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मां दुर्गा के स्वरूप का सर्वप्रथम दिन; ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा; जाने कलश स्थापना और पूजा विधि –

पंडित रमन कुमार शुक्ल राष्ट्रीय उपध्यक्ष श्री काशी विश्वनाथ धार्मिक अनुसंधान संस्थान ट्रस्ट वाराणसी (रजि ०)

वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । 

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

 

नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर दुर्गा देवी के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है।

मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।

मां शैलपुत्री सती के नाम से भी जानी जाती हैं। इनकी कहानी इस प्रकार है – एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया, लेकिन भगवान शिव को नहीं। देवी सती भलीभांति जानती थी कि उनके पास निमंत्रण आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। 

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। 
वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।
पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। 
कलश स्थापना पूजा विधि की सामग्री –

काशी के ज्योतिषाचार्य सतीश शुक्ल ने बताया , इस बार शारदिए नवरात्रि 3 अक्टूबर 2024 से प्रारंभ हो रहा है आप सभी को माता भवानी की कृपा प्राप्त हो मेरी यही माता रानी से विनती है जैसे हम सही भोजन करेंगे तो शरीर स्वस्थ रहेगा ठीक उसी प्रकार से हम शुभ मुहूर्त में कलश स्थापन करें तो हमेँ पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। इस बार कलश स्थापन का प्रथम मुहूर्त प्रातः 5:57 बजे सूर्योदय से डेढ घंटे पहले ब्रम्ह मुहूर्त में,द्वितीय मुहूर्त मध्यान्ह 11:27बजे से 12:15 अभिजित मुहूर्त में हस्त नक्षत्र में एवं तृतीय मुहूर्त प्रदोष काल सायं 5:45 बजे से 8:17 बजे प्रदोष काल चित्रा नक्षत्र में कलश स्थापन अति शुभ दायक रहेगा कलश स्थापना के लिए ज़रूरी सामग्री ये है। 

कलश, जो पीतल, तांबे, या मिट्टी का हो सकता है
गंगाजल
मौली
रोली
अक्षत यानी कच्चा चावल
सिक्का
पंच पल्लव: पीपर, गूलर, प्लक्ष, आम, बर.
सप्तधान यानी सात प्रकार के अनाज जैसे गेहूं, जौ, चावल, तिल, कंगनी, उड़द और मूंग
जटा वाला नारियल
पीतल या मिट्टी का दीपक
घी या तिल का तेल
रूई और बत्ती
लाल वस्त्र
सिंदूर
कलावा
मिट्टी का पात्र
(सप्तमृतिका, सात स्थानों की मिट्टी का समूह है, जिसका इस्तेमाल धार्मिक कार्यों में किया जाता है. ये सात स्थान हैं:
गौशाला
घुड़शाला
हाथीशाला
दो नदियों का संगम
सांप की वाँवी
राजदरवार
तालाब किनारे की मिट्टी) अभाव में आचार्य से परामर्श करे
छोटी लाल चुनरी
दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, मिठाई, फल, अबीर, गुलाल,वस्त्र- उपवस्त्र आदि। 


कलश स्थापना के लिए मिट्टी के एक पात्र में थोड़ी सी बालू या रेत डालकर जौ बोया जाता है. इसके बीच में कलश रखा जाता है और उसमें पानी भरा जाता है. कलश के ऊपर आम के पत्ते रखे जाते हैं और एक छोटी कटोरी ढककर उसमें चुनरी में लपेटा हुआ नारियल रखा जाता है. कलश पर कलावा बांधा जाता है और उस पर सिंदूर से स्वास्तिक बनाया जाता है.

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