
✍️ अजीत उपाध्याय –
नौमी तिथी मधु मास पुनीता । सुकल पक्छ अभिजीत हरि प्रिता।।
विप्र धेनु सुर संत हित लिन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार।।
काशी के रामनगर में ऐसा कौतूहल है,जैसा त्रेतायुग के अयोध्या में रहा होगा और हो भी क्यों न आज जो राम जी जन्म ले रहे हैं। काशी नरेश के आते ही लीला का मंचन आरंभ हो गया। सर्वप्रथम रामायनी जन द्वारा
रामचरितमानस से,
अवधपुरीं रघुकुलमनि राऊ। बेद बिदित तेहि दसरथ नाऊँ॥
धरम धुरंधर गुननिधि ग्यानी। हृदयँ भगति भति सारँगपानी॥
चौपाई का नारद वाणी में गायन शुरू होता है ।महाराजा दशरथ अयोध्या के प्रतापी राजा थे पर उनके पुत्र नहीं थे तब उन्होंने अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ जी से आशिर्वाद लेकर संतान प्राप्ति के लिए श्रृंगी ऋषि से यज्ञ करवाते है। दशरथ जी और कौशल्या जी जिनके पूर्व जन्म के कर्मों से ब्रम्ह अपने अंशो के साथ उनके गृह में पुत्र के रूप में अवतरित होते हैं। भगवन जब अपने चतुर्भुज रूप में महारानी कौशल्या जी के सामने प्रकट होते है। तब पूर्व जन्म की सभी कथा माता से कहते है ।अयोध्या में केवल माता कौशल्या जी सर्वदा से ही जानती है की मेरे पुत्र परम् ब्रम्ह है। रामलीला पक्की पर जब मनु सतरूपा जी का प्रसंग होता है तो सतरूपा जी भगवान से यही वरदान मांगती है कि मेरा ज्ञान सर्वदा बना रहे कि आप ब्रम्ह है। तत्पश्चात कौशल्या जी भगवन से बाल लीला करने का आग्रह करती है तब सभी अंशो सहित भगवन प्रकट होते है।कौशल्या जी से श्रीरामचंद्र,कैकेई से भरत जी और महारानी सुमित्रा से लक्ष्मण और सत्रुघ्ण जी जन्म लेते है।
बाबा लिखते है कि बड़े गुप्त रूप से भगवन के बाल लीला का दर्शन करने महादेव जी और काकभुशुंडी जी अयोध्या में आते है।।औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी॥
काकभुसुंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ।।
तत्पश्चात नामकरण करने के लिए जब वशिष्ठ जी आते है उस प्रसंग को तुलसी दास जी ने बहुत ही गूढता से लिखा है
जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी॥
सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा॥बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई॥जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा।। लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार। गुरु बसिष्ठ तेहि राखा लछिमन नाम उदार॥
ध्यान से गूढता को समझे तो श्री राम परम् ब्रम्ह और उनके अंश पालन कर्ता श्री विष्णु जी के रूप भरत जी, संहार कर्ता भगवान शिव जी के अंश श्री सत्रुघ्न जी जगत के आधार पालन कर्ता ब्रह्मा जी के अंश श्री लक्ष्मण जी है।तत्पश्चात चारो भाई की बालचरित्र का सुन्दर लीला होता है।तत्पश्चात चारो भाई गुरु वशिष्ठ जी के यहां शिक्षा लेने जाते है बाबा कितनी सुंदरता से कहते है।
गुरु गृह गए पढन रघुरायी, अल्प काल विद्या सब आई।।
उन्होंने यह नहीं लिखा विद्या पाई स्वयं विद्या चली आई।
अद्भुत है बाबा। कुछ समय पश्चात चारो भाई घर आते है।अपने सखा मित्रों के साथ शिकार खेलने जाते है और दिन प्रतिदिन जो लीला करते है उसे देखकर सभी अयोध्यावासी कृतार्थ होते रहते है। यही कथा का विश्राम हो जाता है।प्रतिदिन की तरह फिर राम आरती होती है और आज की आरती माता कौशल्या करती है।।
जय श्री सीता राम –