उत्तर प्रदेश

मथुरा क्या हेमा मालिनी लगा पाएंगी जीत की हैट्रिक –

मथुरा:- भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा को सियासी रूप से बेहद खास माना जाता है।मथुरा जिले पर सभी की निगाहें टिकी रहती हैं।लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक पार्टियां तैयारी में जुटी हैं। ब्रज क्षेत्र में पड़ने वाली मथुरा लोकसभा बेहद खास है।मथुरा से फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी सांसद हैं।अब हेमा मालिनी की नजर लगातार जीत की हैट्रिक लगाने पर है।

मथुरा संग्रहालय में पुरातात्विक सर्वेक्षण के अनुसार शहर को लेकर सबसे पुराना जिक्र रामायण में मिलता है। रामायण में इक्ष्वाकु राजकुमार शत्रुघना ने लवणसुरा नाम के राक्षस का वध कर यहां की भूमि का दावा किया।फिर यह जगह मधुवन के रूप में जानी जाने लगी।यह घना जंगली क्षेत्र हुआ करता था।ऐसे में मधुपुरा बाद में मथुरा शहर हो गया।आज भी इसे मथुरा नाम से जाना जाता है।मथुरा जिले में छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव विधानसभा सीटें हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में इन पांचों विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने कब्जा कर लिया।

 

*2019 के लोकसभा चुनाव में हेमा को मिले6.71 लाख वोट*

 

2019 के लोकसभा चुनाव में मथुरा लोकसभा में भारतीय जनता और समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी में मुकाबला रहा।भाजपा ने मथुरा से एक बार फिर 2014 की सांसद हेमा मालिनी को चुनावी मैदान में उतारा तो सपा और बसपा के साथ चुनावी गठबंधन की वजह से से रालोद के प्रत्याशी कुंवर नरेंद्र सिंह को मौका मिला,लेकिन चुनाव एकतरफा ही रहा।हेमा मालिनी को 671,293 वोट मिले तो नरेंद्र सिंह को 377,822 वोट मिले।कांग्रेस की हालत बहुत खराब रही।कांग्रेस प्रत्याशी महेश पाठक को 50 हजार वोट भी नहीं मिल पाया। महेश पाठक को 28,084 वोट मिला।हेमा मालिनी ने 293,471 वोटों के अंतर से चुनाव जीता।शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी जगवीर सिंह चुनाव में सबसे नीचे पायदान पर रहे। जगवीर सिंह यादव को 470 वोट मिला।चुनाव में मथुरा लोकसभा में कुल 17,48,275 मतदाता थे।इसमें पुरुष मतदाता 9,55,064 थे, 7,92,986 महिला मतदाता थी।इसमें कुल 11,02,731 (63.4%) मतदाताओं ने मतदान किया। नोटा के खाते में 5,800 मत पड़ा।

 

*जानें क्या रहा है मथुरा लोकसभा का इतिहास*

 

मथुरा लोकसभा के सियासी इतिहास को देखा जाए तो यहां पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा बरकरार है। 1990 के बाद की सियासत में राम मंदिर आंदोलन से भाजपा के लिए मथुरा लोकसभा गढ़ के रूप में परिवर्तित होती गई।मथुरा में पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था।इस चुनाव में राजा गिरराज सरण सिंह निर्दलीय चुनाव जीता था। 1957 में दूसरा लोकसभा चुनाव भी निर्दलीय प्रत्याशी राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने जीता था। 10 साल के लंबे इंतजार के बाद 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का मथुरा से खाता खुला था। कांग्रेस से चौधरी दिगंबर सिंह चुनाव जीता था। 1967 में भी चौधरी दिगंबर सिंह चुनाव जीता था।

 

1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से चकलेश्वर सिंह ने चुनाव जीता था। इमरजेंसी से कांग्रेस को 1977 के लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर पराजय का सामना करना पड़ा। मथुरा में भी कांग्रेस की पराजय हुई थी। 1977 में जनता दल के मनीराम बागरी ने चुनाव जीता था। 1980 में चौधरी दिगंबर सिंह फिर चुनाव जीता।इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के चुनाव में कांग्रेस को सहानुभूति लहर का फायदा मिला और मथुरा भी कांग्रेस ने जीत ली,लेकिन 1989 में जनता दल ने मथुरा पर कब्जा कर लिया।

 

90 के दशक में राम मंदिर के आंदोलन में भाजपा का मथुरा में दबदबा बनने लगा। 1991 के लोकसभा चुनाव में साक्षी महाराज ने चुनाव जीता।फिर 1996, 1998 और 1999 में भाजपा से राजवीर सिंह ने जीत की हैट्रिक लगाई। 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से मानेंद्र सिंह ने चुनाव जीता। 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल के बीच चुनावी गठबंधन था और यहां से आरएलडी से जयंत चौधरी मैदान में उतरे और 1,69,613 मतों के अंतर से चुनाव जीता।

 

*कान्हा की धरती पर क्या है जातीय समीकरण*

 

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में मथुरा लोकसभा से भाजपा से हेमा मालिनी ने जयंत चौधरी को पराजित कर चुनाव जीता था।हेमा मालिनी ने यह चुनाव 1,69,613 मतों के अंतर से जीती था।तीसरे नंबर बसपा रही। 2019 में हेमा मालिनी ने सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी कुंवर नरेंद्र सिंह को 2,93,471 मतों के अंतर से हराया था।दोनों ही चुनाव में हेमा मालिनी को लगभग 3 लाख मतों के अंतर से जीत मिली थी, लेकिन 2014 की तुलना में 2019 में हार-जीत के अंतर में मामूली गिरावट आई थी।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाली मथुरा लोकसभा में जाट और मुस्लिम मतदाता का खासा वर्चस्व माना जाता है।इस लोकसभा के जातीय मत को देखा जाए तो 2019 में सबसे अधिक जाट मतदाता थे।इनकी संख्या लगभग सवा 3 लाख थी। इनके अलावा ब्राह्मण मतदाता पौने 3 लाख थे। क्षत्रिय, जाटव और मुस्लिम मतदाता की संख्या इनके बाद आती है। वैश्य और यादव मतदाता अहम भूमिका में रहते हैं।

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