भारत के सभी पड़ोसी देशों में अस्थिरता की आग: कहीं सेना का शासन, कहीं साल भर से चुनाव नहीं; अब नेपाल में अशांति –

✍️ – कीर्तिवर्धन मिश्र –
नेपाल में बीते दो दिनों से अराजकता का माहौल है। गैर-पंजीकृत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले के बाद नेपाल के युवाओं ने जो आंदोलन छेड़ा, वह देखते ही देखते काठमांडू से लेकर पूरे देश में फैल गया। स्थिति यह हो गई कि सोमवार को गृह मंत्री और फिर मंगलवार को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ गया। इसी के साथ भारत के आसपास के देशों में नेपाल भी उन देशों में शामिल हो गया है, जहां राजनीतिक संकट अब बाकी पड़ोसी देशों की तरह ही गहरा गया है।
ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर नेपाल में अचानक स्थिति कैसे बिगड़ गई? भारत के पड़ोसी देशों में किस तरह से बीते वर्षों में अशांति फैली है? मौजूदा समय में किस देश के क्या हाल हैं? और अब आगे क्या होने की आशंका है? आइये जानते हैं|
पहले जानें- नेपाल में अचानक कैसे बिगड़ गई स्थिति?
नेपाल में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने के फैसले के तीन दिन बाद नेपाली युवा सड़कों पर उतर आए। इस दौरान हजारों युवाओं ने संसद के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिए। जेनरेशन जी, जिन्हें ‘जेन जी’ कह कर भी संबोधित किया जाता है ने सरकार से अलग-अलग मुद्दों पर जवाबदेही तय करने को कहा। साथ ही भ्रष्टाचार और वंशवाद के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन किए।
इन प्रदर्शनों को रोकने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। इसका असर यह हुआ कि सेना की गोलीबारी और सख्त कदमों के चलते 20 लोगों की मौत हो गई। इसके बावजूद जब युवाओं के प्रदर्शन नहीं रुके तो सरकार को अंदाजा हो गया कि हिंसा और बढ़ सकती है। देखते ही देखते नेपाल के गृह मंत्री ने स्थिति बिगड़ने के लिए पूरी तैयारी न होने की जिम्मेदारी ली और इस्तीफा दे दिया। इसके बाद सांसदों के इस्तीफे शुरू हो गए और कृषि मंत्री ने भी इस्तीफा दे दिया। आखिरकार आज मंगलवार दोपहर आते-आते नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी इस्तीफा दे दिया। उनके नेपाल से भागने की खबरें भी सामने आईं। हालांकि, इनकी पुष्टि नहीं हो पाई।
अब जानें- भारत के किन-किन पड़ोसी देशों में कबसे फैली है अशांति?
बीते वर्षों में भारत के पड़ोस में जिन देशों में अशांति फैली है, उनमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव शामिल हैं। आइये जानते हैं इन देशों में कबसे और कैसे अस्थिरता आई और मौजूदा स्थिति क्या है?
अफगानिस्तान –
अफगानिस्तान में यूं तो अस्थिरता के हालात 2001 से ही शुरू हो गए थे, जब अमेरिका पर हुए 9/11 हमलों के बाद अमेरिका के नेतृत्व वाली नाटो सेनाओं ने ओसामा बिन लादेन की खोज के लिए हमला कर दिया था। नाटो सेनाओं ने इस दौरान न सिर्फ काबुल में बैठी तालिबान सरकार को सत्ता से बेदखल किया, बल्कि अलकायदा को तबाह करने के लिए लंबे समय तक सैन्य अभियान चलाया। इस बीच अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक सरकारों के गठन की बात भी कही गई। हालांकि, देश में हिंसा जारी रही।
2011 में लादेन के मारे जाने के बाद धीरे-धीरे अमेरिका और अन्य देशों ने अफगानिस्तान में सेना को कम किया गया। इसके बाद 2021 तक आते-आते अमेरिका ने अपनी सेना को पूरी तरह अफगानिस्तान से वापस बुला लिया। इस फैसले के कुछ दिन बाद ही तालिबान ने एक के बाद एक अफगानिस्तान के शहरों को कब्जाते हुए राजधानी काबुल पर धावा बोल दिया और सत्ता पर कब्जा कर लिया।
पाकिस्तान –
पाकिस्तान में अस्थिरता का दौर कोई नया नहीं है। भारत के इस पड़ोसी मुल्क में अशांति 1947 से ही जारी है। कई बार लोकतांत्रिक सरकार के गठन की कोशिश को सेना ने नाकाम किया है। हालांकि, देश में ताजा अस्थिरता का दौर 2022 से आया, जब सेना के इशारे पर इमरान खान की सरकार को अविश्वास प्रस्ताव से गिरा दिया गया। इस तरह पाकिस्तान में एक बार फिर कोई भी सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने में नाकाम रही। मौजूदा समय की बात करें तो शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज), बिलावल भुट्टो के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और अन्य बड़े-छोटे दलों के गठबंधन के जरिए सेना अब सरकार मे स्थिरता लाने की कोशिश कर रही है। हालांकि, आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और इमरान के कट्टर समर्थक अभी भी पाकिस्तान में सरकार के लिए मुश्किलों का सबब बने हुए हैं।
म्यांमार –
म्यांमार में अस्थिरता का ताजा दौर 2021 में आया, जब सेना ने लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट कर दिया। सेना का मानना था कि सरकार रोहिंग्या संकट से निपटने में सफल नहीं रही है। इसके बाद से ही म्यांमार में गृह युद्ध का दौर जारी है और सेना और कई बागी संगठन आपस में संघर्ष कर रहे हैं। इतना ही नहीं म्यांमार की कई स्थानीय जनजातियां भारत, थाईलैंड और चीन में शरण लेने को मजबूर हुई हैं।
म्यांमार की सत्ता सेना के हाथ में होने के बावजूद म्यांमार में तनाव का अंत करीब नजर नहीं आ रहा है। हालांकि, सेना लगातार दावा करती रही है कि वह जल्द देश में चुनाव कराएगी।
श्रीलंका –
श्रीलंका में स्थितियों का बिगड़ना 2021 के अंत में ही शुरू हो गया था। दरअसल, यहां राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की खेती से जुड़ी नीतियों के चलते श्रीलंका के आर्थिक हालात लगातार बिगड़ते चले गए। आलम यह हुआ कि श्रीलंका कर्ज भरने में भी डिफॉल्टर हो गया। इसके चलते श्रीलंका में महंगाई तेजी से बढ़ने लगी। इन स्थितियों के बीच आम लोगों ने सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किए। यह प्रदर्शन एक समय इतने उग्र हो गए कि लोग नेताओं के घर में घुस गए। इस बीच राजपक्षे बंधुओं को देश छोड़कर भागना पड़ा। दोनों के इस्तीफे के बाद रानिल विक्रमसिंघे ने श्रीलंका की कमान संभाली। इसके बाद 2024 में श्रीलंका में चुनाव कराए गए और तबसे स्थितियां सुधारने की कोशिशें जारी हैं।
बांग्लादेश –
बांग्लादेश में पिछले साल सरकारी नौकरियों में विवादास्पद आरक्षण प्रणाली को खत्म करने की मांग को लेकर विरोध-प्रदर्शन शुरू हुआ था। इसमें बड़ी संख्या में छात्र संगठन शामिल थे। बाद में विरोध-प्रदर्शन के दौरान जमकर हिंसा और उपद्रव हुआ। शेख हसीना को हटाने की मांग के बीच प्रदर्शनकारियों ने उनके आवास पर हमला कर दिया था, जिसके बाद हसीना को भागने पर मजबूर होना पड़ा। उन्हें भारत में शरण मिली थी। एएफपी की रिपोर्ट के हवाले से सामने आई यूएन की जांच रिपोर्ट में अनुमानित तौर पर 1400 प्रदर्शनकारियों की मौत की बात कही गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, हिंसा और उपद्रव के दौरान हजारों लोग हताहत हुए।
बांग्लादेश में जुलाई-अगस्त में हुई क्रांति के बाद अंतरिम सरकार के प्रमुख यूनुस ने सभी दलों को साथ लाने की बात कही थी। लेकिन मौजूदा स्थिति को देखा जाए तो जहां शेख हसीना की आवामी लीग पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तो वहीं खालिदा जिया की बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) अलग-अलग समय पर यूनुस सरकार की नीतियों के विरोध में प्रदर्शन करती रही है। इसके अलावा कानून व्यवस्था भी बिगड़ी है। हत्या से लेकर दुष्कर्म, अपहरण और चोरी के केस बढ़े हैं। इसके अलावा हिंदुओं और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के मामलों में भी तेजी देखी गई है।