वाराणसी
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रामनगर रामलीला; चौदहवें दिन श्री भरत जी राज सिंघासन पर राम जी की चरण पादुका रख अयोध्या का राजपाठ करना –

 

✍️अजीत उपाध्याय

वाराणसी:-

 

रामनगर रामलीला के चौदहवें दिन का प्रसंग –

प्रभु करि कृपा पा वरी दिन्ही। सादर भरत सीस धरि लिन्ही।।

आज की कथा मे भगवान राम कहते हैं मुखिया मुख सो चाहिए अर्थात जो राजा हो ,आज के परिवेश में देखे तो जो देश का प्रमुख हो या परिवार का प्रमुख हो वो मुख के समान होना चाइए जैसे मुख शरीर के सभी अंगों को पोषण पहुंचाता हैं वैसे ही जो राजा हो या देश को चलाने वाले या घर परिवार के प्रमुख हो उनको अपने परिजनों का लालन पालन करना चाहिए।बाबा तुलसी जी धन्य हैं जो इतने कम शब्दों में कितनी बड़ी बात कह देते हैं।

आइए आज की कथा की तरफ बढ़ते हैं , भरत जी चित्रकूट की यात्रा करने की इच्छा राम जी से कहते है तब राम जी अत्री मुनि के साथ उनको भेजते हैं ।भरत जी सत्रुघ्न जी और निषाद राज जी अलकनंदा नदी इत्यादि रमणीक स्थानों का दर्शन करते हैं तब अत्री मुनि एक कूप को भरत कूप का नाम रखते है क्योंकि वहां से भरत जी सभी तीर्थों का जल उस कूप डाला और यहां का पवित्र जल उन्होंने अपने पास रखा तत्पश्चात सभी लोग राम जी के आश्रम की परिक्रमा करते है रामनगर रामलीला का इस मनोरम दृश्य में सभी रामलीला प्रेमी भाई भी परिक्रमा करते हैं।उसके बाद आश्रम में आकर भरत जी राम जी से उनका चरण पादुका मांग लेते है जिसे सिर पर धर के अयोध्या चलने लगते हैं। सभी माताओं, जनक जी और सुनैना जी से राम जी लक्ष्मण जी सीता जी मिलते हैं तब गुरु जी को भी राम जी प्रणाम कर विदा करते है । अंत में सखा निषादराज को भी विदा करते है। सबको विदा करने के तत्पश्चात वहां देवता लोग का आगमन होता है उन लोगो को यह कहके विदा करते है की हमे आप लोगो की ही चिंता है और मैं आप लोगो का ही कार्य कर रहा हूं और फिर प्रतिदिन की तरह राम जी की आरती होती है। आज की आरती श्री अत्री मुनि जी करते है परंतु अभी लीला समाप्त नहीं होती है। इसके बाद भरत जी सभी परिवार जनों के साथ अयोध्या जाते हैं जहां भरत जी राज सिंघासन पर राम जी की चरण पादुका रख देते है और शत्रुघन जी को राज का देखभाल करने का आदेश देकर माताओं और गुरु से विदा लेकर अयोध्या की सीमा पर स्थित नंदीग्राम नामक नगर में पर्णकुटी बनाकर रहते हैं वहीं राम नाम का सुमिरन करते हैं भरत जी ही क्या सभी राम नाम का व्रत लेकर राम जी के वापस आने की राह देखते है यही कथा का विश्राम होता है और अंत में भरत जी की भी आरती होती है। इसी के साथ आज अयोध्याकांड का समापन हो जाता हैं। इस कांड में भाई भाई का प्रेम, पिता पुत्र का प्रेम, पति पत्नी का प्रेम,प्रजा का राजा से प्रेम कैसा होना चाहिए इसका सर्वोत्तम प्रसंग मिलता है।

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