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मार्कंडेय महादेव;यहां महादेव की भक्ति के सामने पराजित हुए थे यमराज –

वाराणसी:- श्रीराम लिखा बेलपत्र और जल चढ़ाने से पूरी होती है मनोकामनाएं, काशी से 30 किलोमीटर दूर विराजमान हैं मार्कंडेय महादेव का मंदिर

भगवान भाव के भूखे होते हैं और महादेव तो महज एक लोटा जल से ही भक्तों पर रिझ जाते हैं। ऐसी ही मान्यता है कैथी मार्कंडेय महादेव की। श्रीराम नाम लिखा बेलपत्र और एक लोटा जल चढ़ाने से भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं मार्कंडेय महादेव। यही कारण है कि बनारस ही नहीं पूरे पूर्वांचल से शिवभक्तों का तांता यहां लगा रहता है। मार्कण्डेय महादेव मंदिर में त्रयोदशी (तेरस) का भी बड़ा महत्व होता है।

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शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर गंगा-गोमती के संगम पर कैथी में मार्कंडेय महादेव का मंदिर है। सावन के महीने में तो यहां मेला लगता है और दूर-दराज से भक्त एक लोटा जल और रामनाम लिखा बेलपत्र चढ़ाने के लिए यहां पहुंचते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि और उसके दूसरे दिन श्रीराम नाम लिखा बेल पत्र अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है।

यहीं पर मार्कंडेय ऋषि की शिवभक्ति के आगे यमराज को वापस लौटना पड़ा था। कहा जाता है कि जब मार्कंडेय ऋषि पैदा हुए थे तो उनके पिता ऋषि मृकण्ड को ज्योतिषियों ने बताया कि बालक की आयु मात्र 14 वर्ष है। बड़े होने पर मार्कंडेय माता-पिता की आज्ञा लेकर गंगा गोमती संगम पर भगवान शिव की तपस्या करने लगे। जब उनकी अवस्था 14 साल की हुई तो यमराज उनको लेने पहुंचे। 

बालक मार्कंडेय भगवान शिव की पूजा में मगन थे और जैसे ही यमराज ने उनके प्राण हरने की कोशिश की तो महादेव स्वयं प्रकट हो गए और यमराज को उल्टे पांव वहां से लौटना पड़ा था। भगवान शिव ने उनको वरदान दिया कि मुझसे पहले तुम्हारी पूजा होगी। इसके बाद मार्कंडेय महादेव की पूजा आरंभ हो गई। इसी कारण इसे मार्कंडेय महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।

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