राजा भैया की मित्रता का सम्मान भाजपा को करना चाहिए था – दिव्य अग्रवाल

भाजपा विश्व का सबसे बड़ा संगठन और मोदी जी विश्व के सबसे विश्वसनीय नेता हैं इसमें कोई संदेह नहीं । परन्तु क्षेत्रीय स्तर पर कुछ राजनितिक दल और राजनेता ऐसे होते हैं जो जन नेता होने के कारण अत्यंत लोकप्रिय हैं । जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के मुख्या एवं कुंडा विधायक राजा रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया की गिनती उन्ही राजनेताओं में से एक है । कभी अल्पमत में रहने के पश्चात भी भाजपा उत्तर प्रदेश को तीन तीन मुख्यमंत्री दे पायी इसमें राजा भैया का सर्वाधिक सहयोग था इतना ही नहीं वर्तमान से लेकर पूर्व तक के राज्यसभा चुनावों में अनेको बार राजा भैया के सहयोग से भाजपा के राज्यसभा उम्मीदवारों ने विजय प्राप्त की है। जिसके परिणाम स्वरूप राजा भैया को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती की अदावत और बगावत दोनों झेलनी पड़ी पर उसके पश्चात भी राजा भैया निरंतर मोदी जी और योगी जी की विचारधारा का समर्थन सार्वजनिक रूप से खुले मन से करते रहे। जिसके बाद इस बात की उम्मीद प्रबल थी की भाजपा भी राजा भैया द्वारा किये गए समर्थन का सम्मान करते हुए कौशाम्बी सीट पर गठबंधन कर जनसत्ता दल को यह सीट सौंप देगी परन्तु लम्बे समय तक रुके रहने के बाद ऐसा नहीं हुआ और भाजपा ने पुनः अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया । अब इसको भाजपा संगठन की कूटनीति कहे या एक पक्षीय मित्रता परन्तु यह निर्णय समावेशी रूप से उचित नहीं । रघुकुल की रीत प्राण जाय पर वचन न जाय का पालन करते हुए राजा भैया ने हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में भी भाजपा का खुला समर्थन करके अपनी मित्रता का प्रमाण पुरे उत्तर प्रदेश को प्रत्यक्ष रूप से दिया परन्तु भाजपा इस मित्रता का सम्मान क्यों नहीं रख पायी यह विचारणीय है । लेखक व विचारक