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 मां तुलजा भवानी मंदिर में तीन रूपों में दर्शन देती है मां

स्वयंभू प्रकट प्रतिमा अष्टभुजी माताजी का स्वरूप महिषासुर का वध करते हुए है

 

 

त्रेता युग में वनवास के दौरान भगवान श्री राम ने की थी शक्ति मां तुलजा भवानी की आराधना

खंडवा(मप्र)।गंगा अटल सेवा। निमाड़ में शुभ मुहूर्त में घट स्थापना के साथ शक्ति की आराधना का पर्व गणगौर नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। बड़े ही आस्था और भक्ति के साथ मां पार्वती एवं शिवजी की पूजना अर्चना के साथ नों दिवसीय नवरात्रि पर्व आज मंगलवार से शुरू हो जाएगा। समाजसेवी सुनील जैन ने बताया कि शहर स्थित अनेकों मंदिरों के साथ सबसे प्राचीन मंदिर मां तुलजा भवानी मंदिर में भी चैत्र शुक्ल की पड़वा से घट स्थापना के साथ नवरात्र पर्व की शुरुआत होगी। बड़ी संख्या में इस पर्व के दौरान श्रद्धालु भवानी माता, नवचंड़ी, शीतला माता, बिजासन माता सहित शहर के माता मंदिरों में पहुंचकर दर्शन कर पूजा अर्चना करते हैं। माता मंदिरों में घटस्थापना के साथ ही प्रतिदिन माता जी का श्रृंगार कर आरती की जाएगी। खंडवा जिले का प्रसिद्ध मां तुलजा भवानी माता मंदिर धार्मिक एवं पुरातत्व धरोहर में से एक हैं। इस मंदिर में मां भवानी की स्वयंभू मूर्ति विराजित हैं जो दिन के तीन पहर में अलग -अलग रूप धारण करती हैं। सुबह के समय बाल्यावस्था, दोपहर में युवावस्था, वहीं शाम के समय वृद्धावस्था में दिखाई देती हैं। भवानी माता मंदिर भक्तों की आस्था और विश्वास को अपने में समेटे हुए है। मंदिर के विषय में धार्मिक पौराणिक उल्लेख मिलते हैं, जिसमें इस मंदिर का महत्व बेहद प्रगाढ़ रूप से मिलता है। समाजसेवी सुनील जैन ने बताया कि मंदिर के साथ जुड़ी अनेक मान्यताएं और किंवदंतियां श्रद्धालुओं में बहुत प्रचलित हैं। चैत्र नवरात्रि में 9 दिन मां की विशेष आराधना की जाती है। मां तुलजा भवानी के इस स्थान को रामायण काल के समय से माना जाता है।

 

भगवान श्रीरामचंद्र जी ने की थी मां तुलजा भवानी की आराधना

 

तुलजा भवानी माता मंदिर से जुड़ी ऐसी मान्यता है कि 14 साल के वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ खांडव वन (वर्तमान खंडवा) आए थे। भगवान श्रीराम ने इस मंदिर में 9 दिनों तक मां तुलजा भवानी की आराधना की थी और मां से अस्त्र-शस्त्र का वरदान लेकर दक्षिण की ओर प्रस्थान किया था।

 

मराठा नायक छत्रपति शिवाजी ने की थी मां की पूजा

 

महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने धनुर्धर अर्जुन के साथ यहीं पर अग्निदेव का अजीर्ण रोग का उपचार किया था और देवी की शक्ति से इंद्र को वर्षा करने से रोका था। वहीं मराठा नायक छत्रपति शिवाजी मां तुलजा भवानी को अपनी आराध्य देवी मानते थे। किवंदती है कि शिवाजी को मां भवानी ने शमशीर प्रदान की थी, उसी शमशीर के तेज से उन्होंने मुगलों के दांत खट्टे कर दिए थे।

 

ऐसे पड़ा था तुलजा भवानी नाम

 

कहा जाता है कि पहले भवानी माता को स्थानीय लोग नकटी माता कहते थे। वहीं अभिभूत संत धूनीवाले दादाजी ने इन्हें तुलजा भवानी नाम दिया था। तभी से इन्हें इस नाम से जाना जाता है। तुलजा भवानी की यह प्रतिमा जमीन से स्वयं प्रकट हुई थी।

 

खंडवा शहर में तुलजा भवानी माता के दो अलग -अलग रूप

 

शहर में तुलजा भवानी माता के दो अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं। सराफा में स्थित मंदिर को बड़ी तुलजा भवानी माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। तुलजा भवानी के दरबार में अश्विन नवरात्रि और चैत्र नवरात्र के 9 दिनों में खंडवा और आसपास के क्षेत्रों से भक्त मां के दर्शनों के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के दिनों में यहां भक्तों के द्वारा जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह पूरी होती है। इसलिए इस स्थान की महिमा बेहद प्राचीन है। यहीं वजह है कि सालों से यहां मां के भक्त दर्शनों के लिए आ रहे हैं। भव्य और आकर्षक इस मंदिर का निर्माण बेहद ही आकर्षक रूप तरीके चांदी की नक्काशी से किया गया है। इसकी भव्यता का एहसास मंदिर के गर्भ गृह में चांदी के किये गये उपयोग से होता हैं। दीवारों पर चांदी से नक्काशी की गई है, जो देखने में अनूठी प्रतीत होती है। देवी पर चांदी का छत्र सुशोभित किया गया है। वहीं माता के मुकुट को चांदी व मीनाकारी से सजाया गया है। मंदिर में प्रति दिन होने वाले भक्ति पाठ व धूप दीप द्वारा मंदिर का वातावरण सुशोभित रहता है। मंदिर परिसर के भीतर विशाल दीपशिखा, मंदिर का द्वार स्तंभ संस्कृति का बना है, जिस पर शंख आकृति के दीप बने हुए हैं जो श्रद्धालुओं को बेहद ही सुंदर दिखाई देते हैं। माता के मंदिर के पास ही अन्य मंदिर भी स्थापित है, जिसमें श्री राम मंदिर, हनुमान मंदिर, महादेव मंदिर मुख्य है। तुलजा भवानी का यह मंदिर संपूर्ण निमाड़ क्षेत्र की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां पर अनेक उत्सव का आयोजन होता है जिसमें रामनवमी, दुर्गा पूजा पर्व काफी उत्साह के साथ मनाए जाते हैं।

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