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रामनगर रामलीला; सोलहवें दिन सुपर्णखा नासिका छेदन; श्री जानकी हरण –

 

✍️अजीत उपाध्याय

 

रामनगर रामलीला के सोलहवें दिन का प्रसंग – #सुपर्णखा_रावण के बहिनी। दुष्ट हृदय दारुण जस अहिनी।।

निज प्रतिबिंब राखी तह सीता । तैसही सील रूप सु बिनिता।।

आज की कथा का आरंभ पंचवटी के वन से होता है जहां भगवान राम सीता और लक्ष्मण कुटी में हैं ।तहां रावण की भगिनी सुपर्णखा विचरण के लिए आती है वो राम जी के रूप को देखकर मोहित हो जाती है और राम जी के पास आकर उनसे विवाह करने को बोलती है परन्तु रामजी मना कर देते हैं फिर वह लक्ष्मण जी के पास जाती हैं परन्तु लक्ष्मण जी कहते हैं, मैं राम जी का सेवक हूं तो मै कैसे विवाह कर सकता हूं? तब वह राछसी वेष में आ जाती हैं तभी लक्ष्मण जी उसका नाक कान काट देते है।

वो रोती बिलखती अपने भाई खर और दूषण के पास जाती है। वो सभी हाल सुन के श्रीराम से युद्ध करने बहुत से सेना लेके आते है परन्तु राम जी के एक बाण से मारे जाते हैं। तब सुपर्णखा अपने भ्राता रावण के पास जाती है और सारा वृतांत सुनाती हैं तब रावण क्रोधित होता है और एक षडयंत्र कि रचना करता हैं। इधर पंचवटी में भगवान राम सीता जी को अपना पवित्र रूप त्यागकर माया का रूप धारण करने को बोलते है और इसका पता लक्ष्मण जी को नहीं होता हैं। लंका में रावण अपने मामा मारीच को सोने का कपट मृगा बनने को बोलता है और सीता माता का हरण करने की योजना बनाता हैं।मारीच उसको बहुत शिक्षा देता है परन्तु रावण नहीं मानता तब पंचवटी में आय मारीच को सोने का कपट मृगा बनाय मृगा के अहेर में राम जी को बहकाय देता है। माया सीता जी के कहने पर लक्ष्मण जी भी राम जी के पीछे पीछे जाते है।तभी वहां रावण साधु का वेष धारण करके कपट से माता सीता को हर लेता हैं और आकाश मार्ग से जाता है तभी गिधराज जटायु रावण से युद्ध करते हैं परन्तु रावण उनका पंख काट देता है और वो धरा पर गिर जाते हैं। तब रावण आगे बढ़ता है। जब रावण रिष्यमुक पर्वत के ऊपर से जाता रहता हैं तभी माता सीता अपने कुछ चिर गिरा देती है जो बंदरो के राजा सुग्रीव को मिलता हैं। तब रावण लंका अशोक वाटिका जाता हैं ,रावण के महल लौट जाने के बाद ब्रह्माजी इंद्र को भेजते है अशोक वाटिका में माता सीता जी को हव्य देने के लिए ,वो हव्य ऐसा रहता है जो खाने से चिरकाल तक भूख नही लगती, इंद्र जी आके हव्य सीता जी को देते हैं यही कथा का विश्राम हों जाता है, पुनः लीला पंचवटी पर आती है उसके बाद भगवान की आरती लक्ष्मण जी के द्वारा होती है। इस प्रसंग का मर्म बहुत ही गूढ़ है। समय नहीं मिल पाता परंतु मैं इस प्रसंग पर विस्तृत वर्णन करूंगा। बहुत लोगो के मन में अग्नि परीक्षा, तथा लक्ष्मण जी के लक्ष्मण रेखा खींच देने के बाद भी सीता जी का मर्यादा लांघना, फिर जानकी जी तो सर्वज्ञ थी तो क्यों लक्ष्मण जी को ऐसा कुछ कटु कहा और राम जी के पीछे भेजा ऐसे ही व्यर्थ के संशय उठ जाते है।हृदय को स्वच्छ रखकर विचार करने वाली होती है ।मै भी इस पर अपने विचार राम कृपा से लिखने का प्रयास करूंगा।

 

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