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रामनगर रामलीला; पच्चीसवें दिन रावण – युध रणभूमि अवलोकन –

 

✍️अजीत उपाध्याय

 

वाराणसी :- रामनगर रामलीला के पच्चीसवें दिन का प्रसंग – 

सुनि बचन हरष बिषाद मन अति देखि पुनि त्रिजटाँ कहा।
अब मरिहि रिपु एहि बिधि सुनहि सुंदरि तजहि संसय महा॥

आज के लीला में रावण यज्ञ करता है। इसकी सूचना विभीषण जी राम जी को देते है तब राम जी अंगद हनुमान आदि को यज्ञ भंग करने के लिए भेजते है। वहां जाय सभी वानरी सेना यज्ञ भंग करती है। तत्पश्चात रावण पुनः युद्ध के लिए रणभूमि की तरफ चलता हैं ।तत्पचात इन्द्र, राम जी को दिव्य रथ भेजते है तब राम जी उस पर विराज मान होकर द्वंद्व युद्ध रावण से करते है।जिसे देखने देवता गण भी आकाश में आते है।आज रण भूमि में सैन्य प्रदर्शन होता हैं जो रामनगर रामलीला की अद्भुत अद्वितीय प्रसंगो में एक हैं ,इस प्रसंग में जितने पात्र सैन्य प्रदर्शन करते हैं वो सभी मुस्लिम समुदाय से हैं ये कोई आश्चर्य की बात नही हैं ये राम की नगरी,

वेदव्यास जी की दूसरी काशी रामनगर हैं यहां की जनता के लिए राम आदिपुरुष है,अब चाहे वो हिंदू हो या मुस्लिम या कोई भी समुदाय से हों। ब्रह्मांड के सभी प्रबुद्ध जनों को यहां की लीला से यह सीख लेनी चाहिए। आगे की कथा को देखे तो,राम जी और रावण में बहुत घमासान युद्ध होता है कभी कभी ऐसा लगता है मानो रावण हार ही नहीं सकता बार बार राम जी उसका सिर काटते है परन्तु वो फिर से आ जाता है रावण मायावी भी था।युद्ध देखकर आकाश में देवता वृंद भी विचलित हो जाते है और डर से कंदरा में भागने की बात कहते है। जब सभी वानरी सेना हार मानने लगती है तब राम जी कहते है की अब हमारी और रावण की अकेली अकेला का युद्ध देखो, राम रावण जी के बीच का संवाद वीर रस से भरा होता है।इधर त्रिजटा सीता जी को अशोक वाटिका में युद्ध का सारा वृतांत सुनाते धीरज देते कहती है,हे सुंदरी! संदेह का त्याग कर दो; अब सुनो, शत्रु इस प्रकार मरेगा ,”राम जी यही सोचकर रह जाते हैं की इसके हृदय में जानकी का निवास है, जानकी के हृदय में मेरा निवास है और मेरे उदर में अनेकों भुवन हैं। अतः रावण के हृदय में बाण लगते ही सब भुवनों का नाश हो जाएगा।” यह वचन सुनकर सीता जी के मन में अत्यंत हर्ष और विषाद हुआ तब त्रिजटा ने कहा “जब ध्यान छूटेगा तब भगवान वाण मारेंगे।” यह सीता जी सुन के शांत होती है।यही कथा का विश्राम हो जाता है और आज की आरती रणभूमि में ही इंद्ररथ पर भगवन विराजमान होते है और आज की आरती भी विभीषण जी ही करते हैं।

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