गोरखपुर
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90 के दशक का कुख्यात गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला जिसने मुख्यमंत्री को ठोकने की ली थी सुपारी –

गोरखपुर:-   1990 के दशक के दौरान मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश राज्य में सक्रिय एक भारतीय गैंगस्टर था । उसे मुख्य रूप से राजनेता अपने विरोधियों को मारने के लिए काम पर रखते थे। वह 22 सितंबर 1998 को यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स के साथ मुठभेड़ में मारा गया था।उसकी मृत्यु के समय उसकी उम्र लगभग 25 वर्ष थी 

1997 की शुरुआत में, शुक्ला ने लखनऊ में एक राजनेता और राज्य के अंडरवर्ल्ड के सदस्य वीरेंद्र शाही की हत्या कर दी । यह अनुमान लगाया गया था कि वीरेंद्र शाही के विरोधी हरि शंकर तिवारी को अगला निशाना बनाया जाएगा क्योंकि शुक्ला चिल्लूपार विधानसभा सीट चाहते थे। अप्रैल १९९८ में, उत्तर प्रदेश पुलिस ने राज्य के 43 शीर्ष अपराधियों को पकड़ने या मारने के लिए एक एसटीएफ का गठन किया , शुक्ला इस सूची में था।

26 मई 1998 को, शुक्ला के गिरोह ने लखनऊ के बॉटनिकल गार्डन से एक व्यवसायी के बेटे कुणाल रस्तोगी का अपहरण कर लिया । उसे बचाने की कोशिश करने पर उसके पिता को गोली मार दी गई। गिरोह ने कथित तौर पर लड़के को मुक्त करने के लिए ₹ 50 मिलियन लिए। जून 1998 में, उन्होंने कथित तौर पर बिहार के एक मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की भी पटना के एक अस्पताल में हत्या कर दी, जहाँ उनका इलाज चल रहा था। इसके तुरंत बाद, फर्रुखाबाद से संसद सदस्य साक्षी महाराज ने दावा किया था कि शुक्ला ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने के लिए ₹ 80 मिलियन की सुपारी ली थी । लेकिन, उन्होंने इस जानकारी के स्रोत का खुलासा नहीं किया।

शुक्ला का जन्म गोरखपुर के ममखोर गाँव में दशहरा ( 6 अक्टूबर 1973) को शिव प्रकाश शुक्ला के रूप में राम समुझ शुक्ला के घर हुआ था। सेवानिवृत्त IAF अधिकारी शुक्ला 5 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। बताया जाता है कि वह अपने गाँव के एक प्रसिद्ध पहलवान थे। 1993 में, शुक्ला ने राकेश तिवारी नामक एक व्यक्ति की हत्या कर दी, क्योंकि उसने शुक्ला की बहन को सीटी बजाई थी। यह शुक्ला का पहला आपराधिक रिकॉर्ड था। हत्या के बाद, शुक्ला बैंकॉक भाग गया। वह वापस लौटा और बिहार के मोकामा के सूरजभान सिंह के साथ जुड़ गया । पुलिस रिकॉर्ड में शुक्ला के दो नाम हैं।

श्री प्रकाश शुक्ला
अशोक सिंह

पूर्वी उत्तर प्रदेश के नक्शे पर आपको हर जगह माफ़ियाओं के निशान मिल जाएंगे. पूरा पूर्वांचल एक से बढ़कर एक बदमाशों के कारनामों और कहानियों से पटा पड़ा है. मगर जो नाम कहर बरपा कर श्रीप्रकाश शुक्ला ने कमाया, उस मुकाम तक दूसरा कोई नहीं पहुंच पाया. महज़ 25 साल की उम्र में पुलिस एनकाउंटर में मारे गए इस अपराधी के खूंखार क़िस्से तो उत्तर प्रदेश में आज भी सुनाए जाते हैं.

यूपी एसटीएफ के गठन से लेकर श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर तक में अहम रोल निभाने वाले अफसर राजेश पांडेय की नई किताब ‘वर्चस्व’ सामने आई है। इस किताब में श्रीप्रकाश शुक्ला को लेकर कई ऐसे खुलासे किए गए हैं, जिससे दुनिया अब तक अनजान रही है। उन्हीं किस्सों में एक बिहार के बाहुबली पप्पू यादव की डॉक्टर बहन की बांह पकड़ने का भी वाक्या है।

श्रीप्रकाश शुक्ला अस्पताल में रहकर रोजाना बृज बिहारी प्रसाद की दिनचर्या की रेकी कर रहा था। इसी दौरान बाहुबली पप्पू यादव की सगी डॉक्टर बहन वहां इंटर्नशिप कर रही थी। पप्पू यादव की डॉक्टर बहन रोजाना मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की बीपी, शूगर एवं अन्य रूटीन चेकअप चार्ट मेंटेन करने आती थी। इसी दौरान श्रीप्रकाश शुक्ला की नजर जब पप्पू यादव की बहन पर गई तो उसने उसकी बांह पकड़ ली। इसपर पप्पू यादव की बहन ने कहा कि तुम जानते हो तुमने किसका हाथ पकड़ा है। मेरे भाई तक जब यह बात पहुंचेगी तब तुम्हारा क्या अंजाम होगा ये कोई नहीं जानता है। इसपर श्रीप्रकाश शुक्ला ने भी ताव में कहा – अपने भाई को बता देना और कल उसे अपने साथ लेकर आना, तब मैं बताऊंगा कि मैं कौन हूं।’ इस दौरान श्रीप्रकाश शुक्ला ने पप्पू यादव की बहन से अपना नाम अशोक बताया। यहां बता दें कि सूरजभान सिंह ने श्रीप्रकाश शुक्ला को अपराध जगत में अशोक नाम दिया था, ताकि उसकी पहचान जाहिर ना हो। इसलिए बिहार में ज्यादातर लोग उसे अशोक के नाम से ही जानते थे।

 

राजेश पांडेय ने बताया कि पूरे देश में किसी एक अपराधी से निपटने के लिए बनी यूपीएसटीएफ पहली यूनिट थी। यूपीएसटीएफ के गठन के वक्त श्रीप्रकाश शुक्ला के आंतक को खत्म करने के लिए केवल छह महीने का समय तय किया गया था। हालांकि शासनादेश में आर्म्स स्मगलिंग को भी शामिल किया गया था, लेकिन इसका असली मकसद श्रीप्रकाश शुक्ला के आतंक को खत्म करना था।

श्रीप्रकाश शुक्ला के पिता गोरखपुर के मामखोर गांव में मास्टर थे. शुक्ला सेहत का तगड़ा था और पहलवानी का शौक़ रखता था. अखाड़ों में वो अपना दम-खम दिखाता रहता था. मगर एक दिन जब उसने सड़क पर अपनी ताकत इस्तेमाल की, तो नतीजा एक शख़्स की मौत के रूप में सामने आया.

दरअसल, 1993 की बात है. कहते हैं कि शुक्ला की बहन को एक राकेश तिवारी नाम के लफंगे ने छेड़ दिया था. 20 साल के श्रीप्रकाश को इस बात पर इतना ग़ुस्सा आया कि उसने तिवारी को सड़क गिरा-गिराकर मारा. इतना कि उसकी मौत हो गई. इस कांड के बाद शुक्ला देश से भागकर बैंकॉक पहुंच गया.

श्रीप्रकाश भारत वापस लौटा, मगर अब वो किसी मास्टर का बेटा नहीं, बल्कि एक उभरता अपराधी था. उस वक़्त यूपी के अपराध जगत में दो नाम सबसे ज़्यादा चर्चा में रहते थे. हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही. ये दोनों ही नहीं जानते थे कि शुक्ला जुर्म की दुनिया में इन सबको पीछे छोड़कर आगे निकल जाएगा. 

शुक्ला ने एक के बाद एक हत्याएं करना शुरू कीं. साल 1997 में उसने वीरेंद्र शाही को गोलियों से भून डाला. दिन-दहाड़े हुई इस हत्या ने पूरे प्रदेश में शुक्ला के नाम की दहशत फैला दी. फिर अपहरण और फ़िरौती का दौर शुरू हुआ. 

1 अगस्त, 1997 को यूपी विधानसभा का सत्र चल रहा था. पास में दिलीप होटल था, जहां उसने तीन लोगों को गोलियों से उड़ा दिया. कहते हैं शुक्ला ने वहां AK-47 की गोलियों से 100 से ऊपर फ़ायर किए. इसकी आवाज़ विधानसभा तक पहुंची थी. इसके बाद उसने बिहार सरकार में बाहुबली मंत्री बृज बिहारी प्रसाद का खुलेआम कत्ल कर दिया था।

श्रीप्रकाश शुक्ला का उस वक़्त ऐसा ख़ौफ़ हो गया था कि रेलवे ठेकों का टेंडर कोई दूसरा लेना का सोच भी नहीं सकता था. मगर शुक्ला को अभी और बड़ा नाम कमाना था. शायद यही वजह थी कि उसने तत्कालीन यूपी सीएम कल्याण सिंह की सुपारी उठा ली. क़ीमत थी 5 करोड़ रुपये. 

ये बात जैसे ही पुलिस तक पहुंची, तो हड़कंप मच गया. सब जानते थे कि शुक्ला का गैंग इतना क़ाबिल है कि मुख्यमंत्री की सुरक्षा में भी सेंध लगा सकता है. ऐसे में उसे पकड़ना अब ज़रूरी हो गया. कहते हैं उसी वक़्त 4 मई 1998 को STF यानि स्पेशल टास्क फ़ोर्स वजूद में आई. अब ज़िंदा या मुर्दा, शुक्ला का चैप्टर ख़त्म करना ही था. 

एसटीएफ़ शुक्ला की तलाश में जुट गई. मगर उनके पास श्रीप्रकाश की पहचान करने के लिए कोई तस्वीर नहीं थी. मालूम पड़ा कि श्रीप्रकाश कभी अपने एक रिश्तेदार की बर्थडे पार्टी में गया था. वहां उसकी एक तस्वीर खींची गई थी. मगर किसी में भी हिम्मत नहीं थी कि वो तस्वीर पुलिस को दे. हालांकि, एसटीएफ ने दबाव डालकर तस्वीर ली और वादा किया कि उन रिश्तेदारों का नाम नहीं आएगा.

ऐसे में एसटीएफ ने लखनऊ के हज़रतगंज इलाके में एक स्टूडियो में फ़ोटो को एडिट करवाया. जिस फ़ेमस तस्वीर को लोग देखते हैं, उसमें शक्ल तो शुक्ला की है, मगर धड़ सुनील शेट्टी का है. जिसे पुलिस ने पोस्टकार्ड से काटकर लगवाया था, ताकि शुक्ला समझ न सके कि उसकी ये तस्वीर आई कहां से.

श्रीप्रकाश शुक्ला एक गंदा और अय्याश क़िस्म का आदमी था. उसे महंगी कॉलगर्ल्स, बड़े होटल, मसाज पार्लर वगैरह का बड़ा शौक़ था. कहते हैं दोस्तों में वो डायलॉग मारता था कि उसका टेलीफोन का खर्च रोज़ाना 5 हज़ार रुपये है. मगर उसे नहीं मालूम था कि यही रंगबाज़ी उसकी मौत का कारण बनेगी. 

दरअसल, शुक्ला बात करने के लिए कई सिम कार्ड इस्तेमाल करता था. मगर पता नहीं क्यों, ज़िंदगी के आखिरी हफ़्ते में उसने एक ही कार्ड से बात की. इससे पुलिस को उसका फ़ोन टैप करने में आसानी हो गई. 21 सितंबर की शाम एक मुखबिर ने STF को बताया कि अगली सुबह 5:45 बजे शुक्ला रांची के लिए इंडियन एअरलाइंस की फ़्लाइट लेगा. एसटीएफ़ ने दिल्ली एयरपोर्ट पर जाल बिछाया, मगर शुक्ला नहीं आया. 

फ़ोन टैपिंग से मालूम पड़ा कि शुक्ला की फ़्लाइट छूट गई थी और अब वो अपनी गर्लफ़्रेंड से मिलने गाज़ियाबाद आने वाला है. पुलिस ने उसकी वापसी के समय जाल बिछा दिया. दिल्ली-गाजियाबाद स्टेट हाइवे पर फोर्स लग गई.

वो HR26 G 7305 नंबर की सिएलो कार से ग़ाज़ियाबाद के लिए निकला. गाड़ी का नंबर फ़र्ज़ी था. रास्ते में उसे एहसास हो गया कि उसकी गाड़ी का पीछा किया जा रहा है. ऐसे में उसने अपनी गाड़ी कच्चे रास्ते में उतार दी. उस वक़्त शुक्ला के साथ उसके साथी अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी भी थे. 

स्टेट हाइवे से एक किलोमीटर हटकर यूपी एसटीएफ की टीम ने उसे घेर लिया गया. शुक्ला ने ख़ुद को घिरा पाकर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. शुक्र था कि उस दिन उसके पास एके-47 नहीं थी. उसने रिवॉल्वर से 14 गोलियां चलाईं. जवाबी फायरिंग में एसटीएफ की टीम ने श्री प्रकाश शुक्ला और उसके साथियों को ढेर कर दिया। 22 सितंबर 1998 को श्रीप्रकाश शुक्ला के जीवन का सूर्य अस्त हो गया। 

एक ऐसा अपराधी जिसके ग़ैर-क़ानूनी काम यूपी, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और नेपाल तक फैले थे, उसका ख़ौफ़ एसटीएफ़ ने ख़त्म कर दिया था.  

बता दें की श्री प्रकाश शुक्ला की ज़िंदगी पर 2005 में फ़िल्म ‘सहर’ बन चुकी है. साथ ही, रंगबाज़ वेब सीरीज़ भी साल 2018 में आई थी.

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