यूपी में एक जुलाई से बदल जाएगा कानून,सीएम योगी के लॉ एंड ऑर्डर को मिलेगी ज्यादा मजबूती,पुलिस वालों के लिए होंगे नियम –

लखनऊ:— एक जुलाई से देश में नया आपराधिक कानून लागू होगा। सबसे अधिक आबादी के नाते उत्तर प्रदेश में आपराधिक मुकदमों की संख्या भी सबसे अधिक है। स्वाभाविक रूप से इसका सबसे अधिक लाभ भी उत्तर प्रदेश को मिलेगा।मुख्यमंत्री योगी की लॉ एंड ऑर्डर सर्वोच्च प्राथमिकता है,उसके लिए नए कानून बोनस की तरह होंगे। यही वजह है कि योगी सरकार ने इनके प्रति प्रतिबद्धता जताई है। पिछले दिनों सीएम योगी ने नए कानून लागू करने में हुई प्रगति की समीक्षा की। इनको लागू करने और इनसे संबंधित सभी स्टेक होल्डर्स को इसके प्रति जागरूक करने के बाबत जरूरी निर्देश भी दिए।
बदलावों की खूबी –
ये बदलाव दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की अवधारणा के अनुरूप है।यह शरीर,सोच और आत्मा में पूरी तरह से भारतीय है। इन बदलावों में अधिकतम सुशासन, पारदर्शिता,संवेदनशीलता,जवाबदेही,बच्चों और महिलाओं के हित पर खासा ध्यान दिया गया है। दंड की जगह न्याय पर सारा फोकस रखा गया है। शीघ्र न्याय मिले इसके लिए नीचे से ऊपर तक जांच और साक्ष्य के लिए आधुनिकतम तकनीक को शामिल किया गया है। किसी भी मामले न्याय मिलने की सीमा तय होगी। छोटे मोटे मामलों के निस्तारण के लिए पहली बार कम्युनिटी सर्विसेज की शुरुआत की गई है। अकेले इस बदलाव से सेशन कोर्ट में ही 40 फीसद मुकदमों का निस्तारण हो जाएगा।
कुछ महत्वपूर्ण बदलाव –
नए क्रिमिनल जस्टिस में राजद्रोह का कानून खत्म कर दिया गया है। भारतीय संप्रभुता का किसी भी तरह विरोध करने वालों के लिए कड़े दंड का प्रावधान किया गया है।
आतंकवाद जो देश की प्रमुख समस्याओं में से एक है उसे पहली बार साफ तौर पर परिभाषित करते हुए दंड की व्यवस्था की गई है।
इसी तरह संगठित अपराध और मॉब लिंचिंग को पहली बार परिभाषित किया गया है।
हाल के कुछ वर्षों में महिलाओं के लिए चेन और मोबाइल छीनैती कानून-व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है,जिस भी महिला के साथ ऐसी घटना होती है,वह शॉक्ड रह जाती है। कभी-कभी तो इस छीना झपटी में महिला को गंभीर चोट आती है। ऐसी चोट जो जानलेवा हो सकती है या अपंगता की वजह। इसके लिए भी पहली बार नए कानून लाए गए हैं।
लालच,दबाव और डर की वजह से गवाहों का मुकरना आम बात रही है –
नए कानूनों में उनकी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया है। साथ ही तकनीक के जरिए जिस तरह परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर जोर दिया गया है। उससे गवाह मुकर भी नहीं पाएंगे। इससे पुलिस भी पूरी प्रक्रिया के दौरान जवाबदेह बनेगी। वह अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल नहीं कर सकेगी।
ये क्रिमिनल जस्टिस के नए युग की शुरुआत होगी –
कुल मिलाकर 313 धाराओं में बदलाव किए गए हैं,जो धाराएं अप्रासंगिक हो गई थीं उनको हटा दिया गया। कुछ में नई टाइमलाइन भी जोड़ी गई है। इन बदलावों से देश गुलामी के प्रतीकों से मुक्त होगा। क्रिमिनल जस्टिस के लिहाज से यह एक नए युग की शुरुआत होगी। इसकी खासियत और खूबसूरती यह होगी कि अब यह भारत द्वारा भारतीयों के लिए और भारतीय संसद द्वारा निर्मित कानूनों से चलेगी। यह एक भारत श्रेष्ठ भारत की संकल्पना के अनुरूप होगी। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा भी यही है। अपनी समीक्षा में सीएम योगी ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 15 अगस्त 2023 को स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देश के सामने पंच प्रण लिए थे, इनमें से एक प्रण था – गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करना। इसी प्रण को पूरा करने के लिए संसद ने अंग्रेज़ों द्वारा बनाए गए इंडियन इन कानूनों को सुलभ, पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए बदल दिया गया।
देरी से मिलने वाला न्याय नेचुरल जस्टिस के विरुद्ध –
इन जटिलताओं की वजह से न्याय पाने में दशकों लग जाते हैं। कभी कभी तो पीढ़ियां गुजर जाती। यह न्याय के सार्वभौमिक सिद्धांत नेचुरल जस्टिस के खिलाफ है। नेचुरल जस्टिस का सिद्धांत यह है कि कि न्याय होना ही नहीं चाहिए। ऐसा लगे भी कि न्याय हुआ है। कानून की जटिलताएं ऐसा होने नहीं देती। लिहाजा नेचुरल जस्टिस की अवधारणा मात्र अवधारणा ही रह जाती है।
देर से न्याय मिलने की सबसे बड़ी वजह कानूनों की जटिलता –
देर से न्याय मिलने की वजहें भी हैं। दरअसल हमारे अधिकांश कानून खासकर इंडियन पैनल कोड (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और इंडियन एविडेंस एक्ट अंग्रेजों के जमाने के हैं। अंग्रेजों का राज भारत पर अनंत काल तक कैसे कायम रखे।इन कानूनों का प्रमुख उद्देश्य भी यही था। स्वाभाविक रूप में इसमें दंड और भय के पहलू अधिक थे। न्याय और सुधार के पहलू नहीं के बराबर थे।
केंद्र सरकार ने क्रिमिनल जस्टिस में किया आमूल चूल बदलाव –
मोदी 02 में इस ओर सिर्फ ध्यान ही नहीं दिया गया। बल्कि आमूल चूल परिवर्तन किया गया। मोदी 03 में जुलाई 2024 से इनको लागू किया जा रहा है। अब इंडियन पेनल कोड का नया नाम होगा भारतीय न्याय संहिता,भारतीय दंड संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के नाम से जानी जाएगी। इसी क्रम में इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य कानून लागू होगा। ये सारे बदलाव दंड की जगह न्याय पर केंद्रित हैं। भारतीय मूल्यों को दृष्टिगत रखते हुए संसद द्वारा पारित नए कानूनों हमारे आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक परिवर्तन करने वाले साबित होंगे।
दंड की न्याय, पारदर्शिता और स्पीडी ट्रायल पर होगा खासा जोर –
नए आपराधिक कानूनों में दंड की जगह न्याय के साथ पारदर्शिता और स्पीडी ट्रायल के लिए इनमें तकनीक पर खासा जोर होगा। मसलन पुख्ता जांच के लिए हर जिले में फॉरेंसिक लैब की स्थापना का प्रयास होगा। समय बचाने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को भी तरजीह दी जाएगी। डेटा एनालिटिक्स, साक्ष्यों के संकलन, ई-कोर्ट, दस्तावेजों के डिजिटाइजेशन जैसी हर प्रक्रिया में तकनीक का उपयोग किया जाना है। इसके दृष्टिगत आवश्यक तकनीकी बदलाव किया गया है।