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बूंद बूंद पानी को तरसे चित्रकूट पाठा के आदिवासी

पाठा की जनता से आखिर किस मुंह से नेता मांगेगे वोट

 

बूंद बूंद पानी को तरसे चित्रकूट पाठा के आदिवासी

चित्रकूट : बूंद-बूंद पानी की अहमियत क्या होती है इसे जानने के लिए एक बार पाठा क्षेत्र के गांवों की ओर चले जाइए. आदिवासियों को कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद बमुश्किल से पीने के पानी का जुगाड़ हो पाता है. सुबह से पानी के लिए जंगलों की बीहड़ों व तालाबों में जाते हैं तब जाकर कहीं कुछ पानी मिलता है।

बूंद-बूंद पानी के लिए तरसे पाठा क्षेत्र के टिकरिया जमुनिहाई के आदिवासी । सिर्फ दिखावा बन चुकी है नमामि गंगे, घर घर जल मिशन ,लेकिन पाठा क्षेत्र के गांवों में पानी नहीं है. चित्रकूट का अधिकांश इलाका पहाड़ी और जंगलों से भरपूर है. इन गांव में पानी की पाइपलाइन बिछी जरूर है लेकिन वह शोपीस बन चुकी हैं. हैंडपंप भी हैं लेकिन सभी खराब पड़े हैं. आदिवासियों ने कई बार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को चेताया लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. अब इन आदिवासियों ने एक बार फिर मीडिया के माध्यम से गुहार लगाई है.

पानी को तरसे चित्रकूट पाठा के आदिवासी

दुनिया भर में अपनी पहचान कायम करने वाले चित्रकूट में भी पानी की समस्या है. यहां के आदिवासी हर दिन पीने के पानी के लिए बीहड़ों तालाबों में जाते हैं. तब जाकर मुश्किल से पीने के पानी का जुगाड़ हो पता है. चित्रकूट का अधिकतर इलाका पहाड़ी और जंगलों से भरा हुआ है इसलिए इन उबड़ खाबड़ रास्तों से ही होकर लोगों को पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है.

सुविधाएं तो हैं लेकिन पानी नहीं

आदिवासियों ने बताया कि उनके गांव में हैंडपंप तो लगाए गए हैं लेकिन किसी के पाइप फटे हैं तो किसी में पानी नहीं आता है इतना ही नहीं ग्राम पंचायत ने पाइप लाइन भी बिछाई है लेकिन पानी नहीं आता है. गांव के ही आसपास के किसानों के खेत में कुएं हैं जहां कुछ पानी है वहां से ही पीने के पानी का जुगाड़ हो पाता है लेकिन उसके लिए भी कोसों दूर तक जाना पड़ता है.

कई बार की शिकायत करने से आश्वासन मिलता है।

चित्रकूट में पानी की समस्या को लेकर ग्रामीण विकासखंड मानिकपुर व जिला मुख्यालय पहुंचे लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई,ग्रामीणों ने बताया कि कई बार इसकी शिकायत अधिकारियों सहित नेताओं से कर चुके हैं. 5 साल में नेता उनके गांव में आते हैं और चुनाव के दौरान कई बड़े-बड़े वादे करते हैं. लगता है कि अब उनके घरों तक पानी पहुंच जाएगा लेकिन यह वादा कभी पूरा नहीं हुआ. आज तक किसी ने सुध नहीं ली. यहां तक कि ग्राम प्रधान भी कभी गांव के ग्रामीणों की तरफ घूम कर नही देखता,

बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष कर रहे ग्रामीण

पानी के लिए बच्चों की जद्दोजहद

जिन मासूमों के हाथ में किताब या खिलौने होना चाहिए उस उम्र में पीने के पानी के लिए उन्हें जद्दोजहद करना पड़ रही है. घर में पीने के पानी का जुगाड़ हो सके इसके लिए बच्चे भी पानी की तलाश में साथ जाते हैं. परिजनों का कहना है कि घर में पीने के पानी की व्यवस्था हो सके इसके लिए बच्चे भी पानी की तलाश में जाते हैं तो घर के बड़े लोग घर का गुजारा हो सके इसके लिए काम की तलाश में निकलते हैं.

 

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