रगंभरी एकादशी के दुसरे दिन भव्य से विराट हुई विश्व विख्यात चिता भस्म महामशान मणिकर्णिका घाट पर खेली गई चीता भस्म की होली –
✍️नवीन तिवारी
वाराणसी:- सुबह से भक्त जन दुनिया की दुर्लभ, चीता भस्म से खेली जाने वाली होली की तैयारी में लग गए थे और जहा दुःख व अपनो से बिछडने का संताप देखा जाता था वहां आज के दिन शहनाई की मंगल ध्वनि बजती है हर शिवगण अपने-अपने लिए उपयुक्त स्थान खोज कर इस दिव्य व अलौकिक दृश्य को अपनी अन्तंरआत्मा में उतार कर शिवोहम् होने को अधिर हुए जाता है –
जब समय आता है बाबा के मध्याह्न स्नान का उस समय मणिकर्णिका तीर्थ पर तो भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा था हजारों हजार की संख्या में भक्तों का जन सैलाब मणिकर्णिका घाट पर पहुंच रहा था
(यह कहा जाता हैं कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं तत्पश्चात सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुन्य लेकर अपने स्थान जाते हैं और उनके वहां स्नान करने वालों को वह पुन्य बांटते हैं)
अंत बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महामशान पर आकर चीता भस्म से होली खेलते है। वर्षों की यह परम्परा अनादि काल से यहा भव्य रूप से मनायी जाती रही हैं।
इस परम्परा को पुनर्जीवित किया बाबा महाश्मसान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक काशीपुत्र गुलशन कपूर ने जो पिछले 23 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर दुनिया के कोने कोने तक जन सहयोग व आप सभी मीडिया कर्मियों के विशेष सहयोग av आपार प्रेम से पहुंचा है।
गुलशन कपूर ने इस कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा की काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) करा कर अपने धाम काशी लाते हैं जिसे उत्सव के रूप में काशीवाशी मनाते है और रंग का त्योहार होली का प्रारम्भ माना जाता है, इस उत्सव में सभी शामिल होते हैं जैसे देवी, देवता,यछ,गन्धर्व, मनुष्य और जो शामिल नहीं होते हैं वो हैं बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच,किन्नर, दृश्य, अदृश्य, शक्तियाँ जिन्हें बाबा ने स्वयं मनुष्यों के बीच जाने से रोक रखा है।
लेकिन बाबा तो बाबा हैं वो कैसे अपनो की खुसियों का ध्यान नहीं देते अंत सब का बेडा पार लगाने वाले शिवशंकर उन सभी के साथ चिता भस्म की होली खेलने मशान आते हैं और आज से ही सम्पूर्ण विश्व को प्रंश्नता, हर्ष-उल्लास देने वाले इस त्योहार होली का आरम्भ होता हैं जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं।
चुकी इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाया जाता हैं जिसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं। और इस अद्भुत,अद्वितीय,अकल्पनीय होली को देखकर,खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं और जीवन के सास्वत सत्य से परिचित होकर बाबा में अपने को आत्म शांत करते हैं।
आज इस आयोजन में गुलशन कपूर ने बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली ( शिव शक्ति ) का मध्याह्न आरती कर बाबा को जया, विजया,मिष्ठान, व सोमरस का भोग लगाया गया बाबा व माता को चिता भस्म व नीला गुलाल चढाया और जैसा की द्वारका जी का संदेश था होली योगेश्वर श्री कृष्णराधा का भी प्रिय त्योहार हैं। और हर का उत्सव बिना हरी के कैसे सम्भंव ? इस कारण इस वर्ष हर और हरी दोनों के लिए भस्म के साथ नीला गुलाल, माता मशान काली का लाल गुलाल चढ़ा कर होली प्रारंभ किया जाता है पुरा मंदिर प्रांगण और शवदाह स्थल भस्म से भर जाता है, इस उत्सव में इस वर्ष विशेष रूप से सतुवा बाबा श्री संतोष दास जी महाराज, महंत श्री संजय झिंगरन, गुलशन कपूर, (मन्दिर व्यवस्थापक) श्री चैनू प्रसाद गुप्ता,(अध्यक्ष) विजय शंकर पांडेय,राजू पाठक,बिहारी लाल गुप्ता, संजय गुप्ता, मनोज शर्मा,दीपक तिवारी,विवेक चौरसिया,अजय गुप्ता,बडंकु यादव शामिल हुए।