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राम नाम से भावनाएं आहत होती हैं तो इस्लामिक कलमे से क्यों नहीं —

 

✍️दिव्य अग्रवाल

अखंड ब्रह्माण्ड जिन सिद्धांतों पर चलता है उन सिद्धांतों का निर्माण करने वाले सनातन धर्म को कुछ मजहबी लोगों ने कमजोर समझ लिया है जिसका सर्वप्रथम कारण सनातनी समाज है । ५०० वर्ष तक प्रभु श्री राम मंदिर के निर्माण हेतु संघर्ष करने वाली कौम मंदिर निर्माण होने के पश्चात भविष्य के लिए चिंतित नहीं है,इस्लामिक जिहादियों द्वारा सोमनाथ मंदिर को १६ बार तोडा गया क्यूंकि प्रत्येक बार निर्माण करके भविष्य के लिए कोई योजना सनातनी समाज ने नहीं बनाई। स्थिति इतनी भयवाह है की भारत में सनातनी त्योहारों , धार्मिक आयोजनों आदि पर इस्लामिक समाज कब्जा करने के साथ साथ निडरता पूर्वक मजहबी उन्माद स्थापित कर रहा है । जय श्री राम के उद्घोष के साथ अपने धन से भंडारा करने वाले वृद्ध को दोषी मान लिया जाता है क्यूंकि इस्लामिक समाज की भावना आहात हो गयी परन्तु अल्लाह के अतिरिक्त कोई अन्य पूजनीय नहीं है यह पढ़ाने वाले मौलानाओं पर कोई अपराध दर्ज नहीं होता । क्या इस्लामिक कानून की स्थापना हो चुकी है , क्या भारत में संविधान का नहीं अपितु कुरआन के नियमो का पालन करना सुनिश्चित हो चूका है। यदि अल्लाह के अतिरिक्त कोई शक्ति नहीं है तो अल्लाह को न मानने वाले प्राणी का जन्म इस धरा पर कौन कर रहा है, यदि अल्लाह को न मानने वाले काफिर हैं और उन्हें अच्छा जीवन जीने का अधिकार नहीं है तो काफिर अच्छे और समृद्ध परिवारों में किसकी अनुमति से जन्म लेता है। निश्चित ही इन सब बातो में कोई तथ्य नहीं है, बिना कारण ही गैर इस्लामिक समाज को इस्लामिक शिक्षा ने दंड और प्रताड़ना झेलने का पात्र बना दिया है जो किसी भी सभ्य समाज और राष्ट्र के लिए हानिकारक है । मजहब के नाम पर क्रूरतम शिक्षा को यदि जल्द नहीं रोका गया तो यह समाज जंगल बन जाएगा जहाँ जो ताकतवर होगा बस वो ही जीवित रह पायेगा। 

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