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लखनऊ मेट्रो इंजीनियरिंग शिल्प कौशल का एक उत्कृष्ट नमूना –

 

 

लखनऊ:- लखनऊ मेट्रो इस बात का एक शानदार उदाहरण है कि किस प्रकार विश्वस्तरीय अवसंरचना का निर्माण करते समय किसी ऐतिहासिक शहर की आत्मा को सुरक्षित रखा जा सकता है। लखनऊ मेट्रो केवल परिवहन का साधन नहीं है – यह एक अद्भुत नागरिक उपलब्धि है, जो दर्शाती है कि किस प्रकार इंजीनियरिंग की प्रतिभा को विरासत के साथ संतुलित किया जा सकता है। ये आठ वर्ष इंजीनियरिंग उत्कृष्टता, नवाचार और जनसेवा के प्रति हमारे अटूट समर्पण को प्रदर्शित करते हैं।“

– श्री सुशील कुमार,
प्रबंध निदेशक, उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड

लखनऊ मेट्रो ने हाल ही में 5 सितंबर 2025 को 13 करोड़ यात्री संख्या के साथ अपने संचालन के 8 गौरवशाली वर्ष पूरे किए हैं। इसके साथ ही निर्माण के दिनों में तैयार किए गए इंजीनियरिंग के उत्कृष्ट नमूनों की यादें ताजा हो गई हैं।

यूपीएमआरसी (तत्कालीन लखनऊ मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन) ने मेट्रो के जरिए लखनऊ शहर को एक आधुनिक रूप दिया है। इसके साथ-साथ, यूपीएमआरसी ने शहर की आवश्यकता के अनुसार निर्माण पद्धतियों को अपनाया है जोकि शहर के मूल्यों, संस्कृति, पर्यावरण और परिदृश्य को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए एक अतिरिक्त कदम है।

• मेट्रो वायडक्ट के लिए प्री-कास्ट ट्विन यू-गर्डर्स, कट एंड कवर पद्धति से बनाए गए भूमिगत स्टेशन, पुश लॉन्चिंग तकनीक से बने पुल और बैलेंस्ड कैंटिलीवर पुल, ये सभी इंजीनियरिंग के अग्रणी उदाहरण थे।

• मवैया रेलवे क्रॉसिंग पर यूपीएमआरसी ने अपने इतिहास की सबसे चुनौतीपूर्ण इंजीनियरिंग उपलब्धियों में से एक को सफलतापूर्वक पूरा किया। इसके तहत विशेष रूप से डिजाइन 255 मीटर लंबा कैंटिलीवर स्पैन का निर्माण किया गया, जिसमें 105 मीटर का एक सेंट्रल स्पैन और 75 मीटर के दो इंड स्पैन शामिल हैं। यह उपलब्धि इसलिए भी असाधारण है क्योंकि इसे जमीन से 21.5 मीटर की ऊंचाई पर ऑपरेशनल रेलवे ट्रैक और अत्यधिक वोल्टेज वाली ओवरहेड इलेक्ट्रिफिकेशन (OHE) लाइनों से गुजारा गया।

• इस उपलब्धि को असाधारण बनाने वाली बात यह है कि इसे अविश्वसनीय रूप से जमीन से 21.5 मीटर की ऊंचाई पर चालू रेलवे ट्रैक और अत्यधिक वोल्टेज वाले ओवरहेड इलेक्ट्रिफिकेशन (OHE) लाइनों के ऊपर से पूरा किया गया। चुनौतियों के बावजूद मेट्रो का निर्माण कार्य एक दिन के लिए भी रेल परिचालन में बाधा डाले बिना पूरा किया गया जो यूपीएमआरसी की बारीक योजना, असाधारण समन्वय और सुरक्षा एवं परिचालन निरंतरता को दिखाता है। चुनौती यह थी कि यह स्थान एक व्यस्त सड़क के बीचों-बीच स्थित था, जहां भारी यातायात और सार्वजनिक आवाजाही को संभालने के लिए त्रुटिहीन क्रियान्वयन और समयबद्ध सटीकता की जरूरत थी।

• इंजीनियरिंग उत्कृष्टता के एक और उल्लेखनीय प्रदर्शन में यूपीएमआरसी ने गोमती नदी पर 177 मीटर लंबा एक संतुलित कैंटिलीवर बनाया। अब यह पुल नदी के दोनों ओर के प्रमुख क्षेत्रों को जोड़ता है और पूरे लखनऊ में मेट्रो कनेक्टिविटी को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाता है। पुल का निर्माण 13 मीटर की ऊंचाई पर एक चुनौतीपूर्ण S-कर्व अलाइनमेंट पर किया गया था, जिसके लिए सटीकता और एडवांस्ड इंजीनियरिंग तकनीकों की जरूरत थी। 85 मीटर लंबा सेंट्रल पुल नदी तल में एक भी सहायक स्तंभ के बिना बनाया गया था।
नदी तल के नरम भूभाग पर इस प्रतिष्ठित पुल का निर्माण एक बहुत बड़ी चुनौती थी।

• अवध चौराहे पर यूपीएमआरसी ने जमीन से 13 मीटर ऊपर 60 मीटर लंबा एक विशेष स्टील स्पैन पुल बनाकर एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की, जिसे चौराहे पर स्थित ऐतिहासिक प्रतिमा को संरक्षित करने के लिए सावधानीपूर्वक डिजाइन किया गया था। यह एक अद्भुत उपलब्धि थी क्योंकि इस पुल के निर्माण के दौरान चौराहे के आसपास एक भी दिन यातायात बाधित नहीं हुआ। यह व्यस्ततम चौराहों में से एक है।

• इसी तरह का निर्माण यूपीएमआरसी द्वारा निशातगंज के पास मुख्य लाइन रेलवे पर भी किया गया था, जहां 60 मीटर लंबा एक विशेष स्टील स्पैन बनाया गया था। यह उपलब्धि यूपीएमआरसी की कुशल टीम द्वारा केवल 5 दिनों में मुख्य लाइन रेलवे और आस-पास के पुल पर चलने वाले वाहनों के आवागमन को बाधित किए बिना हासिल की गई है।

• एक और बड़ी इंजीनियरिंग उपलब्धि हैदर कैनाल के नीचे हुसैनगंज से चारबाग के बीच सुरंग निर्माण कार्य था, जिसमें नहर के तल में कोई व्यवधान नहीं आया। सुरंग का निर्माण नहर से केवल 1-1.5 मीटर नीचे करना पड़ा। चुनौती और भी बढ़ गई क्योंकि आस-पास की नाजुक इमारतें थीं, जहां जमीन का हल्का सा भी खिसकना जान-माल के लिए खतरा बन सकता था। यूपीएमआरसी ने इस बेहद नाजुक काम को बड़ी कुशलता से अंजाम दिया।

• लखनऊ के ऐतिहासिक हृदय स्थान हजरतगंज से होकर एक भूमिगत मेट्रो कॉरिडोर बनाना, पूरी परियोजना में सबसे जटिल चुनौतियों में से एक था। सदियों पुरानी दुकानों, ऐतिहासिक इमारतों और जटिल भूमिगत संरचनाएं, हजरतगंज न केवल एक व्यावसायिक केंद्र है, बल्कि शहर का एक सांस्कृतिक प्रतीक भी है। इसकी संकरी गलियों और नाजुक नींव के नीचे सुरंग निर्माण कार्य को अंजाम देने के लिए असाधारण सटीकता और इंजीनियरिंग कौशल की आवश्यकता थी और यूपीएमआरसी ने इसमें निस्संदेह उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

• यह मार्ग सचिवालय के ठीक नीचे से होकर गुजरा, जहां विधानसभा स्थित है – जो राजनीतिक और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस संवेदनशील क्षेत्र में सुरंग निर्माण के दौरान सतह पर कोई व्यवधान न हो, कोई संरचनात्मक प्रभाव न पड़े और सरकारी कामकाज निर्बाध रूप से चलता रहे, इसके लिए विश्वस्तरीय योजना, अत्याधुनिक टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) तकनीक और सुरक्षा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की आवश्यकता थी।

• यूपीएमआरसी ने न केवल सिविल निर्माण में इन उल्लेखनीय उपलब्धियों को सटीकता के साथ हासिल किया, बल्कि इन्हें निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा भी किया। सीसीएस एयरपोर्ट मेट्रो स्टेशन ने भारत में सबसे तेजी से बनकर तैयार हुए भूमिगत मेट्रो स्टेशन के रूप में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया, यह स्टेशन मात्र 19 महीने और 10 दिनों में बनकर तैयार हुआ।

• अपनी उत्कृष्ट सिविल निर्माण पद्धतियों और तकनीकों के लिए लखनऊ मेट्रो को 2024 में प्रतिष्ठित सीआईडीसी विश्वकर्मा पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

ये 8 वर्ष लखनऊवासियों के लिए मेट्रो द्वारा दी गई सुविधाओं से भरपूर रहे हैं। 2017 से अब तक 13 करोड़ से ज़्यादा यात्रियों ने अपने दैनिक आवागमन के लिए लखनऊ मेट्रो को चुना है।

अब यूपीएमआरसी जल्द ही हालिया स्वीकृत ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर का निर्माण कार्य शुरू करने जा रहा है, जो चारबाग से वसंतकुंज तक अमीनाबाद, चौक, मेडिकल कॉलेज, बालागंज, ठाकुरगंज आदि जैसे सघन इलाकों से होकर गुजरेगा। कहने की जरूरत नहीं कि इस बार भी सिविल निर्माण प्रक्रियाएं आधुनिक और तकनीकी रूप से उन्नत होंगी।

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