500 साल पुराने गोपाल मंदिर में चार चरणों में मनाई जाती है होली,5 दिनों कर थिरकते हैं देवगण –

वाराणसी:– देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में होली का जबरदस्त उत्सव रंगभरी एकादशी से शुरू होता है,लेकिन काशी के पुष्टि मार्ग परंपरा का निर्वहन करने वाले वैष्णवजन वसंत पंचमी से होली के उल्लास में डूब जाते हैं। ब्रज की परंपरा के मुताबिक काशी में वैष्णवजन 40 दिनों तक होली मनाते हैं। खास ये कि इस उल्लास में पांच दिनों तक देवगण भी थिरकते हैं और इसका मुख्य केंद्र षष्ठपीठ गोपाल मंदिर है।
500 साल पहले स्थापित षष्ठपीठ गोपाल मंदिर में विराजमान ठाकुर जी यानी श्रीमुकुंद राय प्रभु और श्रीगोपाल लाल प्रभु प्रतिदिन अलग-अलग अनुष्ठान होते हैं। यहां की होली भी अलग होती है। वसंत पंचमी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा तक होली का उल्लास छाया रहता है। 10-10 दिनों के चार चरण में होली का उत्सव मनाया जाता है।ये सभी परंपराएं ब्रज भाव से जुड़ी हैं। 40 दिनों तक अलग-अलग रूप में ठाकुर जी और वैष्णवजन होली खेलते हैं।
इस दौरान रंगभरी एकादशी से पूर्णिमा (होलिका दहन) यानी पांच दिनों तक होली के साथ नृत्य होता है। इसमें देवताओं के स्वरूप नृत्य करते हैं।पहले दिन गणेश जी के साथ रिद्धि-सिद्धि और चूहा, दूसरे दिन देवाधिदेव महादेव-मां पार्वती के साथ नंदी और भैरव, तीसरे दिन इंद्रदेव और इंद्राणी, चौथे दिन विष्णुजी और ब्रह्माजी और अंतिम दिन भाड़ और भाड़िनी नृत्य करते हैं। मंदिर के षष्ठपीठाधीश्वर गोस्वामी श्यामनोहर महाराज और युवराज प्रियेंदु बाबा सहित परिवार के अन्य सदस्य होली उत्सव के प्रतिदिन के अनुष्ठान पूरे कराते हैं। वैष्णवजन रोज अपने घरों में भी इस परंपरा को निभाते हैंं।
गोपाल मंदिर में वसंत पंचमी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा तक होली का उत्सव होता है। इस दौरान राजभोग दर्शन, बगीचे की होली, रंगभरी एकादशी पर कुंज की होली होती है। तेरस के दिन भी बगीचे की होली खेली जाती है। महाशिवरात्रि से होली तक ठाकुर जी के शयन दर्शन होते हैं। 40 दिनों तक अष्ट सखाओं द्वारा रचित होली के रसिया के कीर्तन को कीर्तनकार ढोल, मृदंग और हारमोनियम आदि वाद्य यंत्रों के साथ गाते हैं। इस दौरान अबीर, फूल, चंदन, केसर आदि से होली खेली जाती है।
10 दिन सूक्ष्म होली खेली जाती। अगले दस दिन ठाकुर के गालों और वस्त्रों पर रंग लगाने के बाद लोग होली खेलते हैं। उसके अगले दस दिन श्रीनाथ पाटोत्सव यानी सुरंगी होली होती है और अंतिम 10 दिन संपूर्ण होली होती है। इसके बाद फाल्गुन नक्षत्र में वृहद होली खेली जाती है।
चौखंभा स्थित बेटी जी मंदिर में भी 40 दिनों तक भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप बालकृष्ण और मदनमोहनलाल होली खेलते हैं। प्रतिदिन राजभोग दर्शन के दौरान होली होती है।बालकृष्ण और मदनमोहनलाल दोनों प्रतिमाएं प्रकट रूप में हैं। राजभोग के दर्शन के दौरान वैष्णवजनों के साथ भगवान श्रीकृष्ण उसी तरह से होली खेलते हैं, जैसे ब्रज में खेली जाती हैं। मंदिर के पीठाधीश्वर व वल्लभाचार्य के वंशज परंपरा के गोस्वामी कल्याण राय महाराज के सानिध्य में होली उत्सव मनाया जाता है।