
✍️अजीत उपाध्याय
वाराणसी:-
रामनगर रामलीला के 21वें दिन का प्रसंग –
राम मनुज कस रे सठ बंगा। धनवि कामु नदी पुनी गंगा।।
आज की लीला में भगवान समुद्र उस पार जाते है। जब भगवान समुद्र को पार करते है तो तुलसी दास जी ने लिखा है कि सेतु बंध भइ भीर अति कपि नभ पंथ उड़ाहिं।
अपर जलचरन्हि ऊपर चढ़ि चढ़ि पारहि जाहिं॥ भगवन को देखने के लिए सारे जलचर ऊपर आ जाते हैं और बहुत सी वानरी सेना उन जलचरो के ऊपर से भी पार होती हैं।लंका में जाकर सभी बंदर डेरा लगाते है । उधर रावण के दरबार में सूचना मिलती है की श्री राम जी समुद्र पर पुल बांधकर सैन्या समेत लंका में आ गए है। रावण के मंत्रणा करने पर उसके पुत्र प्रहस्र द्वारा रावण को समझाया जाता है परंतु रावण उसका अनादर करके दरबार से बाहर कर देता है तत्पश्चात महल में मंदोदरी रावण को समझाती हैं
जो इतने मायावी भयानक दानवों को एक वाण से मार सकते है वो स्वयं नारायण जी है आप उनको पहचानो और सीता जी को राम जी के यहां पठवा दो परन्तु रावण नहीं सुनता है और आमोद प्रमोद में लग जाता है। क्षेपक कथा से सेना वर्णन की कथा होती हैं जिसमें रावण का मंत्री ,रावण को राम जी के सभी वीरों को वीरता का वर्णन करते है जिसमें नल नील, अंगद, हनुमान जी ,जामवंत जी, सुग्रीव जी सभी के वीरता, पौरुष,सेना की संख्या का बखान करते हैं। संध्या पश्चात रावण त्रिकूट पर्वत पर जहां उसका विलास भवन होता है वहां नृत्य आदि होता हैं इधर राम जी सबसे पूछते है बिना चंद्रमा में यही कैसी श्यामता है? सभी अपने भक्ति के अनुसार अपने अपने विचार रखते है।कोई कहता ये चंद्रमा को श्राप है तो कोई कहता जब रति को ब्रम्हा जी बना रहे थे तो चंद्रमा से कुछ भाग ले लेते है इसलिए यह स्यामता है और हनुमान जी को तो भगवन को दासता भक्ति ही दिखती है तो वो कहते है चंद्रमा आपका दास है और उसके ह्रदय में आपकी श्याम छवि विराजमान है यह उसी को श्यामाता है। तत्पश्चात दक्षिण दिशा में बिजली चमकती दिखाई देती है भगवान विभीषण जी से इसका कारण पूछते है तब विभीषण जी कहते हैं त्रिकुट पर्वत पर रावण का महल है। वह वहां आमोद प्रमोद में लगा है और ये बिजली नहीं उसकी पत्नी मंदोदरी के कर्णफूल हैं और उसकी यह चमक दिखाई पड़ती है और तब राम जी एक बाण से रावण के मुकुट को गिरा देते हैं ।भगवन ऐसा इसलिए करते है कि रावण समझ जाय कि भगवन लंका में आ गए हैं पर रावण मुकुट के गिर जाने से कोई अशुभ नहीं मानता। मंदोदरी, रावण को समझाती है और जब वह समझाती है उस प्रसंग को तुलसी दास जी ने जो चौपाई के माध्यम से लिख दिया है वो भगवान के अंगो तथा उनके आंतरिक तत्वों की तुलना ब्रह्मांड के सभी तत्व से करते है। उन्होंने ब्रम्ह निरूपण ही कर दिया है जो वेद तत्व का भाग है।उसका बहुत गूढ़ अर्थ है जिसका वर्णन मुझे करना बहुत कठिन है। सच मानिए उन चौपाई के माध्यम से आप ब्रह्मांड के सभी तत्वों के रूप स्वभाव को समझ सकते है । आइए कथा की ओर चलते है , जब मंदोदरी समझाती है तब रावण स्त्री स्वभाव को सहज डरा हुआ बोलकर हंसता हुआ शयन कक्ष में आराम करता है।सुबह होने पर राम सेना में सभी विचार करते है और जामवंत जी,अंगद जी को शांति दूत बना के भेजते हैं। अंगद जी जाकर रावण के घमंड को चूर चूर कर देते है। (अंगदजी का यह संवाद रामलीला प्रेमी सुन के आनंदित हो जाते हैं जो इस प्रकार है कि गंगा क्या नदी हैं? अमृत क्या रस है? वैकुंठ क्या लोक हैं? राम जी की भक्ति क्या लाभ है, हनुमान जी क्या बंदर हैं? )। अंगद जी के पैरों को कोई हिला भी नहीं पाता तब वो बोलते है यदि मेरे पैर को कोई डिगा देगा तब राम जी हार मानकर युद्ध नहीं करेंगे। भगवान में उनका विश्वास इतना अटूट था कि कोई उनके पैर को डिगा तक नहीं पाता ।सत्य है !भगवान में सच्ची आस्था विश्वास हो तो भगवन स्वयं साथ देते है। जब रावण उनके पैर को उठाने के लिए आता है तब अंगद जी उसको मना करते हुए कहते है ,हे!खल गिरना है तो राम जी के पैरो में गिर मेरे नहीं। इतना कहकर वो भगवान के पास आते है और सारा वृतांत सुनाते है। यही कथा का विश्राम होता है और आज की आरती विभीषण जी के द्वारा होती है।