे प्रवास मे ही क्यों न हो।ककड़ी, टमाटर, खीरा ,आलू ,शक्कर कंद आदि शाको का ब्रत मे परहेज रखे।सबसे बड़ी बात है उस दिन असत्य भाषण न करे। 

कांस्यं मांसं मसूरं च चणकं कोद्रमाषकान्। 

शाकं मधु परान्नं च त्यजेदुपवसनं स्त्रियम्।। 

असत्यभाषणं द्यूतं दिवास्वापं च मैथुनम्। 

एकादश्यां न कुर्वीत उपवासपरो नरः।। 

ब्रह्मांड पुराण कहता है –

कांस्यं मांसं सुरां क्षौद्रं तैलं वितथ भाषणम्। 

व्यवायं च प्रवासं च दिवास्वापमथाञ्जनम्।। 

तिलपिष्टं मसूरं च द्वादशैतानि वैष्णवः।। 

द्वादश्याः वर्जयेन्नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते।। 

मैने देखा है एकादशी का ब्रत करने वाले तिल के लड्डू,तिलकूटा,तिल की गजक,तिलपट्टी,तिल तैल में बनी श्यामाक की खीचड़ी व रोटी खाते देखे गये है जब कि शास्त्र तो शाक खाने या नीम,बबूल का दातून चबाने की भी मनाई करते है।उपवास करने वाले को दिन मे न सोकर भगवत्कीर्तन करना चाहिये ,पान गुटखा नही चबाने चाहिए जो प्रचुरता से देखा जाता है। 

 

बृहस्पति कहते है –

दिवानिद्रां परान्नं च पुनर्भोजनमैथुने।

क्षौद्रं कांस्यामिषं तैलं द्वादश्यामष्ट वर्जयेत्।। 

 

अंगिरा कहते है –

सायमाद्यन्तयोरह्नोस्सायं प्रातश्च मध्यमे। 

उपवासफलप्रेप्सुर्जह्याद्भक्तचतुष्टयम्।। 

य इच्छेद् विष्णु सायुज्यं श्रियं सन्ततिमेव च। 

एकादश्यां न भुञ्जीत पक्षयोरुभयोरपि।। 

 

देवल कहते है – 

गृहीत्वौदुम्बरं पात्रं वारिपूर्णमुदंमुखः। 

उपवासं तु गृह्णीयात् यद्वा संकल्पयेद्बुधः।। 

औदुम्बर यानी ताम्बे के पात्र मे जल भर कर उत्तराभिमुख हो उपवास संकल्प करना चाहिये।

 

जो इस प्रकार बोले – 

एकादश्यां निराहारो भूत्वाsहमपरेsहनि।

भोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष गतिर्मम भवाच्युत।।

मै एकादशी को निराहार ब्रत करुंगा ,मै द्वादशी को ही एक समय अन्न लूंगा।हे पुण्डरीकाक्षश्रीमन्नारायण !हे अच्युत!मुझे सद्गति प्रदान करना। 

विष्णु स्मृति भी थोड़े से शब्दों के हेरफेर के साथ यही संकल्प मन्त्र उच्चारण को कहती है

एकादश्यां निराहारः स्थित्वाsहमपरेsहनि। 

भोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत।। 

ना.पूर्व.23/15

मै तो आपही का प्रपन्न हूँ।हे कमलनयनअच्युत !आप ही मेरी गति है।एकादशी को निराहार रहकर द्वादशी को ही पारणा करुंगा। 

ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः श्री हरि

किसी भी प्रकार की शंका समाधान के लिए ज्योतिषाचार्य – 8151914604

पंडित रमन कुमार – 9118106543

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