वाराणसी
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मनुस्मृति ने हमको पशुता से ऊपर उठाकर मानव बनाया : शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती –

 

वाराणसी:-  देश में ऐसा वातावरण बनाया जा रहा कि मनुस्मृति बहुत खराब किताब है।इतनी खराब कि संसार में जितनी समस्याएं हैं वो इसी के कारण उत्पन्न हो गई हैं। यह भी कहा जाता है कि डॉ. अम्बेडकर ने मनुस्मृति जलाकर उसकी जगह नया संविधान बना दिया इसीलिए कुछ राहत है। परमाराध्य ने कहा कि जिस मनुस्मृति से लोक-परलोक दोनों सुधर रहे थे, जिस मनुस्मृति ने हमको पशुता से ऊपर उठाकर मानव बनाया उसके बारे में ऐसा प्रचार वही कर सकता है जो हमको नष्ट करना चाहता हो या जो हमारा शत्रु हो। जो विधर्मी लोग हैं उन्हीं के द्वारा सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए यह षड्यंत्र किया गया है। 

 

उक्त उद्गार ‘परमाराध्य’परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शड्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ‘1008’ ने गंगा तट पर स्थित श्रीविद्यामठ में मनुस्मृति पर व्याख्यान करते हुए बताया।

 

उन्होंने कहा कि जब किसी कार्यक्रम में राष्ट्रपति,राज्यपाल,प्रधानमंत्री या कोई बड़ा अफसर आता है तो उसी के हिसाब से वहां की व्यवस्थाएं होती हैं और वो स्वयं भी सबके साथ समान व्यवहार नहीं करते। किसी को मंच पर बिठाते हैं तो किसी को आगे वाली कुर्सियों पर,तो किसी को पीछे,लेकिन जब बात करते हैं तो कहते हैं आप लोगों के साथ बड़ी असमानता हो रही है। 

 

आगे कहा कि केवल कहने से कोई ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र नहीं हो जाता,वह स्वयं के होने से होता है।मनुष्य को ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य व शूद्र चार भागों में मनु महाराज ने नहीं बाटा।उन्होंने कभी वर्ण व्यवस्था नहीं बनाई और न ही किसी को ब्राह्मण व किसी को शुद्र बनाया।उन्होंने कभी नहीं कहा कि आज से तुम शुद्र हो जाओ और तुम ब्राह्मण हो जाओ।उन्होंने तो केवल जो चार वर्ण पहले से थे उनके कर्तव्य बताए हैं।आप लोग ही शूद्र को पिछड़ी जाति का,एससी एसटी व न जाने क्या-क्या बोलते हो। 

 

शंकराचार्य जी ने कहा कि अंबेडकर साहेब ने प्रस्ताव पारित कर कहा था आज से 4 वर्ण नहीं होंगे एक ही वर्ण होगा,लेकिन आज तक तो ऐसा नहीं हुआ।अंबेडकर जी ने समाज को दो वर्गों में जरूर बांट दिया एक आरक्षित वर्ग और दूसरा अनारक्षित वर्ग।बदले का बदला बदले को ही बढ़ावा देता है।दलित पिछड़ा वर्ग व शूद्रों की राजनीति तो आज तक चली आ रही है। 

शूद्र को पैर की संज्ञा दी गई है,यदि यह अपमान है तो क्यों नहीं लोग अपने पैर काटकर फैंक देते और यह भी तय है कि बिना पैर के व्यक्ति दो कदम भी नहीं चल सकता।पैर शरीर का अभिन्न अंग है उसके बिना शरीर नहीं चल सकता।चरण के तलवे व हाथ की हथेलियां हमारे शरीर का स्विच बोर्ड है।सिर का प्रवेश पैर में नहीं बल्कि पैर का प्रवेश सिर में है। 

 

गुरुदेव ने कहा कि जिस प्रकार से हर मुसलमान के घर में कुरान,इसाई के घर में बाइबिल होती है उसी प्रकार हर हिन्दू के घर में मनुस्मृति होनी चाहिए।मनुस्मृति केवल लौकिक व्यवस्था ही नहीं बनाती, बल्कि पारलौकिक व्यवस्था भी बनाती है।

उक्त जानकारी शंकराचार्य जी महाराज के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय के माध्यम से प्राप्त हुई है।

 

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