वाराणसी

बीएचयू में शेर-ए-बनारस बचऊ वीर की प्रतिमा लगाने की प्रो.ओमशंकर ने उठाई मांग –

 

वाराणसी:–  काशी हिंदू विश्वविद्यालय एक बार फिर अपने ऐतिहासिक मुद्दों को लेकर चर्चा में है, इस बार ह्रदय रोग विभाग में विभागाध्यक्ष प्रो.ओमशंकर ने शेर-ए-बनारस के खिताब प्राप्त बचाऊ बीर की 150 फिट प्रतिमा सेंट्रल ऑफिस के सामने लगाने की मांग किया है। इस बीच उन्होंने यह भी कहा कि इस मुहिम के लिए देश के कई क्षेत्रों से चंदा स्वरूप लोहा इकट्ठा करके इन महापुरुष की प्रतिमा स्थापित करके उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जाएगी। उन्होंने ने आगे वार्ता करते हुए कहा कि बी एच यू में महामना मालवीय जी के प्रयासों से रामनाथ चौधरी सहित आसपास के कई किसानों ने अपनी जमीन बी एच यू को दान दिया। ऐसी स्थिति में इन महापुरुषों को महामना के बगिया में सम्मान देना अति आवश्यक हो गया है।

 

*जानिए कौन है बचऊ बीर* :

 

काशी हिंदू विश्वविद्यालय से जुड़ी रोचक घटना जब शेर-ए-बनारस पहलवान बचऊ यादव विश्वविद्यालय के संस्थापक पं. मदन मोहन मालवीय जी को बचाने में खुद शहीद हो गए थे। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना, 4 फरवरी 1916 को पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने बचऊ बीर, रामनाथ चौधरी एवं अन्य किसानों की मदद से की थी।

 

जिस स्थान पर विश्वविद्यालय बना है वहाँ की जमीन के विवाद को लेकर बनारस के कुछ दबंग महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी को परेशान किया करते थे तथा उन्हें मारने की भी कई बार कोशिश की गई थी। महामना जी उच्च विचारधारा के एक अच्छे और नेक इंसान थे लेकिन वहाँ के दबंग नहीं चाहते थे, कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना हो। उस समय बनारस में पहलवान सरदार बचऊ यादव) अपनी दिलेरी और बहादुरी के लिए काफी प्रसिद्ध थे।

 

महामना जी भी पहलवान बचऊ वीर अर्थात् यादव जी से भलीभाँति परिचित थे तथा दोनों में घनिष्ठ मित्रता भी थी । बनारस में ऐसा माना जाता है कि सरदार बचऊ यादव से बड़ा पहलवान तथा उन्हें दंगल में हराने वाला उस वक्त कोई पैदा नहीं हुआ था। बचऊ यादव को उनके शानदार व्यक्तित्व के लिए भी जाना जाता था। 6.5 फीट ऊंचा कद, गोरा रंग, सर पर सफेद साफा, लंबी रौबदार मूँछें और बुलंद आवाज के बचऊ यादव से बड़े-बड़े दबंग भी खौफ खाते थे। अब महामना कहीं भी जाते बचऊ यादव उनकी रक्षा के लिए साथ खड़े रहते थे।

 

जिस समय विश्वविद्यालय की स्थापना होनी थी उसी दिन महामना जी पर रास्ते में घात लगाकर लगभग 25 दबंगों ने हमला कर दिया तभी पहलवान बचऊ यादव गुप्त सूचना के अनुसार पहुँचकर अपनी दिलेरी और पराक्रम दिखा मदन मोहन जी को वहाँ से सुरक्षित बचाकर निकाल दिया तथा अपनी लठ्ठ के दम पर अकेले उन 25 दबंगों से भिड़ गए।

 

बचऊ यादव अकेले उन 25 दबंगों से काफी देर तक भिड़ते रहे फिर आखिरकार लड़ते-लड़ते बहादुर बचऊ यादव शिक्षा धर्म की स्थापना के लिए शहीद हो गए। महामना जी को सरदार बचऊ यादव की मृत्यु से बहुत अघात पहुंचा और वे भावुक हो रोने लगे।

 

पंडित महामना जी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पास में ही बचाऊ यादव की याद में सरदार बचाऊ यादव मंदिर की स्थापना करवाई और उनकी बहादुरी को सलाम करते हुए लिखवाया वीरों में वीर बचाऊ वीर। ये मंदिर आज भी यहाँ स्थित है। मालवीय जी ने बचऊ यादव के हत्यारो को सजा दिलाने के लिए लंडन की कोर्ट में मुकदमा लड़ा और हत्यारो को फांसी व काले पानी की सजा दिलाई। बचऊ वीर का जन्म विश्वविद्यालय के समीप सीरगोवर्धन गाँव में हुआ था। बचऊ यादव को शेर-ए-बनारस की उपाधि मालवीय जी ने दी थी। उसके बाद पहलवान बचऊ के इस दमखम, दिलेरी तथा साहस के लिए उन्हें सरकार ने शेर-ऐ-बनारस की उपाधि से नवाजा।

 

प्रो.ओमशंकर ने बताया कि बचऊ बीर का मंदिर होने के बावजूद मौजूदा हालात में उनकी चर्चा अब अमूमन नही होती है, जबकि बचऊ बीर के प्रयास से रामनाथ चौधरी एवं अन्य आस-पास के किसानों ने अपनी जमीन विश्व की सर्वोत्तम शिक्षानगरी बनाने के उद्देश्य से महामना मदनमोहन मालवीय को अपनी जमीन दान दिया। लेकिन अब हालात यह आ चूके है कि इस विश्वविद्यालय में पढ़े लिखे छात्र देश ही नही बल्कि विदेश में भी कई कीर्तिमान स्थापित कर रहे है। इसलिए यह अब जरूरी हो गया कि महामना की बगिया को बनवाने और सजाने वालों को बी एच यू स्थापना के सम्पूर्ण इतिहास से परिचित कराया जाय! जिसके लिए जल्द ही मुहिम भी शुरू की जाएगी।

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