धर्म

बहुरि बिलोकि बिदेह सन कहहु काह अति भीर। पूँछत जानि अजान जिमि ब्यापेउ कोपु सरीर।। समाचार कहि जनक सुनाए । जेहि कारन महिप सब आए –

जब परशुराम जी ने मिथिला नरेश को विदेह नाम से संबोधित किया और उसी नाम के माध्यम से पूछा कि कि विदेहनगर में ये देहवादियों की भीड़ क्यों है। तो मिथिला नरेश ने जनक से संबोधन के माध्यम से कहा कि ये सब कन्या के पिता होने के धर्म निर्वहन करने के कारण।

तो परशुराम जी और क्रोध में हो गए और उन्होंने कहा कि – लगता है तुम्हें ज्ञान में मगन रहते रहते पिता धर्म भूल गए हो।
स्मरण करो कि तुम्हारी जिस कन्या को छीनने के लिए पहले भी ऐसे दुष्ट राजा कुचेष्टा कर चुके हैं और कई बार ये मिथिला की ज्ञान के मंथन के भूमि रक्त रंजित हुई है,
और अब फिर वही गलती कर दी?
तुम्हें जब याज्ञवल्क्य मुनि से या नारद मुनि से सब ज्ञात था तो केवल उन्हीं को आमंत्रित करते जो अभीष्ठ थे?
ये चारों ओर ढोल पिटवाने की क्या आवश्यकता (आए *सुनि* जो हम पनु ठाना) ?
(विद्वज्जन परशुराम कथन के गहरे भाव निवेदन अटपटा सा लग सकता है ,उसके लिए क्षमा करेंगे क्योंकि मुझे मूल तत्व कहने की हार्दिक इच्छा ऐसा करने को विवश कर रहा है।🙏)
तुम इस डुगडुगी पिटवाने के परिणाम जानते हो?
तुम्हें इतना ज्ञान होना चाहिए कि जब ऐसी अद्वितीय सुंदरी कन्या के विवाह की बात है फिर ये भी जानते थे कि उसके लिए देश विदेश ही नहीं बल्कि स्वर्ग लोक और पाताल लोक से भी आ सकते हैं,
तो उसी अनुरूप सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं किया?
यज्ञ के माध्यम से कन्या रत्न की प्राप्ति हुई (हल चलाने वाले काल में जब सीता की प्राप्ति हुई),
ये स्वयंवर यज्ञ है,
तो उसी अनुरूप सुरक्षा व्यवस्था रखनी चाहिए कि नहीं?
इसलिए मैं कहता हूं कि तुम तो चले थे *जनक* की भुमिका करने लेकिन मूर्ख बन गए।
इसलिए तुम जनक नहीं बल्कि जड़ जनक हो –
* कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा*???
इसपर जनक जी मन ही मन मुस्कुराते हैं और मन में ही कहते हैं कि – मुनीश्वर! आप मुझे कितना भी जड़ जनक कह लें किन्तु वैसा नहीं है।
हमने यदि डुगडुगी पिटवाकर संसार को बुलाया है,
तो यहां एक ऐसे महानुभाव भी आए हैं जिन्हें चिट्ठी देकर उनके साथ
*बड़ रखवार* को भी बुलाया है।
क्योंकि उन्हीं मुनियों से हमने सुना है कि –
सीमि को चाँपि सकइ कोउ तासू।
कि
बड़ रखवार रमापति जासू।।
और अंत में यही हुआ कि परशुराम जी को उन अद्वितीय रखवार से कहना पड़ा कि –
राम रमापति कर धेनु लेहु
सच में जनक जी आप जड़ नहीं हो बल्कि बड़ रखवार की पहले ही व्यवस्था कर लिए हो
तात्पर्य ये कि राम जी से बढ़कर जन रक्षक(जन रक्षक हरे)कोई और नहीं इसलिए हम सभी को उनके आश्रय में जीवन यज्ञ संपन्न करना चाहिए…

 

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