
✍️अजीत उपाध्याय
वाराणसी:-
रामनगर रामलील के अठारहवें दिन का प्रसंग –
चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरी खोह l
राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह।।
बीते कल रामनगर रामलीला में भगवान राम सुग्रीव को बाली से युद्ध करने को भेजते है ।सुग्रीव जाके उसको युद्ध के लिए ललकारतें है। बाली ये सुन कर क्रोधित होकर आने लगता है तब पत्नी तारा उसको समझाती हैं कि सुग्रीव को राम मिले है ,जो परम पिता परमेश्वर है तब बाली कहता है कि युद्ध में मुझे कोई ललकारे और मैं न जाऊं ये मेरी वीरता पर कलंक होगा
और यदि राम भगवान है तो उनके हाथों मारे जाने से स्वर्ग की प्राप्ति होगी।तब दोनों में युद्ध होता है।सुग्रीव भागता है और राम जी के पास आता हैं राम जी बोलते है तुम दोनों भाई एक जैसे दिखते हों इसलिए मैंने बाण नहीं चलाया उसको एक माला पहनाकर पुनः युद्ध के लिए भेजते हैं ।( यदि विचार करे तो क्या ईश्वर नहीं पहचान सकते कि बाली कौन सुग्रीव कौन? कल की लीला में सुग्रीव का जो क्षणिक वैराग्य है ,उसको मिटाने तथा यर्थाथ समझाने के लिए ऐसा करते है। जब वह बाली से प्रहार ले लेता है तो उसको यथार्थ का पता चलता है तब भगवान उसके पूर्ण समर्पण को मानकर उसे अपना माला पहनाकर भगवान यह प्रदर्शित कर देते है कि आप तुम मेरे हुए। इस प्रसंग से हम सभी को यही सार समझना चाहिए कि आप जैसे है उसी प्रकार से भगवान के समक्ष रहिए।) अब आगे की लीला देखते है,,,इस बार बाली मारा जाता है वो भगवान को देखकर प्रभु से पूछता है ।आपने हमें छुप के क्यों मारा तब भगवान कहते हैं जो अपने भाई की स्त्री और भाई के साथ बुरा करता हैं उसे मारने में कोई दोष नहीं हैं। भगवन से ऐसी बातें सुनकर उसको ज्ञान की अनुभूति होती है तत्पश्चात वो भगवान से मोक्ष मांगता है ।सभी परिजन मृत्यु के खबर सुनकर दुःखी होते है तब भगवन, पत्नी तारा पुत्र अंगद को आत्मा और यह नश्वर शरीर का ज्ञान देकर सभी को माया मुक्त करते है।। लक्ष्मण जी राजभवन में जाकर सुग्रीव का राज्याभिषेक कर देते हैं। तत्पश्चात राम जी लक्ष्मण जी प्रवर्षण गिरी लौट जाते हैं। वर्षा ऋतु जब आती हैं तब राम जी वर्षा के जल का तुलना साधु संतो से कर के भक्ति और संतो के बारे में लक्ष्मण जी को ज्ञान देते है और सीता विरह को भी बताते हैं वर्षा ऋतु से शरद ऋतु आ जाती है पर सुग्रीव नहीं आते तब राम जी सकोप दिखाते हुए लक्ष्मण जी को समझाने के लिए सुग्रीव के पास भेजते है।( प्रभु क्रोध में हो जाय यह सोचना मूर्खता होगी। भगवन केवल नर लीला कर रहे है)।यहां हनुमान जी समझ जाते है कि सुग्रीव भोग विलास में राम जी का कार्य भूल गए हैं तब वो सुग्रीव को याद दिलाते हैं ।सुग्रीव सभी बानरो को सीता जी की खोज के लिए भेजते हैं । तभी लक्ष्मण जी क्रोधित हुए आते है तब हनुमान जी तारा को लेकर उनके सामने जाते है और विनय करते हैं lसभी राम जी के पास जाते है सुग्रीव,भगवन के माया को दोष देते हुए अपने आप को मूर्ख और चंचल बंदर बोलते हुए क्षमा मांगते हैं और कहते है आपकी माया से वही बच सकता हैं जिस पर आप स्वयं कृपा करे। तत्पश्चात सुग्रीव सभी बानरो को सीता माता की खोज में भेजते है। अंगद , जामवंत ,हनुमान, नल, नील जी को दक्षिण दिशा में भेजते है। सभी खोजते खोजते जल की खोज में एक गुफा में जाते हैं जहां एक देवी स्वयंप्रभा नाम की तपस्या करती हैं जो सभी को जल भोजन कराकर अपनी कथा सुनाकर सभी को आंख बंद करवाके सीधे समुद्र तट पर पहुंचा देती है। जहां संपाती से सब खबर लेकर समुद्र पार करकर लंका कौन जाएगा इसी सोच में डूबे रहते है। सभी हनुमान जी को याद करते है परन्तु वो तो राम नाम में मग्न होकर श्राप वश अपने शक्ति को भूलकर बैठे रहते हैं। जामवंत जी के याद दिलाने पर वह विराट रूप में आकर वीर रस में गर्जना करते संवाद कहते हैं तब जावमंत जी कहते है बस आप जानकी माता जी का पता लगाकर बस इतना ही कार्य करके चले आएं। वहां से हनुमान जी लंका के लिए चलते हैं।किष्किंधा कांड के समापन के साथ साथ आज यही कथा का विश्राम हो जाता हैं। सभी लीला प्रेमी लौटकर भगवान के पास आते है और सुग्रीव जी द्वारा भगवन की मनोरम आरती होती है।