दिल्ली:- सुप्रीम कोर्ट ने फैला दिया है कि उत्तर प्रदेश में जो मदरसा शिक्षा बोर्ड एक्ट बना है, वह असंवैधानिक नहीं है। मदरसों में कुछ मजहबी प्रशिक्षण दिए जाने के कारण मदरसों को अवैध नहीं माना जा सकता।
इसके साथ ही चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें मदरसा एक्ट को असंवैधानिक बताते हुए मदरसों के बच्चों को नियमित सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के मदरसों में पहले की तरह मुस्लिम बच्चे इस्लाम के अनुरूप शिक्षा ग्रहण करते रहेंगे। उत्तर प्रदेश में करीब 25 हजार मदरसे हैं, इनमें से 17 हजार मदरसे सरकार से पंजीकृत हैं। इन सभी मदरसों में करीब 20 लाख मुस्लिम बच्चे इस्लाम धर्म के अनुरूप शिक्षा ग्रहण करते हैं। जो मदरसे पंजीकृत हैं उन्हें सरकार से सभी सुविधाएं मिलती है। भारत में बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, जम्मू कश्मीर सहित अनेक राज्यों के मदरसों में बड़ी संख्या में मुस्लिम बच्चे मजहबी पढ़ाई करते हैं। मदरसों के माध्यम से मुस्लिम बच्चों को यूपी और पीजी स्तर की डिग्री भी दी जाती है। अकेले उत्तर प्रदेश में 20 लाख मुस्लिम बच्चों के मजहबी शिक्षा लेने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में इस्लाम धर्म कितना मजबूत हो रहा है। मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। स्वाभाविक है कि जब इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम बच्चे मजहबी शिक्षा ग्रहण करेंगे तो फिर समाज में उसका असर भी देखने को मिलेगा। चूंकि मदरसों में इस्लाम धर्म के अनुरूप ही शिक्षा दी जाती है, इसलिए आम मुसलमान अपने धर्म की शिक्षाओं का उल्लंघन नहीं करता है। यदि कोई गैर इस्लामी व्यक्ति उनके धर्म के लिए प्रतिकूल बात कहेगा तो ऐसे व्यक्ति का सिर तन से जुटा कर दिया जाता है। पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश में तो कट्टरपंथी के कारण कई बार उदारवादी मुसलमानों को ही परेशानी होती है। अफगानिस्तान में तो महिलाओं को स्कूल कॉलेज जाने पर ही रोक है।