वाराणसी
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निर्जला एकादशी की तिथि को लेकर बड़ा असमंजस, जानें सही तारीख, महत्व –

✍️ ज्योतिषाचार्य –आनंद शास्त्री

 निर्जला एकादशी व्रत के संदर्भ में –

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली निर्जला एकादशी 18 जून, मंगलवार को है। इस व्रत को ‘देवव्रत’ भी कहा जाता है क्योंकि सभी देवता, दानव, नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, नवग्रह आदि अपनी रक्षा और श्रीविष्णु की कृपा पाने के लिए एकादशी का व्रत करते हैं।

हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी का विशेष महत्व है। इसे कठोर एकादशी के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि जो व्यक्ति साल की चौबीस एकादशी रखने में सक्षम नहीं है, तो वह केवल निर्जला एकादशी का व्रत रख लें। ऐसा करने से दूसरी एकादशियों का भी लाभ मिल जाता है। इस एकादशी में बिना खाएं-पिएं व्रत रखकर विष्णु जी की आराधना की जाती है। इसे पांडव एकादशी और भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं –

महाबली भीम ने किया यह व्रत –

द्वापर युग में महर्षि व्यासजी ने पांडवों को निर्जला एकादशी के महत्व को समझाते हुए उनको यह व्रत करने की सलाह दी। जब वेदव्यास जी ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाली एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो कुंती पुत्र भीम ने पूछा-‘हे देव! मेरे उदर में तो वृक नामक अग्नि है,उसे शांत रखने के लिए मुझे दिन में कई बार और बहुत अधिक भोजन करना पड़ता है ।तो क्या में अपनी इस भूख के कारण पवित्र एकादशी व्रत से वंचित रह जाऊँगा?”।तब व्यास जी ने कहा-”हे कुन्तीनन्दन! धर्म की यही विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता वरन सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की सहज और लचीली व्यवस्था भी करता है। तुम केवल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करो। मात्र इसी के करने से तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल भी प्राप्त होगा और तुम इस लोक में सुख-यश प्राप्त कर वैकुण्ठ धाम को प्राप्त करोगे”। तभी से वर्ष भर की चौबीस एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी नाम दिया गया है। इस दिन जो व्यक्ति स्वयं निर्जल रहकर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप करता है वह जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्त होकर श्री हरि के धाम जाता है।

नारदजी को मिली निश्छल भक्ति का वरदान –

शास्त्रों के अनुसार श्री श्वेतवाराह कल्प के प्रारंभ में देवर्षि नारद की विष्णु भक्ति देखकर ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए। नारद जी ने अपने पिता व सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी से कहा कि हे परमपिता! मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मैं जगत के पालनकर्ता श्रीविष्णु भगवान के चरण कमलों में स्थान पा सकूं। पुत्र नारद का नारायण प्रेम देखकर ब्रह्मा जी ने श्रीविष्णु की प्रिय निर्जला एकादशी व्रत करने का सुझाव दिया। नारद जी ने प्रसन्नचित्त होकर पूर्ण निष्ठा से एक हजार वर्ष तक निर्जल रहकर यह कठोर व्रत किया। हजार वर्ष तक निर्जल व्रत करने पर उन्हें चारों तरफ नारायण ही नारायण दिखाई देने लगे। परमेश्वर श्रीनारायण की इस माया से वे भ्रमित हो गए,उन्हें लगा कि कहीं यही तो विष्णु लोक नहीं। तभी उनको भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुए,मुनि नारद की भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णुजी ने उन्हें अपनी निश्छल भक्ति का वरदान देते हुए अपने श्रेष्ठ भक्तों में स्थान दिया और तभी से निर्जल व्रत की शुरुआत हुई।

निर्जला एकादशील पर करें इन मंत्रों का जाप –

1- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
2- श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे।
3- ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

  1. 4- ॐ विष्णवे नम:
  2. 5- ॐ हूं विष्णवे नम:
  3. 6- ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।
  4. 7- लक्ष्मी विनायक मंत्र –
    दन्ताभये चक्र दरो दधानं,
    कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
    धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया
    लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
  5. हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
  6. 8- ॐ अं वासुदेवाय नम:
    9- ॐ आं संकर्षणाय नम:
    10- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
    11- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
    12- ॐ नारायणाय नम:

 

एकादशी व्रत करने हेतु स्मार्त तथा वैष्णो परम्पराओं में धर्म शास्त्रोक्त भेद प्राप्त होता है.
1- स्मार्तो के लिए एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में सूर्योदय उपरांत तथा मध्याह्न पूर्व करना अनिवार्य है। अतः स्मार्तो हेतु द्वादशी में पारण की आवश्यकता होने से एकादशी व्रत का निर्णय होता है।
2- वैष्णज़न हेतु दशमी विद्ध (दशमी स्पर्श) एकादशी व्रत करने का निषेध होता है। इस परिस्तिथि में दशमी युक्त एकादशी को त्याग कर द्वादशी में व्रत होता है तथा व्रत के अगले दिन सूर्योदय उपरांत तथा मध्याह्न पूर्व एकादशी व्रत का पारण त्रयोदशी तिथि में होता है।
यहां वैष्णज़न हेतु अल्प मात्रा में भी स्पर्श दशमी युक्त एकादशी तिथि व्रत हेतु त्याज्य है।

संवत 2081 सन 2024-25 हरिहर श्री हृषीकेश पंचांग में दिनांक 17-6-2024 सोमवार को एकादशी तिथि का मान 58 घटी 13 पल (रात्रि शेष घंटा 4 मिनट 30) तक व्याप्त है तथा सूर्योदय पूर्व समाप्त है तथा पूर्व दिन दिनांक 16-6-2024 रविवार को दशमी तिथि का मान 54 घटी 13 पल (रात्रि घंटा 2 मिनट 54) तक होने से एकादशी तिथि दशमी तिथि से विद्ध(स्पर्श दोष) है तथा दिनांक 18-6-2024 मंगलवार को द्वादशी तिथि अहोरात्र अर्थात संपूर्ण दिन है।
अतः यहां स्मार्तो हेतु सूर्योदय उपरांत तथा मध्याह्न पूर्व द्वादशी में पारण आवश्यक होने से दिनांक 17-6-2024 सोमवार को अधिकमान वाली एकादशी तिथि व्रत के लिए ग्राह्य होगी तथा 18-6-2024 मंगलवार को द्वादशी तिथि में एकादशी व्रत का पारण होगा।
दिनाँक 17-6-2024 सोमवार को दशमी विद्ध एकादशी तिथि का निषेध प्राप्त होने से वैष्णज़न द्वारा एकादशी व्रत को दिनाँक 18-6-2024 मंगलवार को किया जाएगा तथा इसका पारण दिनाँक 19-6-2024 बुधवार को होगा।
अतः दिनाँक 17-6-2024 सोमवार को स्मार्तो हेतु एकादशी व्रत तथा दिनाँक 18-6-2024 मंगलवार को वैष्णज़न एकादशी व्रत करेगे।

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