
✍️अजीत उपाध्याय
वाराणसी:-
रामनगर रामलीला के बाईसवें दिन का प्रसंग –
लंका बाके चारी दुवारा। कहीं बिधि लागही करहूं बिचारा।।बीरघातिनी छाड़िसि साँगी। तेजपुंज लछिमन उर लागी॥
बीतें कल की लीला में भगवान राम, विभीषण और सभी बानर सेना से लंका के चारो फाटक ध्वस्त करने का विमर्श करते हैं, तब जामवंत जी युद्ध नीति को बताते हैं । पश्चिम द्वार पर हनुमान जी,पूर्व द्वार पर नल नील, दक्षिण द्वार पर अंगद जी, उत्तर द्वार पर स्वयं जामवंत जी ।।पूरी वानरी सेना भगवान राम लक्ष्मण और महाराज सुग्रीव का जयकार करते हुए लंका के सभी फाटक को ध्वस्त करते हैं ।बहुत से राक्षस मारे जाते है और उनके स्त्री बच्चे रावण को बड़ा बुरा भला कहते है और जिसके राज्य में प्रजा स्वयं राजा से दुखी हो उस राजा का सर्वनाश निश्चित होता है। सभी वानरी सेना युद्ध के पश्चात राम जी के पास आकर सारा युद्ध वृतांत सुनाते हैं ।तत्पश्चात लीला रावण के सभागार से शुरू होती हैं जहां माल्यवंत जी रावण को समझाने की कोशिश करते है परंतु रावण अपने अभिमान के वश में कुछ नही सुनता और उनका परिहास करता है। तत्तपश्चात मेघनाद अपने पिता रावण से कहता हैं कि आपके सामने इन बंदरो और तपसियो का क्या बल है ,आज मै युद्ध में जाकर युद्ध का निर्णय कर देता हूं। मेघनाद युद्ध के लिए जाता है और बहुत भयंकर युद्ध होता है। सभी बंदर भयभीत हो जाते है। नल नील हनुमान जी सभी मेघनाद की शक्ति का लोहा मानते हैं।तब लक्ष्मण जी राम जी से आज्ञा लेकर युद्ध करने को आते हैं मेघनाद और लक्ष्मण जी के बीच घमासान युद्ध होता हैं तभी मेघनाद ब्रम्ह अस्त्र शक्ति प्रयोग करके लक्ष्मण जी को मूर्छित कर देता है। जब वह लक्ष्मण जी को उठाकर लंका ले जाना चाहता है तब वह लक्ष्मण जी को उठा नही पाता तब हनुमान जी लक्ष्मण जी महाराज को उठाकर राम जी के पास ले जाते है। भगवान भाई की ऐसी स्थिति देखकर विलाप करने लगते है तभी जामवंत जी सुषेण जी को लाने के लिए बोलते है तब ज्ञानिनामग्रगण्यम् हनुमान जी महाराज उनको उनके गृह के साथ ही लेते आते है । सुषेण जी धौलागिरी पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को बोलते है ।रावण को पता चलने पर वो अपने मामा कालनेमी को हनुमान जी रोकने के लिए भेजता है ।कालनेमी साधु का वेष लेकर रास्ते में रहता हैं इधर हनुमान जी राम जी का नाम लेकर जाते है। रास्ते में कालनेमी को राम भक्त की कुटी समझकर पानी पीने के लिए रुकते है। मकरी के बताने पर वो समझ जाते है कि ये कालनेमी है उसका संहार करके धौला गिरी पर्वत से संजीवनी बूटी लेकर अयोध्या जी के उपर से जाते रहते है तब भरत जी हनुमान जी को दानव समझकर बिना फर के बाण से घायल करते है । हनुमान जी के मुख से राम राम का नाम लेने पर भरत जी बहुत दुःखी होते हैं और दुखी मन से राम भक्ति के प्रताप से हनुमान जी को चेतना में लाते है ।हनुमान जी उनको सब वृतांत सुनाते है तब भरत जी कहते है आप मेरे वाण पर यह संजीवनी बूटी का पहाड़ लेकर बैठ जाय भगवान राम जी जहां होंगे वही आप क्षण भर में पहुंच जाएंगे। हनुमान जी राम जी को याद करते ऐसा ही करते है और क्षण भर में संजीवनी लेकर भगवान के पास आते है। संजीवनी बूटी देने से लक्ष्मण जी उठ जाते है और राम जी उनको आलिंगन करते है। सभी वानरसी सेना यह देखकर प्रसन्न होती हैं। यही कथा का विश्राम होता है तत्पश्चात लीला रणभूमि से सुबेल गिरी पर्वत पर जाती है और वहीं भगवन आरती विभीषण जी के द्वारा होती है।