वाराणसी

रामनगर रामलीला के छठे दिन श्री राम जानकी विवाह प्रसंग –

 

✍️अजीत उपाध्याय

वाराणसी:-

विश्व प्रसिद्ध रामनगर रामलीला के छठे दिन का प्रसंग –

तुलसीदास जी के गीतवाली से लिए गए हैं ये पद

राजति राम-जानकी-जोरी! 

स्याम-सरोज जलद सुन्दर बर, दुलहिनि तड़ित-बरन तनु गोरी!! 

राम-लषन सुधि आई बाजै अवध बधाई! 

ललित लगन लिखि पत्रिका,उपरोहित के कर जनक-जनेस पठाई!! 

कन्या भूप बिदेहकी रुपकी अधिकाई,तासु स्वयम्बर सुनि सब आए

देस देसके नृप चतुरङ्ग बनाई.!! 

रामनगर में आज विशेष ही वातावरण हैं कोई बाराती तो कोई घराती बन के राम जी की बारात में चलने को उत्सुक हैं लीला का विश्वप्रसिद्ध होना कोई आश्चर्य की बात नही यहां बारात पूरे विधिवत तरीके से घोड़े रथ के साथ निकलती हैं और विवाह का पूरा प्रसंग मंत्रोचार की विधिवत पाठ के साथ होता है। आज की कथा की आरंभ अयोध्या से होता है जहां जनक दूत महाराजा दशरथ को पत्रिका देता है। जिसमें सभी प्रसंगों धनुष भंग ,परशुराम जी और राम जी के संवाद और विवाह आमंत्रण की सूचना रहती हैं। दूत का पात्र निभाने वाले बच्चन गुरुजी इतना सुंदर और भाव से जनक दूत का संवाद कहते है कि, सभी लीला प्रेमी का ह्रदय भर आता है। ऐसे तो वो किसी भी पात्र का संवाद बड़े अद्भुत तरीके से कहते है और आम जीवन में भी बड़े ज्ञानी और दार्शनिक है। कथा की ओर बढ़ते है, महाराज दशरथ उस पत्रिका को पढ़कर बहुत ही प्रसन्न होते है और वो बार बार पत्रिका को पढ़ते हैं। तत्पश्चात दशरथ जी जनक दूत से पूछते है कि भैया महाराज जनक जी कैसे मेरे पुत्रों को जाने तब जो उत्तर जनक दूत देते है और बाबा इतने अद्भुत ढंग से चौपाई में लिखते है कि क्या सूर्य को कोई दिया लेके ढूंढता है क्या?

आपके दोनों पुत्र सूर्य के समान है और बहुत से अलंकारों से वो सारी कथा सुनाते है यहां तक कह देते है कि, 

देव देखि तव बालक दोऊ। अब न आँखि तर आवत कोऊ ॥

दत बचन रचना प्रिय लागी। प्रेम प्रताप बीर रस पागी॥

अर्थ देखे तो हे,,, देव! आपके दोनों बालकों को देखने के बाद अब आँखों के नीचे कोई आता ही नहीं (हमारी दृष्टि पर कोई चढ़ता ही नहीं)। प्रेम, प्रताप और वीर रस में पगी हुई दूतों की वचन रचना सबको बहुत प्रिय लगी॥

तत्पश्चात दशरथ जी ,गुरु वशिष्ठ और सभी माताओं के सम्मुख भी पत्रिका को पढ़ते है।

जब भरत जी और सत्रुघन जी को पता चलता हैं तो सभी अयोध्यावासी राम जी के बारात में चल देते है फिर लीला अयोध्या से जनकपुर के लिए प्रस्थान करती है।जनकपुर आते ही बहुत प्रकार से उनका स्वागत होता है। सभी जनवासे में रुकते है। वहीं राम जी और लक्ष्मण जी से सभी अयोध्यावासी की भेंट होती है ।चारो ओर भक्ति और प्रेम का वातावरण हो जाता है ।सभी सखियां चारो भाई के रूप को देखकर मोहित हो जाती है ।चारो तरफ जनकवासी उनकी ही बाते करते है। जब चारो भाई दूल्हे के वेष में आते है तो उसे देखने आकाश से देवता गण, महादेव और यक्ष गण आते है। बाबा लिखते है कि आज इंद्र को जो श्राप मिला होता है कि उनको हजार नेत्र हो जाय वह आज तो वरदान सिद्ध हो गया। इंद्र तो भगवान को हजार नेत्रों से देख सकते है।तत्पश्चात वह दिन आ ही जाता है जब बाबा यह लिखते है

मंगल मूल लगन दिन आवा। हिम ऋतु अग हुन मा सु सुहवा।।

मंडपु विलोकी विचित्र रचना रूचिरता मुनि मन हरे।।

चारो भाई दूल्हे के वेष में जब आते है तो यह अद्भुत झांकी देखने आकाश से देवता ,शिव जी, ब्रम्हाजी और वेद आदि आते है।शिव जी सभी देवता लोगों से कहते हैं कि,” हे! देवता लोग यह श्री सीताराम जी की बारात हैं,आप सभी आश्चर्य चकित न हों।” वेद, देवता सभी भगवन को,दूल्हे के स्वरूप में देखकर उनकी सुंदरता का बहुत गुणगान करते है। तत्पश्चात द्वारपूजा में महारानी सुनैना जी चारो भाइयों का परछन आरती करती हैं। मुसर लोढ़ा से भी परछन और लीला में आई माता बहने लोग गीत भी गाती है जो हमारी भारतीय वैदिक पारंपरिक परंपरा हैं। चारो भाई को देखकर सभी मंत्रमुग्ध हो जाते है। तत्पश्चात् मंडप में वशिष्ठ जी और सतानंद जी द्वारा विधी पूर्वक विवाह संपन्न होता है। कन्यादान करके जनक जी धन्य धन्य हो जाते है। रामनगर लीला की यही अद्वितीय महिमा हैं,जिसमें सभी विवाह प्रसंग मंत्र,विधि विधान से संपन्न किया जाता है। यहीं आज की कथा का विराम हो जाता है।

आज की आरती बहुत मनोरम होती है क्योंकि आठो मूर्ति विराजमान होती है। राम सीता जी, भरत मांडवी जी,लक्ष्मण उर्मिला जी, सत्रूघ्न श्रुतिकेतु जी। आज की आरती महारानी सुनैना जी के द्वारा होती है।

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