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रामनगर की रामलीला के छब्बीसवें दिन रावण का दहन;काशीराज की परंपरा –

 

 

✍️अजीत उपाध्याय

वाराणसी:-

रामनगर रामलीला में रावण का मृत्यु सय्या पर शयन पुतला दहन का प्रसंग और काशीराज की परंपरा –

बीते कल की लीला देखकर यही लगता हैं की जैसी नीयत वैसी नियति। रावण का अभिमान उसे दिग्भ्रमित कर चुका था। बैर लिया भी तो श्रीराम से। यह तो होना ही था। इसलिए ही प्रभु राम वन आये, इंद्र ने चाल चली, सरस्वती जी ने सहयोग किया, सीता ने विरह का दुख सहा। रावण की सद्गति राम के हाथों ही तय थी। रामनगर की रामलीला में रावण के मृत्यु शय्या पर शयन के प्रसंग से पहले परंपरानुसार शाही सवारी रामनगर किले से कुंवर अनंत नारायण सिंह की अगुवाई में निकला ।शाही सवारी जिस मार्ग से गुजरता जन समुदाय हरहर महादेव का जयघोष करने लगे। समूचा रामनगर इस घोष से गुंजायमान हो जाता हैं। रामनगर से लंका मैदान तक शाही सवारी की प्रतीक्षा कर रहे लोगों का अभिवादन हाथी पर सवार महाराज ने हाथ जोड़ कर किया। इससे पूर्व रामनगर किले में महाराज शस्त्र पूजन करते हैं। ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के बीच महाराज ने शाही सवारी में प्रदर्शित होने वाले अस्त्र-शस्त्र,हाथी-घोड़ों आदि की सभी की पूजा की। फिर पालकी में सवार होकर किला परिसर स्थित काली मंदिर में पूजन के लिए जाते हैं। शाम को महाराज का शाही सवारी किले से बाहर निकालता है ।बटाऊबीर पहुंच कर महाराज शमी वृक्ष का पूजन करके शांति के प्रतीक कबूतर छोड़ते हैं। शाही सवारी लंका मैदान आता है जहां लंकाकांड से 99 वें दोहे से लेकर 105 तक के दोहों का नारद वाणी में पाठ के बीच रामलीला का शुरुआत राम रावण युद्ध से होता है। बहुत प्रयास के बाद भी जब रावण नहीं मरता तो विभीषण राम जी से रावण की नाभि में बाण मारने को कहते हैं।

श्रीराम रावण के नाभि में एक बाण मारते हैं। रावण के प्राण पखेरू उड़ जाते हैं।रामनगर की रामलीला के अनुसार यहां रावण भगवान के पास आता है उनके हाथों से माला पहनता है और ताली बजाते हुए भगवान की वंदना करते चला जाता है। विभीषण जी भ्राता रावण के मरने पर दुखी होते है तब श्रीराम जी,विभीषण से कहते हैं, राजा शोक की छोड़कर रावण का क्रिया कर्म करो। श्रीराम विजय के उपलक्ष्य में हर तरफ उत्सव का माहौल हो जाता है।जहां संध्या पूजन के बाद महाराज किले में लौट जाते है मुहूर्त के अनुसार रात्रि दस बजे के बाद रावण दहन हो जाता हैं। पूरा जन सैलाब रावण पुतले दहन और आतिशबाजी देखकर बहुत आह्लादित होते है फिर राम आरती विभीषण जी के द्वारा होती हैं जो सभी भाव विभोर कर देती है।

काशी में रामनगर की रामलीला बीत जाने के बाद काशी वाले कहते है, ‘सुख क दिन बड़ी जल्दी बीत जाला हो’

कुछ तस्वीरों को साझा कर रहा हूं जिसमें लीला प्रेमी आप को लीला में डूबें दिखाई देंगे, बदलते समाज में जहाँ रुपए पेपर लेस हो गए है, 5g का दौर में हम खड़े है, वही लीला प्रेमी श्रीराम लीला देखने के लिए कोई सुविधा की बाट नहीं देखते या कोई आडंबर नहीं करते वो तो केवल लीला प्रेम में डूबे रहते है। भगवन भजन, लीला प्रसंगों को सुनना,श्री राम चरित मानस का पाठ करते रहना, वर्षा हो आंधी हो लीला में मन रमाए रहना ही उनको भाता है।

कुछ तो ऐसे है जैसे ही जो लीला शुरू होने से पहले ही ४ बजे से भजन कीर्तन करते रहते है, लीला में संध्या होते ही फिर राम भजन, यदि लीला वर्षा या अन्य कारणों से रुकी हो तो भजन। धन्य है वो जन उनका समय लीला में भगवन नाम और भगवन लीला में ही व्यतीत होता है। कुछ तो ऐसे है जो भगवन लीला के प्रसंगों को छोड़ते ही नहीं चाहे लीला कितनी बार ही अपने स्थान और गंतव्य को बदल दे। कुछ तो अपने शारीरिक दुर्बलता तक को नहीं देखते। बस उनको लीला प्रसंग के दर्शन करना है तो करना ही है। धन्य है ऐसे लीला प्रेमी।
आप सभी भी अपने सांसारिक जंजाल को कुछ देर छोड़कर लीला स्थल के प्रांगड़ में अपना आसन,पीढ़ा बिछाकर लीला के प्रसंग आनंद ले , संतो के भजन मंडली में राम नाम ले। लीला के आध्यात्मिक ,भावात्मक, रचनात्मक, लोक रंग से जुड़े। केवल भांग, कुर्ता,फाहा,इत्र में ही न फस कर रह जाय। आइए कुछ दिवस का और आनंद रह गया है फिर तो वहीं सांसारिक कपट जंजाल,फिर वही व्यस्त अर्थ प्रधान जीवन। लीला देखने का सही तरीका श्री राम चरितमानस का पाठ करते हुए ही है और एक महीने के लिए थोड़ा कपट,दिखावा और व्यर्थ की बातों से दूर रहकर ही लीला का आनंद सार्थक रूप से लिया जा सकता है। भगवन को प्रेम,भाव मर्यादा ही पसंद है और जिसके पास यह है या यह लाने के प्रयास करता है उसको लीला में भगवन तत्व का मिलना कोई असंभव से बात नहीं है।

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