
✍️अजीत उपाध्याय
वाराणसी:-
रामनगर रामलीला के बीसवें दिन का प्रसंग –
असकहि चला बिभीषनु जबहीं। आयू हीन भए सब तबही।।
विनय न मानत जलाधि जड़ गए तीन दिन बीत ।
बोले राम सकोप तब भय बिन होय न प्रीत।।
आज की लीला में भगवान किष्किंधा से सभी बानरो के साथ समुद्र इस पार आ जाते हैं तब लीला रावण के महल जाता है ।जब यह खबर मंदोदरी सुनती है तो रावण को बहुत समझाती है परन्तु वो सभी बातो को हंसी में ही लेता है। तत्पश्चात रावण मंत्रियों को राजदरबार में बुलाता है और सभी से पूछता है क्या करना चाहिए? सभी कहते है समुद्र पार करना बहुत कठिन है और भालू बंदरो से क्या डरना। जब सभा में विभीषण जी आते है और वो रावण को बहुत रीति से समझाते है पर रावण उनका अनादर करके उनको राज्य से निकाल देता है। विभीषण जी के जाने से ही सारी लंका आयुहीन हो जाती हैं।
वो सभी से विदा लेके राम जी के पास आते हैं ।हनुमान अंगद आदि उनको राम जी के पास ले जाते हैं राम जी का दर्शन करके वो भावविभोर हो जाते है ।राम जी बहुत आदर से उनको लंकेश बुलाकर उनका समुद्र के जल से राज्याभिषेक कर देते हैं। राम जी समुद्र पार करने की युक्ति पूछते है तो विभीषण जी समुद्र देवता का पूजन करने को बोलते है और कहते है वो स्वयं ही आपको रास्ता बता देंगे इस बात से लक्ष्मण जी सहमत नहीं रहते । रावण के द्वारा भेजे गए दूत शुक और सारंग जासूसी करते पकड़े जाते हैं सभी बंदर नाक कान काट लेत हैं परन्तु लक्ष्मण जी उनको चेतावानी और एक पत्रिका देकर रावण के पास जाने को कहते है इधर रावण के सामने पत्रिका पढ़ी जाती है उसमे सीता जी को लौटा देने की बात रहेती है परन्तु रावण नहीं मानता । इधर तीन दिन बीत जाते है परन्तु समुद्र देवता नहीं आते तब राम जी क्रोधित होकर बाण चलाने जाते हैं तब समुद्र देवता प्रगट होते है वो प्रणाम करि भगवन से विनय करते है। समुद्र देवता माया को दोष देते हुए अपने को जड़ कहते हैं और समुद्र पर सेतु बनाने की युक्ति बताते है ।वो नल नील के बारे में बताते हैं तब सभी नल नील के साथ मिलकर सेतु बनाने का काम शुरू करते है राम जी समुद्र तट के किनारे ही शिवलिंग की स्थापना करते हैं जिनका नाम रामेश्वर देते है और शिव जी की महिमा का बखान करते हैं सेतु का कार्य सम्पन्न हो जाता है सभी राम नाम का जयकार करते है यही लीला का विश्राम होता है आज कि आरती विभीषण जी करते है।
(आज की लीला में वर्षा,बिजली और हवा सभी आते है जिसके कारण थोड़ी देर लीला विश्राम करती है परंतु रुकती नहीं है। वर्षा की बूंदों में ही लीला चलती रहती है। रामनगर लीला का यह स्वरूप उसको विश्वव्यापी होने के प्रमाण देता है। अद्भुत है रामनगर की लीला अद्भुत है लीला से जुड़े सभी जन, प्रेमी जीतने लीला के शुरू में थे उतने ही लीला के अंत में भी।)