वाराणसी

सनातन संस्कृति और धर्म हमारी विरासत : सद्गुरु ऋतेश्वर महाराज 

✍️नवीन तिवारी

वाराणसी : पहड़िया स्थित अकथा के उषा गेस्ट हाउस में आयोजित सनातन भारत यात्रा के काशी प्रवास के दौरान आनंदम धाम ट्रस्ट के पीठाधीश्वर सद्गुरु डॉ. ऋतेश्वर महाराज ने सनातन धर्म और संस्कृति के संरक्षण पर विशेष जोर दिया। इस अवसर पर उन्होंने सनातन विश्वविद्यालय की स्थापना के महत्व और उद्देश्य पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला।

सद्गुरु ऋतेश्वर महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि सनातन संस्कृति और धर्म हमारी विरासत हैं, जिन्हें आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित और संरक्षित रखना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य बच्चों और युवाओं को संस्कार, आध्यात्मिक ज्ञान और सनातन धर्म की शिक्षा देना है, ताकि वे अपने देश और समाज के प्रति जिम्मेदार नागरिक बन सकें।

सद्गुरु ने कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में केवल भौतिक शिक्षा पर अधिक जोर दिया जा रहा है, जबकि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा की उपेक्षा की जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि इस विश्वविद्यालय में गुरुकुलम पद्धति के आधार पर शिक्षा दी जाएगी, जहां आधुनिक विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ सनातन धर्म और संस्कृति की भी शिक्षा दी जाएगी। इस पहल का उद्देश्य ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण करना है जो न केवल भौतिक दृष्टिकोण से बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी मजबूत हों।

 

आधुनिक शिक्षा के साथ संस्कारों का समन्वय –

सद्गुरु ने इस बात पर बल दिया कि सनातन विश्वविद्यालय न केवल विद्यार्थियों को रोजगारोन्मुखी शिक्षा देगा, बल्कि उन्हें भारतीय संस्कृति, धर्म और संस्कारों से जोड़कर एक संतुलित जीवन जीने के योग्य बनाएगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में शिक्षा का उद्देश्य केवल पैसे कमाने तक सीमित हो गया है, जबकि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य मानवता, नैतिकता और जीवन मूल्यों को सिखाना होना चाहिए। उन्होंने आगे बताया कि इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को आधुनिक विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ संस्कृत, योग, वेदों और उपनिषदों का ज्ञान भी दिया जाएगा, जिससे वे अपनी जड़ों से जुड़े रह सकें। इसके साथ ही विद्यार्थियों में राष्ट्रप्रेम और धार्मिक सहिष्णुता के गुणों का विकास किया जाएगा।

 

भारत की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण –

सद्गुरु डॉ. ऋतेश्वर महाराज ने कहा कि सनातन विश्वविद्यालय की स्थापना का एक और प्रमुख उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक विरासत को सहेजना और उसका प्रसार करना है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज के सभी वर्गों को इस दिशा में काम करना चाहिए ताकि भारत की गौरवशाली सांस्कृतिक धरोहर आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रह सके।

उन्होंने कहा कि देश की संस्कृति और धार्मिक पहचान को बनाए रखने के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। सनातन विश्वविद्यालय का उद्देश्य इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे धर्म, संस्कृति और सभ्यता के संरक्षण के साथ-साथ उसे आधुनिकता के साथ समन्वित किया जा सके।

 

आध्यात्मिक और सामाजिक एकता का संदेश –

प्रवचन के दौरान सद्गुरु ने लोगों को धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय एकता का संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि भारत के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी संस्कृति, धर्म और देश के प्रति समर्पित रहे। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि केवल लोहा और सीमेंट की सुरक्षा हमारी रक्षा नहीं कर सकती, बल्कि हमारी धार्मिक और आध्यात्मिक शक्ति ही हमारी असली सुरक्षा है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समाज के हर वर्ग को सनातन धर्म के मूल्यों को अपनाना चाहिए और अपने जीवन में उनके प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपने पूर्वजों की बहादुरी और समर्पण से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए एकजुट होना चाहिए।

 

संकल्प और जागरूकता की जरूरत –

उन्होंने प्रवचन में यह भी कहा कि केवल जागरूकता से कुछ नहीं होगा, जब तक कि लोग अपने जीवन में इसे लागू न करें। सनातन विश्वविद्यालय का उद्देश्य यही है कि वह बच्चों में जागरूकता पैदा करे और उन्हें एक ऐसा मार्ग दिखाए जो उन्हें आध्यात्मिकता और आधुनिकता दोनों में सशक्त बनाए। सद्गुरु ने कहा कि इस परियोजना में सभी सनातन धर्म के अनुयायियों को शामिल होना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि सनातन धर्म के सिद्धांत पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक हैं, और यह विश्वविद्यालय सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए लाभकारी होगा।

 

आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से विश्वविद्यालय की स्थापना –

सद्गुरु ऋतेश्वर महाराज ने इस विश्वविद्यालय को आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक शैक्षिक संस्थान नहीं होगा, बल्कि यह एक ऐसा केंद्र होगा जहां से भारतीय संस्कृति और मूल्य पूरी दुनिया में फैलाए जाएंगे। उन्होंने यह भी बताया कि इस विश्वविद्यालय में छात्रों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के कौशल विकास कार्यक्रम भी चलाए जाएंगे, ताकि वे भविष्य में अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

 

सनातन विश्वविद्यालय के लिए बताया आगे का मार्ग –

प्रवचन के अंत में सद्गुरु ऋतेश्वर महाराज ने सभी से आग्रह किया कि वे इस महान कार्य में अपना सहयोग दें और सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में अपनी भूमिका निभाएं। उन्होंने यह भी कहा कि यह विश्वविद्यालय न केवल काशी या उत्तर प्रदेश के लिए, बल्कि पूरे भारत और विश्व के लिए एक उदाहरण बनेगा। उन्होंने आश्वस्त किया कि सनातन धर्म के अनुयायियों के प्रयासों से यह विश्वविद्यालय एक दिन आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ सनातन मूल्यों का एक प्रमुख केंद्र बनेगा, जो भारत को फिर से विश्वगुरु की भूमिका में स्थापित करेगा।

समापन –

सद्गुरु डॉ. ऋतेश्वर महाराज के इस प्रवचन ने उपस्थित लोगों को सनातन धर्म और संस्कृति के महत्व को समझने और उसे अपने जीवन में आत्मसात करने की प्रेरणा दी। सनातन विश्वविद्यालय की स्थापना के विचार को सभी ने सराहा और इस दिशा में सामूहिक प्रयास की आवश्यकता को भी महसूस किया। इस प्रवचन ने स्पष्ट कर दिया कि आने वाले समय में सनातन विश्वविद्यालय न केवल शिक्षा के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान करेगा, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को सुरक्षित रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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