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25 वर्षों में सूखे की चपेट में होगी 75% आबादी,जलवायु परिवर्तन के कारण महाद्वीपों में कम हो रहा पानी –

 

 

दिल्ली:-     जलवायु परिवर्तन के कारण विश्वभर के महाद्वीपों में पानी की कमी बढ़ रही है। साथ ही आबादी में वृद्धि, तेजी से हो रहा औद्योगीकरण, शहरीकरण, फसल तीव्रता और धरती के अंदर कम होते जलस्तर के कारण प्रति व्यक्ति पानी उपलब्धता लगातार कम हो रही है और सूखे के हालात बढ़ रहे हैं।वर्तमान में दुनिया की लगभग 40 फीसदी भूमि खराब हो चुकी है, जिसका सीधा असर 3.2 अरब लोगों पर पड़ रहा है। वर्ष 2050 तक दुनिया की लगभग 75 फीसदी आबादी सूखे से प्रभावित होगी।

 

दुनिया में बढ़ते रेगिस्तान को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन टू कंबैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) और यूरोपीय कमीशन जॉइंट रिसर्च सेंटर 2024 के लिए जारी वर्ल्ड डेजर्ट एटलस में यह बात कही गई है। एटलस में सूखे की वजह से ऊर्जा, व्यापार और कृषि पर पड़ रहे असर को विस्तार से बताया गया है।

 

इटली, पुर्तगाल, रोमानिया में दिख रहा गंभीर असर

रिपोर्ट के मुताबिक, इटली की सबसे लंबी नदी पो इतिहास में एक महत्वपूर्ण परिवहन केंद्र रही है। इसने देश के उत्तरी हिस्से को औद्योगिक शक्ति के रूप में विकसित करने में मदद की है, लेकिन अब यह भयंकर सूखे का सामना कर रही है। इसी अवधि के दौरान पुर्तगाल ने का 99 फीसदी हिस्सा गंभीर या अत्यधिक सूखे की स्थिति में है। रोमानिया का लगभग 75 फीसदी हिस्सा सूखे से प्रभावित है।

 

देश की अनाज की फसल में 30 मिलियन टन की गिरावट आने का अनुमान है। इसी तरह अफ्रीका का हॉर्न 40 वर्षों से अधिक समय के सबसे खराब सूखे का सामना कर रहा है। इथियोपिया, सोमालिया और केन्या के कुछ हिस्सों में 18 मिलियन से अधिक लोग गंभीर भुखमरी का सामना कर रहे हैं।

भारत पर भी प्रभाव

इस एटलस में भारत में सूखे के कारण सोयाबीन उत्पादन में भारी नुकसान का अनुमान लगाया गया है। रिपोर्ट के अनुसार इससे यह पता चलता है कि सूखा हमेशा एक प्राकृतिक घटना नहीं होता। 2020 से 2023 के बीच भारत में जल प्रबंधन की विफलता के कारण दंगे और तनाव बढ़े। भारत के बाद उप-सहारा अफ्रीका का नंबर है।

 

चेन्नई में डे जीरो की याद दिलाई

यूएनसीसीडी ने 2019 में चेन्नई में डे जीरो की याद दिलाते हुए कहा है कि जल संसाधनों के गलत प्रबंधन और अत्यधिक शहरीकरण ने जल संकट पैदा किया, बावजूद, जहां औसतन प्रति वर्ष 1,400 मिमी से अधिक वर्षा होती है। हालांकि, चेन्नई वर्षा जल संचयन को अनिवार्य करने वाला पायलट शहर है, लेकिन कानून की अनेदखी और अनियोजित विकास ने जलस्तर को कम कर दिया।

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