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राजा भैया ओन, भाजपा के सहयोगी दल मौन – दिव्य अग्रवाल 

राजा भैया ओन, भाजपा के सहयोगी दल मौन 

दिव्य अग्रवाल 

 

सनातन धर्म की रक्षा और सम्मान की बात भारत में करना राजनीतिक रूप से अनुचित ही माना जाता रहा है या अगर कोई राजनेता इस सम्बन्ध में अपने शब्द बुलंद करता है तो यह समझा जाता है की वह राज नेता भाजपा से ही संबंधित होंगे। लेकिन तिरुपति देवस्थानम में जो प्रसाद घटनाक्रम हुआ है। उस पर न सिर्फ मुखर होकर बोलने वाले अपितु समस्या का समाधान बताने वाले राज नेता भाजपा से नहीं बल्कि जनसत्ता दल (लो.) के मुख्या और कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भइया हैं। जिन्होंने अशुद्ध प्रसाद पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए यह मांग उठाई है की भारत के मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण अविलम्ब हटना चाहिए। देखा जाए तो यह उचित भी है जब अन्य मजहबी स्थलों पर किसी भी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है तो सनातन मंदिरों पर ही क्यों..

 

राजा भैया को राजनीतिक और धार्मिक विषयों पर अपनी बात को स्वतंत्र रूप से रखते हुए देखा गया है। धर्म और राष्ट्र के विषयों पर बिना किसी राजनीतिक लाभ हानि के राजा भैया , सरकार के उचित निर्णयों का खुले मन से समर्थन करते भी देखे जा सकते हैं  । जबकि भाजपा के सहयोगी दल, सनातन धर्म के विषय पर मौन धारण कर लेते हैं लगता है उनका गठबंधन सत्ता का लाभ लेने हेतु तो है पर भाजपा के धार्मिक विचारों से उनकी भिन्नता है । जिस प्रयोजन हेतु भाजपा को भारत के हिन्दू समाज ने सत्ता सौंपी उस प्रयोजन की पूर्ति में ऐसे सहयोगी कदापि लाभकारी नहीं हो सकते जिनके मन में उस प्रयोजन के प्रति सम्मान न हो, सनातन के प्रति समर्पण न हो ।

 

राजा भैया का सनातन के प्रति समर्पण और अधर्म के प्रति मुखरता यह प्रमाणित कर देती है की किसी भी सशक्त सनातनी के लिए सर्वप्रथम सत्य सनातन धर्म है उसके साथ छल, कपट या समझौता स्वीकार करने योग्य नहीं है। भाजपा भी अपने सहयोगी दलों का आकलन करे कभी ऐसे लोग उनके प्रयोजन रुपी वृक्ष में धीमे धीमे चुना न डाल रहे हों ।

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