वाराणसी
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रामनगर रामलीला के चतुर्थ दिन भगवान राम,लक्ष्मण जी के साथ गुरु विश्वामित्र जी से आज्ञा लेकर जनकपुर का प्रसंग –

 

✍️अजीत उपाध्याय

वाराणसी:-    रामनगर_रामलीला के चतुर्थ दिन ( अष्ट सखी संवाद,फुलवारी )का प्रसंग – 

देखन बागु कुअँर दुइ आए। बय किसोर सब भाँति सुहाए॥

स्याम गौर किमि कहौं बखानी। गिरा अनयन नयन बिनु बानी॥

एक सखी दूसरे सखी से कहती है,” दो राजकुमार बाग देखने आए हैं जो किशोर अवस्था के हैं और सब प्रकार से सुंदर हैं। वे साँवले और गोरे रंग के हैं, उनके सौंदर्य को मैं कैसे बखानकर कहूँ जीभ को आंखे नही, औ आंख को जीभ नही”,, ऐसा जीवंत बाबा तुलसी जी ने लिखा हैं उतना ही जीवंत रामनगर की रामलीला है।

आज की लीला तो भागवत रास अध्याय ही समझिए जो बाबा जी ने आज के फुलवारी लीला में लिख दिया है। बाबा लिखते है,प्रीति पुरातन लखई न कोई। अर्थात प्रेम रास यहां भी हो रहा ही परंतु इस प्रेम को कोई लख नही सकता। 

आज की लीला में पुष्प वाटिका में योगशक्ति और योगपुरुष के मिलन को ऐसे ऐसे अलंकारों छंदों में लिखा है की मानो मानस के चौपाई में सरस्वती जी ने स्वयं अपने ज्ञान को अवतरित कर दिया हो। 

आज के कथा में भगवान राम,लक्ष्मण जी के साथ गुरु विश्वामित्र जी से आज्ञा लेकर जनकपुर को देखने आते है। जनकपुर के सभी नर नारी बालक वृंद उनको देखकर मोहित हो जाते हैं। कुछ बालक उनके साथ होकर जनकपुर दिखाने लगते है तभी झरोखों से जनकपुर की युवतियां दोनों भाई को देखकर आपस में बात करती है। कोई कहती है,इनके रूप सभी देवताओं से सुंदर है ।कोई उनको पति के रूप में तो कोई भगवान के रूप में देखती है,,कुछ कहती है ये इतने कोमल है शिव धनुष को कैसे तोडेंगे? कुछ कहती इनको देखकर महाराज अपनी प्रतिज्ञा ही भूल जाएंगे तो कुछ कहती ये हम लोगो के भाग्य से यहां आए है और इनका विवाह सीता जी के साथ ही होगा और और इस नाते से ये बार बार यहां आयेंगे तो हमे इनका दर्शन मिलता रहेगा तो एक कहती हैं सिया सोने की अंगूठी,राम सांवरो नगीना हैं। आज की लीला मे सभी लीला प्रेमी अष्ट सखी का संवाद सुनने के लिए बहुत व्याकुल रहते है। आज की लीला में एक अलग ही श्रृंगार और भक्ति रस दिखता है जिसको शब्दो में लिखना ही बहुत कठिन हो जाता है। आगे की कथा देखे तो उसके बाद राम जी लक्ष्मण जी के साथ गुरुजी के आश्रम चले जाते है।। फिर गुरु जी के पूजा के लिए वो फूल लेने पुष्प वाटिका में जाते है। अनोखी बात यह होती है रामनगर लीला की, पुष्प वाटिका भी ऐसी सजीव होती है जैसे मानो सच में माता जानकी और प्रभु श्री राम के दर्शन करने त्रेतायुग में चले गए हो। कथा को देखे तो जब पुष्प वाटिका में माता सिया से राम जी की भेट होती है तो उस पल की व्याख्या करने में भी शारदा जी कि भी मती हिचकती हो उसके बाद सभी सखियां सीता जी के साथ गौरी पूजन करने जाती हैं तब देवी सिया अपने लिए वर के रूप में राम जी को मांगती हैं तब अकाशवाणी होती है कि आपने जो वर मांगा है वैसा ही आपको वर मिलेगा तत्पश्चात सभी महल में जाते है और रामजी भी गुरु के आश्रम लौट जाते है ।आज की कथा का यही विश्राम हो जाता है और प्रतिदिन की तरह राम आरती होती हैं और आज की आरती रामलीला में आए एक संत के द्वारा होती हैं।

 

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