
✍️अजीत उपाध्याय
वाराणसी:-
रामनगर रामलीला के उनतीसवें दिन ( राम राज्याभिषेक) प्रसंग एवं श्री भोर की आरती
जय राम रमा रमनम समनम । भव ताप भयाकुल पही जनम।।
प्रभु बिलोकी मुनि मन अनुरागा।तुरत दिव्य सिंघासन मागा।।
बीते कल की लीला में गुरु वशिष्ठ सभी संत समाज के साथ राम जी को राज सिंहासन पर विराजमान किए ।चारो तरफ राम राज्य की मनोरम लहर सी उठ पड़ती है । इसे देखने आकाश से देवता और चारो वेद आते है और श्रीराम सिया का वंदना करते हैं। तत्पश्चात भगवान शंकर आकर अपने भक्ति रूपी वाणी से प्रभु की वंदना करते है और कैलाश चले जाते हैं। तत्पश्चात राम जी सभी योद्धा की विदाई करते हुए कहते है हे! सखा आप सभी ने मेरा बहुत साथ दिया अब अपने अपने गृह जाओ और मुझे दृढ़ रूप से भजना।
बहुत से वस्त्र आभूषण देकर उन लोगों की विदाई होती है परन्तु अंगद जी विलाप करने लगते है कि मैं आपके पास रहना चाहता हूं परन्तु राम जी उनको बहुत समझाकर जाने को बोलते है तत्पश्चात हनुमान जी, सुग्रीव से कुछ दिन अयोध्या जी में रुकने की आज्ञा लेते है और अंगद जी ,राम जी से अपनी सुधि कराने को हनुमान जी से बोलते है। हनुमान जी राम जी के पास आकर अंगद जी की कही बात बोलते है।भगवान यह सुनकर प्रसन्न होते है। रामायण गायन में उत्तरकांड से राम राज्याभिषेक हो जाने से कैसा वातावरण हो जाता है उसका गायन चलता रहता है।उसका वर्णन बाबा ने बहुत सुंदर किया है। आज के दिन महाराज काशी नरेश सभी पंच स्वरूप का चरण स्पर्श करकर तब अपने किले में वापस जाते है यही कथा का विश्राम होता है परन्तु भगवान आज के दिन पूरी रात अयोध्या में विराजमान रहते है और पूरे काशी , रामनगर वासी उनका दर्शन करते है। जब भगवान का राजतिलक होता है तब भगवान सिंघासन पर ही चारो भाई और माता सीता जी के साथ पूरी रात विराजमान रहते है और आज भोर में महाराज काशी नरेश सूर्योदय के समय किले से पैदल अयोध्या जी आते है फिर लाल सफेद मुहताबी में भगवान की जब आरती होती है तो मानो सारा वातावरण ही बदल जाता है। राममय वातावरण का बखान करने के लिए शब्द ही कम पड़ जाते हैं । सभी श्रद्धालु रात से ही आरती के लिए अयोध्या में ही रहते है ,जब भगवान की आरती का श्रीगणेश होता है तब नयनाभिराम आंतरिक ह्रदय रूपी नेत्र से सभी रामनगरवासी बनारसी दर्शन करते है।धन्य हूं जो भगवान की कृपा और दादाजी का आशीर्वाद है कि ऐसे दुर्लभ दर्शन मिल जाते है।